ऑस्ट्रेलिया में शुक्रवार से जंगलों में आग लगी है और अब तक तीन लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.यहां आग का आपातकाल लगाया गया है और प्रशासन ने लोगों को एहतियातन सुरक्षित जगहों पर जाने की सलाह दी.
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ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग के मद्देनजर प्रशासन ने लोगों से एहतियात बरतने को कहा है. साथ ही उन्हें जरुरत पड़ने पर सुरक्षित जगहों पर जाने को कहा है. न्यू साउथ वेल्स में मौसम ऐसा है कि जंगल में लगी आग बुझने का नाम नहीं ले रही है. न्यू साउथ वेल्स में करीब 600 स्कूलों को मजबूरन बंद कर दिया गया है.
मंगलवार को भी मौसम इतना खराब रहा कि वहां अगले 7 दिनों के लिए आग का आपातकाल लगाया गया है. न्यू साउथ वेल्स को ऑस्ट्रेलिया के सबसे घनी आबादी वाले राज्यों में गिना जाता है.
मौसम से आग हुई बेकाबू
तेज हवा और बढ़ी हुई गर्मी ने जंगलों में लगी आग को और विनाशकारी बना दिया है. सिडनी में मौजूद अधिकारियों ने लोगों को "आग के भयावह खतरे" से आगाह किया है.
ऑस्ट्रेलिया में साल 2009 में जंगलों की आग को लेकर रेटिंग की शुरुआत हुई थी, इस बार पहली दफा अधिकारियों ने 'भयावह' रेटिंग दी है. इस चेतावनी के बाद न्यू साउथ वेल्स में बचाव का कार्य तेजी से किया जा रहा है, इसी के चलते राज्य के 600 से अधिक स्कूल बंद कर दिए गए हैं. शुक्रवार से लगी आग के कारण अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है, हजारों लोग विस्थापित हुए हैं और 150 से अधिक घर जल कर खाक हो चुके हैं.
ऑस्ट्रेलिया में गर्मी के मौसम के दौरान जंगलों में आग आम बात है, लेकिन इस साल का प्रकोप खासतौर पर गंभीर है. इस साल न्यू साउथ वेल्स में दस लाख हेक्टेयर के जंगल और खेत जल कर खाक हो चुके हैं. पिछले साल के मुकाबले इस मौसम में इस बार तीन गुना बड़े इलाके में आग लगी है.
सुरक्षित ठिकानों पर जाने की सलाह
मंगलवार को न्यू साउथ वेल्स में तापमान 37 डिग्री सेल्सियस पहुंचने की आशंका है, अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने लोगों को इसके लिए चेतावनी दी है, और कहा कि हम इसके लिए तैयार हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि वे इससे अधिक और कुछ नहीं कर सकते हैं.
न्यू साउथ वेल्स के ग्रामीण दमकल विभाग के कमिश्नर शेन फिट्जसाइमंस ने कहा, "इस भयावह स्थिति में हम आग पर काबू नहीं पा सकते हैं, इस तरह की आग में क्षमता होती है कि वह बिना देर किए विकराल हो जाती है. यह समय फैसला लेना का है. यह समय यहां से सुरक्षित ठिकानों पर जाने का है. लोग यहां से सुरक्षित ठिकाने, सुरक्षित शहर, गांव या स्थानीय सामुदायिक केंद्र या फिर शॉपिंग मॉल में जाएं."
देश के उत्तरी भाग में लगी आग का धुआं अब सिडनी तक पहुंच चुका है. वहां का आसमान धुएं से भरा हुआ है. 50 लाख की आबादी वाली सिडनी सूखे जंगलों से घिरी हुई है. वहीं ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने 2जीबी रेडियो से कहा, "फिलहाल यह तूफान के आने से पहले की शांति है."
एए/एनआर (एपी, डीपीए, रॉयटर्स)
जलवायु बदलती रही तो यूं ही जलेंगे जंगल
इंसानों का जंगल में बढ़ता दखल और जंगलों की खराब व्यवस्था तो जंगलों की आग के पीछे है ही लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह समस्या विकराल होती जा रही है.
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गर्म, सूखा और तेज हवाओं वाला मौसम
आग से लड़ने वाला कोई भी कर्मचारी आपको बता देगा कि सूखा, गर्म और तेज हवाओँ वाला मौसम आग को कैसे भड़काता है. ऐसे में कोई हैरानी नहीं है कि आग से तबाह हुए कई इलाके ऐसे हैं जहां की जलवायु में तापमान और सूखा बढ़ने के कयास लगाए गए थे. गर्मी से वाष्पीकरण की प्रक्रिया भी तेज होती है और सूखा कायम रहता है.
