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ऑटिज्म: मंदबुद्धि नहीं, एकाग्र कहिए

१३ सितम्बर २०१३

ऑटिज्म: एक जन्मजात अंतर. वैज्ञानिक इसे बीमारी नहीं कहते. सामान्य तौर पर इन लोगों को मंदबुद्धि या उदासीन माना जाता है, लेकिन कुछ मामलों में ये लोग अद्भुत प्रतिभा वाले होते हैं.

तस्वीर: privat

जुटाए गए मेडिकल आंकड़ों के मुताबिक एक हजार बच्चों में एक या दो ऑटिज्म के शिकार यानी ऑटिस्ट होते हैं. इसके लक्षण दो साल की उम्र में बहुत हल्के से दिखने लगते हैं. ऑटिस्ट बच्चे बोलने के बजाए हाव भावों से ज्यादा संवाद करते हैं. वे एक ही चीज बार बार कई दिन तक दोहराते रहते हैं. सामाज के बीच में वो उदासीन रहना ज्यादा पसंद करते हैं. लेकिन इन लक्षणों के बावजूद बिना मेडिकल जांच के ऑटिज्म को पकड़ पाना बहुत मुश्किल है. कई बार बच्चे जिद या दिचस्पी की वजह से भी ऐसा व्यवहार करते है. लेकिन ऑटिज्म हो तो उम्र बढ़ने के साथ ये लक्षण और पक्के होते जाते हैं.

गजब का हुनर

वैज्ञानिक समुदाय जानता है कि आम लोगों के उलट ऑटिज्म प्रभावित लोग सामाजिक व्यवहार और कई विषयों की जानकारियों का सही ढंग से विश्लेषण नहीं कर पाते. उनका दिमाग ढेर सारी सूचनाओं को जमा कर उससे अपनी तर्कशक्ति में नहीं बदल पाता. लेकिन डॉक्टर और वैज्ञानिक अब तक नहीं समझ पाए हैं कि यह दिमागी अंतर होता कैसे है. आमतौर पर देखा गया है कि यह अंतर अनुवांशिक होता है. बच्चे को यह माता पिता के जीन से मिलता है.

ऑटिस्ट बच्चे अक्सर हर दिन एक ही खिलौने से खेलते हैं. वे हमेशा खिलौनों या आस पास की चीजों को लाइन में या सधे हुए ब्लॉकों में रखते हैं. ये भले ही दिमागी अंतर की वजह से हो, लेकिन इसके पीछे एक गहरी प्रतिभा भी छुपी है. ऑटिस्ट लोगों को बहुत ही कम चीजें पसंद आती है, लेकिन जो चीजें उन्हें अच्छी लगती हैं, वे उन्हें बारीकी से जान लेते हैं. उसमें कोई भी गलती या कोई भी कमी वे फौरन भांप लेते हैं.

ऑटिस्ट लोगों को नौकरी देती एसएपीतस्वीर: picture-alliance/dpa

कमाल की एकाग्रता

उदाहरण के लिए अगर किसी ऑटिस्ट को क्रिकेट पसंद है तो उसे क्रिकेट से जुड़ी बातें गजब की सटीकता से याद रहेंगी. वह सालों पुराने मैच का स्कोर बोर्ड, किसने क्या किया, मैदान पर क्या हुआ जैसी बातें बड़ी सहजता से बता देगा. मोबाइल फोन में दिलचस्पी रखने वाले ऑटिस्ट उसका हर फंक्शन छान मारेंगे.

लंबे समय तक मंदबुद्धि कह कर उपेक्षा करने के बाद अब लोगों को ऑटिस्टों की प्रतिभा का अंदाजा हो रहा है. सॉफ्टवेयर उद्योग से जुड़ी दिग्गज जर्मन कंपनी एसएपी तो ऑटिस्ट लोगों को नौकरी भी दे रही है. बेंगलुरु में एसएपी के दफ्तर में पांच हजार कर्मचारी हैं. इनमें से पांच ऑटिस्ट हैं. एसएपी लैब्स इंडिया के उपाध्यक्ष अवनीश दूबे कहते हैं, "डिटेल को लेकर उनकी एकाग्रता कमाल की होती है. उनकी गजब की यादाश्त होती है. वो एक ही काम को बार बार भी कर सकते हैं. सॉफ्टवेयर टेस्टिंग में हमें इन तकनीकों की जरूरत है." ऑटिस्ट गलतियां पकड़ने में माहिर होते हैं.

प्रतिभा की पहचान

लेकिन आम कर्मचारियों के बीच ऑटिस्ट लोगों को घुलने मिलने में दिक्कत होती है. एसएपी लैब्स इंडिया में मिशेल इजाक अधिकारियों और ऑटिस्ट कर्मचारियों के बीच संवाद का काम करती हैं. इजाक कहती हैं, "अगर मैं दफ्तर में न रहूं तो वे मुझे मैसेज करके पूछते हैं कि मिशेल तुम कहां हो, ऑफिस कब आओगी. उन्हें लगता है कि अगर मिशेल यहां है तो सब ठीक होगा. वो मुझ पर भरोसा करते हैं और मैं उन पर भरोसा करती हूं."

एसएपी ऑटिज्म के शिकार और लोगों को आईटी विशेषज्ञ के रूप में नौकरियां देना चाहती है, सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि जर्मनी में भी. मथियास प्रोएसल इसमें स्पेसियलिस्टेर्ने संगठन की मदद ले रहे हैं, जो ऑटिस्ट लोगों और कंपनियों को साथ लाता है. प्रोएसल कहते हैं, "हमारा लक्ष्य है ऐसे लोगों को बेरोजगारी से बाहर निकालना जो काम करना चाहते हैं."

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: ईशा भाटिया

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