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ऑटोमेटिक हो रहे हैं गिरजे के घंटे

१२ सितम्बर २०१०

सदियों से गिरजों में घंटे इस तरह बजते रहे हैं, जैसे शहर के ईसाइयों को प्रार्थना समारोह में शामिल होने के लिए पुकार रहे हों. पहले इस काम के लिए गिरजों में एक खास कर्मचारी होता था, जिसका काम ही था हर घंटे घंटा बजाना.

तस्वीर: AP

लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. इटली के दक्षिण पश्चिम में छोटा सा कस्बा है कियारी, आबादी सिर्फ 20 हजार. कस्बा तो छोटा सा है, लेकिन यहां एक कैथेड्रल है, जिसे 15वीं सदी के अंत या 16वीं सदी की शुरुआत में बनाया गया था. माना जा सकता है कि उस जमाने में कोई टावर पर चढ़कर घंटा बजाता था. लेकिन आज सॉफ्टवेयर के जरिये सब कुछ ऑटोमेटिक कर दिया गया है, और श्रद्धालुओं को श्रद्धा की खातिर बुलाने के लिए मोबाइल फोन की व्यवस्था की गई है.

कियारी का डोमतस्वीर: Duomo di Chiari

कियारी के कैथेड्रल के घंटे की आवाज आसपास के माहौल में रम सी जाती है. रोम के सेंट पीटर्स कैथेड्रल के अलावा इटली का यह अकेला कैथेड्रल है, जहां 11 अलग अलग घंटे हैं. ज्यादातर गिरजों में अधिक से अधिक आठ घंटे हैं. सौ साल पहले एक कर्मचारी हुआ करता था, जो वहीं टावर में रहता था, और उसका काम था हर घंटे घंटा बजाना. आज कंप्युटर के पर्दे पर क्लिक करना पड़ता है. इसकी शुरुआत की है कैथेड्रल के केयरटेकर, या गिरजे की भाषा में सेक्सटन सिलवानो लेगरेंजी ने, जो चार साल से इस पद पर काम कर रहे हैं. बचपन से ही उनका गिरजे के घंटों से लगाव था, वे गिरजे के इर्दगिर्द घूमा करते थे. साथ ही, कंप्यूटर से भी उनका लगाव था. बड़े चाव से वे गिरजे का साइबर घंटा सिस्टम दिखाते हैं, दो साल से जिसका ट्रायल चल रहा है.

"सबसे पहले मैं आई डी और पासवर्ड डालता हूं और मेन स्क्रीन आ जाता है. ये आवाजें पहले से रखी हुई हैं, या फिर मैं लाइब्रेरी की फाईल खोल सकता हूं, उसमें से घंटे की कोई धुन निकाल सकता हूं, फिर मैं प्रेस बटन पर क्लिक करता हूं और घंटा बजने लगता है. लोग खुश हैं कि उनकी चहेती धुनें फिर से सुनाई दे रही हैं. इस सिस्टेम को चालू करने से पहले कुछ घंटे ब्लॉक हो गये थे और नहीं बजते थे. अब सारे 11 घंटों की धुनें सुनी जा सकती हैं."

दशकों तक ये घंटे हाथ से नहीं बजाए जाते थे, हालांकि वे अब भी रस्सों से बंधे हैं. सिलवानो लेगरेंजी प्रशिक्षित संगीतकार हैं, वे एक कीबोर्ड पर इसके नोट बजाया करते थे, यह की बोर्ड मोटर लगे हथौड़ों से जुड़ा था, और हथौड़े घंटे पर चोट करते थे. लेकिन इसकी खातिर उन्हें हमेशा वहां मौजूद रहना पड़ता था. वे कहते हैं, "अब यह सिस्टम सौ फीसदी ऑटोमेटिक है. मैं साल भर के लिए उनकी प्रोग्रामिंग कर सकता हूं, और घंटे बजते रहेंगे. मेरे काम का ढर्रा बिल्कुल बदल गया है, क्योंकि अब घंटा बजाने के समय का हिसाब रखते हुए मुझे काम नहीं करना पड़ता है. टच स्क्रीन सिस्टम चालू करने के बाद तो मुझे घंटों की फिक्र भी नहीं करनी पड़ती है."

कियारी के घंटेतस्वीर: Duomo di Chiari

इस सिस्टम को तैयार करने वाले भी स्थानीय लोग हैं. कारलो रुबागोत्ती पिछली सदी में घंटों के पुनरुद्धारकर्ता थे, और उन्होंने पहली बार मोटर से बजाए जाने वाले घंटों का ईजाद किया था. आज उनके बेटे जियाकोमो और लुका इस व्यवसाय को आगे बढ़ा रहे हैं, नई तकनीकों का प्रयोग कर रहे हैं. लेगरेंजी उनके बचपन के दोस्त हैं. उनके साथ जुड़े आईटी एक्सपर्ट जिओर्जिओ काम्पियोत्ती, और उन्होंने आरसी टचबेल सिस्टम तैयार किया. जिओर्जियो काम्पियोत्ती कहते हैं, "हमारे लगभग पचास ग्राहक हैं, जो इस सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं. फिलहाल वे सभी उत्तरी इटली के हैं. हम अपने उत्पाद के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय डिस्ट्रीब्यूटर खोज रहे हैं."

इस सिस्टम के दो रूप हैं. पहला सिस्टम असली घंटों की आवाज को ऑटोमेटिक ढंग से पेश करता है. और दूसरे में आधुनिक घंटों की रिकार्डिंग हैं. यह उन गिरजों के लिए है जिनके पास टावर तो क्या, अपने घंटे भी नहीं हैं.

इस बीच वायरलेस तकनीक, यहां तक कि मोबाइल फोन के जरिये भी इस सिस्टम को चालू किया जा सकता है. बुजुर्ग पादरियों को पहले थोड़ा शक था कि यह सब क्या हो रहा है, लेकिन जब उन्होंने देखा कि कितनी आसानी से सब कुछ किया जा सकता है, तो वे भी इसके कायल बन चुके हैं. इसके अलावा यह सिस्टम बनाया गया है घंटो के लिए, लेकिन इसमें कुछ ऐप्लायेंसेज जोड़कर गिरजे की लाईट जलाने-बुझाने या फिर ऊंची खिड़कियों को खोलने और बंद करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

रिपोर्टः डॉयचेवेले/उभ

संपादनः एस गौड़

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