भारत में डिजीटल भुगतान प्रणाली की रीढ़ समझे जाने वाले नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) में 40 से भी ज्यादा सुरक्षा संबंधी कमजोरियां हैं, जिनमें से कुछ तो भारी जोखिम वाली हैं.
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यह तथ्य सामने आए हैं एनपीसीआई के एक सरकारी ऑडिट में, जिस से संबंधित एक आंतरिक दस्तावेज की जानकारी रॉयटर्स को मिली है. ऑडिट नवंबर 2018 से फरवरी 2019 तक चला था और उसमें नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) में निजी डाटा के एन्क्रिप्शन की कमी को विशिष्ट रूप से दर्शाया गया. एनपीसीआई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बढ़ावा दिए जाने वाले रुपे कार्ड को चलाता है.
मार्च 2019 के इस सरकारी दस्तावेज के अनुसार 16 अंकों के कार्ड नंबर और ग्राहकों के नाम, खातों के नंबर और राष्ट्रीय पहचान नंबर इत्यादि जैसी निजी जानकारी का कुछ डाटाबेस में प्लेन टेक्स्ट में, यानी बिना कोड किए, भंडारण पाया गया. ऐसे में अगर प्रणाली में किसी ने सेंध लगाने की कोशिश की तो यह डाटा एकदम असुरक्षित होगा. इस ऑडिट की जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है.
एनपीसीआई ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से एक वक्तव्य में कहा कि संस्थान का ऑडिट नियमित रूप से होता रहता है और प्रबंधन में वरिष्ठ अधिकारी ऑडिट के सभी नतीजों की समीक्षा करते रहते हैं और फिर ऑडिट करने वालों की संतुष्टि के अनुसार उपचारात्मक कदम भी उठाए जाते हैं. वक्तव्य में यह भी बताया गया, कि इस प्रक्रिया में वो नतीजे भी शामिल हैं जिनके बारे में रॉयटर्स ने बताया है.
भारत के राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा संयोजक राजेश पंत के कार्यालय ने ऑडिट का संयोजन किया था. पंत ने एक वक्तव्य में रॉयटर्स को बताया, "पिछले साल की रिपोर्ट में जितने भी बिंदु सामने लाए गए थे एनपीसीआई ने उनके समाधान की पुष्टि कर दी है."
पंत ने यह भी कहा कि साइबर हमलों को कम करने के लिए ऑडिट सबसे अच्छा तरीका है और सभी उपक्रम समय समय पर ऑडिट कराते रहते हैं. यह ऑडिट इसलिए किया गया था ताकि प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को साइबर हमलों के खिलाफ एनपीसीआई की तैयारी के बारे में बताया जा सके. प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय ने टिप्पणी के लिए रॉयटर्स के अनुरोध पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
ऑडिट के नतीजे एनपीसीआई के सामने डाटा सुरक्षा की चुनौतियों को रेखांकित करते हैं. एनपीसीआई इंटर-बैंक ट्रांसफर, एटीएम लेन-देन और डिजीटल भुगतान जैसी सेवाओं के जरिए रोजाना अरबों डॉलर की धनराशि संसाधित करता है. ये एक गैर लाभकारी कंपनी है जिसका गठन 2008 में किया गया था. मार्च 2019 तक 56 बैंक इसके शेयरधारक थे, जिनमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, सिटीबैंक और एचएसबीसी जैसे बैंक शामिल हैं.
रुपे को विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी ने काफी उत्साहपूर्वक ढंग से समर्थन दिया है और उसके इस्तेमाल राष्ट्रीय कर्त्तव्य के जैसा बताया है. अक्टूबर 2019 तक भारत में जारी होने वाले करीब 90 करोड़ डेबिट और क्रेडिट कार्डों में से लगभग दो-तिहाई कार्ड रुपे कार्ड ही थे.
तकनीक तेजी से बदल रही है और साथ ही बदल रही है धोखाधड़ी करने की तकनीक भी. आजकल साइबर ठगों के निशाने पर बैंक खाते भी आ गए हैं और अनजान लिंक पर क्लिक करने भर से आपके पैसे गायब हो सकते हैं. यहां जानिए कैसे रह सकते हैं सतर्क.
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व्हाट्सऐप कॉल से फर्जीवाड़ा
अगर आपको व्हाट्सऐप पर किसी अनजान नंबर से वॉयस कॉल आती है तो आप सावधान हो जाइए क्योंकि फोन करने वाला आपको ठग सकता है. इस वारदात को अंजाम देने के बाद आपके नंबर को ब्लॉक कर सकता है. वॉयस कॉल करने वाला अपनी ट्रिक में फंसाकर आपके पैसे हड़प सकता है.