तस्वीर: Reuters/F. Greaves
सूखा मौसम मतलब सूखे पेड़, झाड़ी और घास
मौसम सूखा होगा तो वनस्पति सूखेगी और आग को ईंधन मिलेगा. सूखे पेड़-पौधों, और घास में आग न सिर्फ आसानी से लगती है बल्कि तेजी से फैलती है. सूखे मौसम के कारण जंगलों में ईंधन का एक भरा पूरा भंडार तैयार हो जाता है. गर्म मौसम में हल्की सी चिंगारी या फिर पेड़ पौधों के आपस में घर्षण से पैदा हुई आग जंगल जला देती है.
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सूखे में उगने वाले पेड़ पौधे
नई प्रजातियां मौसम के हिसाब से अपने आप को अनुकूलित कर रही हैं और कम पानी में उग सकने वाले पेड़ पौधों की तादाद बढ़ती जा रही है. नमी में उगने वाले पौधे गायब हो रहे हैं और उनकी जगह रोजमैरी, वाइल्ड लैवेंडर और थाइ जैसे पौधे जड़ जमा रहे हैं जो सूखे मौसम को भी झेल सकते हैं और जिनमें आग भी खूब लगती है.
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जमीन की कम होती नमी
तापमान बढ़ने और बारिश कम होने के कारण पानी की तलाश में पेड़ों और झाड़ियों की जड़ें मिट्टी में ज्यादा गहराई तक जा रही हैं और वहां मौजूद पानी के हर कतरे को सोख रही हैं ताकि अपनी पत्तियों और कांटों को पोषण दे सकें. इसका मतलब है कि जमीन की जो नमी से आग को फैलने से रोकता था, वह अब वहां नहीं है.
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कभी भी लग सकती है आग
धरती के उत्तरी गोलार्ध में तापमान की वजह से आग लगने का मौसम ऐतिहासिक रूप से छोटा होता था. ज्यादातर इलाकों में जुलाई से लेकर अगस्त तक. आज यह बढ़ कर जून से अक्टूबर तक चला गया है. कुछ वैज्ञानिक तो कहते हैं कि अब आग पूरे साल में कभी भी लग सकती है. अब इसके लिए किसी खास मौसम की जरूरत नहीं.
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बिजली गिरने का खतरा
जितनी गर्मी होगी उतनी ज्यादा बिजली गिरेगी. वैज्ञानिक बताते हैं कि उत्तरी इलाकों में अकसर बिजली गिरने से आग लगती है. हालांकि बात अगर पूरी दुनिया की हो तो जंगल में आग लगने की 95 फीसदी घटनाएं इंसानों की वजह से शुरू होती हैं.
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कमजोर जेट स्ट्रीम
उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया में मौसम का पैटर्न शक्तिशाली, ऊंची हवाओँ से तय होता है. ये हवाएं ध्रुवीय और भूमध्यरेखीय तापमान के अंतर से पैदा होती हैं. इन्हें जेट स्ट्रीम कहा जाता है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक इलाके का तापमान वैश्विक औसत की तुलना में दोगुना बढ़ गया है और इसके कारण ये हवाएं कमजोर पड़ गई हैं.
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आग रोकना मुश्किल
तापमान बढ़ने से कारण ना सिर्फ जंगल में आग लगने का खतरा रहता है बल्कि इनकी आंच के भी तेज होने का जोखिम रहता है. फिलहाल कैलिफोर्निया और ग्रीस में कुछ हफ्ते पहले यह साफ तौर पर देखने को मिला. वहां हालात ऐसे बन गए कि कुछ भी कर के आग को रोका नहीं जा सकता. सारे उपाय नाकाम हो गए.
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झिंगुरों का आतंक
तापमान बढ़ने के कारण झिंगुर उत्तर में कनाडा के जंगलों की ओर चले गए और भारी तबाही मचाई. रास्ते भर वो अपने साथ साथ पेड़ों को खत्म करते गए. वैज्ञानिकों के मुताबिक झींगुर ना सिर्फ पेड़ों को खत्म कर देते हैं बल्कि कुछ समय के लिए जंगल को आग के लिहाज से ज्यादा जोखिमभरा बना देते हैं.
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जंगल जलने से कार्बन
दुनिया भर के जंगल पृथ्वी के जमीनी क्षेत्र से पैदा होने वाले 45 फीसदी कार्बन और इंसानों की गतिविधियों से पैदा हुईं 25 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों को सोख लेते हैं. हालांकि जंगल के पेड़ जब मर जाते हैं या जल जाते हैं तो कार्बन की कुछ मात्रा फिर जंगल के वातावरण में चली जाती है और इस तरह से जलवायु परिवर्तन में उनकी भी भूमिका बन जाती है.