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यूपीआई
यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस के जरिए किसी को भी आसानी से पैसे भेजे या मंगाए जा सकते हैं. यूपीआई के जरिए ठग किसी व्यक्ति को डेबिट लिंक भेज देता है और जैसे ही वह उस लिंक पर क्लिक कर अपना पिन डालता है तो उसके खाते से पैसे कट जाते हैं. इससे बचने के लिए अनजान डेबिट रिक्वेस्ट को तुरंत डिलीट कर देना चाहिए. अजनबियों के लिंक भेजने पर क्लिक ना करें.
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एटीएम क्लोनिंग
पहले सामान्य कॉल के जरिए ठगी होती थी लेकिन अब डाटा चोरी कर पैसे खाते से निकाले जा रहे हैं. ठग हाईटेक होते हुए कार्ड क्लोनिंग करने लगे हैं. एटीएम कार्ड लोगों की जेब में ही रहता है और ठग पैसे निकाल लेते हैं. एटीएम क्लोनिंग के जरिए आपके कार्ड की पूरी जानकारी चुरा ली जाती है और उसका डुप्लीकेट कार्ड बना लिया जाता है. इसलिए एटीएम इस्तेमाल करते वक्त पिन को दूसरे हाथ से छिपाकर डालें.
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कार्ड के डाटा की चोरी
एटीएम कार्ड के डाटा की चोरी के लिए जालसाज कार्ड स्कीमर का इस्तेमाल करते हैं, इसके जरिए जालसाज कार्ड रीडर स्लॉट में डाटा चोरी करने की डिवाइस लगा देते हैं और डाटा चुरा लेते हैं. इसके अलावा फर्जी कीबोर्ड के जरिए भी डाटा चुराया जाता है. किसी दुकान या पेट्रोल पंप पर अगर आप अपना क्रेडिट कार्ड स्वाइप कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि कर्मचारी कार्ड को आपकी नजरों से दूर ना ले जा रहा हो.
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क्यूआर कोड स्कैम
क्यूआर यानि क्विक रिस्पांस कोड के जरिए जालसाज ग्राहकों को भी लूटने का काम कर रहे हैं. इसके जरिए मोबाइल पर क्यूआर कोड भेजा जाता है और उसे पाने वाला शख्स क्यूआर कोड लिंक को क्लिक करता है तो ठग उसके मोबाइल फोन का क्यूआर कोड स्कैन कर बैंक खाते से रकम निकाल लेते हैं.
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ई-मेल स्पूफिंग
ई-मेल स्पूफिंग के जरिए ठग ऐसी ई-मेल आईडी बना लेते हैं जो नामी गिरामी कंपनियों से मिलती-जुलती होती हैं और फिर सर्वे फॉर्म के जरिए लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर डाटा चुरा लेते हैं. गूगल सर्च के जरिए भी ठगी के मामले सामने आए हैं. जालसाज सर्च इंजन में जाकर मिलती जुलती वेबसाइट बनाकर अपना नंबर डाल देते हैं और अगर कोई सर्च इंजन पर कोई खास चीज तलाशता है तो वह फर्जी साइट भी आ जाती है.
अगर आप ऑनलाइन मैट्रिमोनियल साइट पर पार्टनर की तलाश कर रहे हैं तो जरा सावधान रहिए क्योंकि इसके जरिए भी ठगी हो रही है. गृह मंत्रालय के साइबर सुरक्षा विभाग के मुताबिक ऑनलाइन वैवाहिक साइट पर चैट करते वक्त निजी जानकारी साझा ना करें और साइट के लिए अलग से ई-मेल आईडी बनाएं और बिना किसी पुख्ता जांच किए निजी जानकारी साझा करने से बचें.
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बैंक खातों की जांच
साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि बैंक खातों की नियमित जांच करनी चाहिए और अस्वीकृत लेनदेन के बारे में तुरंत अपने बैंक को जानकारी देनी चाहिए.
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नौकरी का झांसा
कई जॉब पोर्टल संक्षिप्त विवरण को लिखने, विज्ञापित करने और जॉब अलर्ट के लिए फीस लेते हैं, ऐसे पोर्टलों को भुगतान करने से पहले, वेबसाइट की प्रमाणिकता और समीक्षाओं की जांच करना जरूरी है.
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सतर्कता जरूरी
ऑनलाइन लेनदेन करते समय मोबाइल फोन या कंप्यूटर पर किसी ऐसे लिंक को क्लिक ना करे जिसके बारे में आप सुनिश्चित ना हो. सॉफ्टवेयर डाउनलोड करते समय भी सुनिश्चित कर लें कि वेबसाइट वेरिफाइड हो.
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बैंकों की जिम्मेदारी
साइबर अपराध को रोकने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी दिशा-निर्देश बनाए हैं जिनके तहत बैंकों को साइबर सुरक्षा के पैमाने को और सुधारना, ग्राहकों के डाटा की सुरक्षा सुनिश्चित करना और साइबर अपराध रोकने के लिए बैंक ग्राहकों को जागरुक करना शामिल हैं.