दुनिया भर में छात्र पिछले एक साल से कोविड और उसके कारण लागू प्रतिबंध झेल रहे हैं और चिड़चिड़े हो रहे हैं. इसकी एक वजह यह है कि डिजिटल युग में भी स्कूलों को बेहतर बनाने की रणनीति का अभाव है. जर्मनी भी इसका अपवाद नहीं है.
विज्ञापन
कुछ दिन पहले जब जर्मनी की शिक्षा मंत्री संसद में बोलने के लिए खड़ी हुईं, तो महामारी की वजह से देश के छात्र जिन विषम परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, वो आकस्मिक नहीं थी. फिर भी, आन्या कार्लीचेक पहली कोविड-19 वैक्सीन बनाने में देश की भूमिका के बारे में शेखी बघार रही थीं. कंजर्वेटिव पार्टी की यह नेता हाइड्रोजन आधारित ईंधन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर भी खूब बातें कर रही थीं.
उसके बाद जर्मन स्कूलों की दिक्कतों की बात आई. विश्वविद्यालयों की तुलना में जर्मन स्कूल डिजिटल स्तर पर काफी पीछे हैं और कोरोना महामारी के दौरान उन्हें बार-बार बंद होना पड़ा जिसकी वजह से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई. कार्लीचेक कहती हैं, "हम लोग इस समय राज्यों के साथ एक संयुक्त कार्यक्रम पर काम कर रहे हैं जिससे महामारी की वजह से उनकी पढ़ाई में आने वाली दिक्कतों को कम किया जा सकेगा."
अतिरिक्त मदद के लिए बड़ी जरूरत
वे कहती हैं कि करीब एक चौथाई जर्मन छात्रों को इस तरह की अतिरिक्त मदद की जरूरत है. इस वक्त जर्मनी की संघीय सरकार और राज्य सरकारें "सुरक्षित पढ़ाई के माहौल" पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं. इसका मतलब है कि स्वस्थ माहौल, दूरस्थ शिक्षा और छात्रों का कोविड टेस्ट करते हुए उनकी पढ़ाई को जारी रखना. कार्लीचेक कहती हैं कि महामारी के एक साल बाद छात्र, अभिभावक और अध्यापक सभी लोग थक गए हैं और परेशान हो चुके हैं.
सिर्फ जर्मनी का ही नहीं बल्कि दुनिया भर का यही हाल है. ओईसीडी यानी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवेलेपमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 188 देशों के करीब डेढ़ अरब छात्र स्कूलों के बंद होने से परेशान हैं. फरवरी में 33 देशों में 40 फीसद से भी कम स्कूलों को ज्यादातर बच्चों के लिए दोबारा खोला गया था.
मेड इन जर्मनी है फैंटा
जर्मनी ज्यादातर अपनी मंहगी कार, बीयर और ऐसी दूसरी चिजों के निर्माण के लिए से जाना जाता है. लेकिन जर्मनी ने दुनिया के कुछ ऐसे आविष्कार भी किए हैं जिसे बहुत कम लोग जानते होंगे.
तस्वीर: Colourbox
फैंटा
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकियों को लगा कि वे कोका कोला की सप्लाई बंद कर जर्मनी को परेशान कर देंगे. तभी कोका कोला जर्मनी के प्रमुख माक्स काइथ ने जर्मन बाजार के लिए नया प्रोडक्ट उतारने की सोची. उन्होंने स्थानीय चीजों का सहारा लिया और 1941 में फैंटा से तहलका मचा दिया.
तस्वीर: Colourbox
कॉफी फिल्टर
1908 में ड्रेसडेन की एक महिला मेलिटा बेंट्स ने कॉफी के स्वाद को बेहतर करने के लिए उसे बेहद बारीक कागज से छानने की सोची. आइडिया चल निकला. कप में सिर्फ कॉफी आई, उसका बारीक पाउडर फिल्टर में अटक गया. बेंट्स ने इस आइडिया को पेटेंट कराया. उनकी कंपनी मेलिटा ग्रुप आज भी 3,300 कर्मचारियों के साथ चल रही है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/A. Warnecke
इलेक्ट्रिक ड्रिल
हथौड़े से मुक्ति इलेक्ट्रिक ड्रिल ने दिलाई. हालांकि इलेक्ट्रिक ड्रिल का आविष्कार 1889 में ऑस्ट्रेलिया में हुआ. लेकिन जर्मनी के लुडविषबुर्ग के विल्हेम एमिल फाइन ने 1895 में इसे पोर्टेबल बना दिया. हाथ में आराम से आने वाली पोर्टेबल ड्रिल आज भी निर्माण और रिपेयरिंग के मामले में अहम औजार है.
तस्वीर: mariusz szczygieł - Fotolia.com
एमपी3
एमपी3 फाइल ने एक झटके में संगीत को कैसेट से निकालकर चिप में डाल दिया. एमपी3 बनाने का विचार कार्लहाइंत्स ब्रांडेनबुर्ग को 1980 के दशक में आया. उन्होंने डाटा फाइल को कंप्रेस करने में सफलता पाई.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb
पंच फाइल
आज दफ्तरों में कंप्यूटर लगे हैं, लेकिन इसके बावजूद रिकॉर्ड रखने के लिए फाइलों को इस्तेमाल किया जाता है. पंच फाइल का विचार मथियास थेल का था. लेकिन फ्रिडरिष सोएनएकन ने 14 नवंबर 1886 को इसके लिए पेटेंट फाइल किया. सोएनएकन की फाइल में एक रिंग बाइंडर और दो छेद थे.
तस्वीर: Fotolia/Eisenhans
आधुनिक फुटबॉल बूट
फुटबॉल खेलने के बूट ब्रिटेन में बने. लेकिन एडिडास के संस्थापक एडी डासलेर ने 1954 में स्क्रू तकनीक का इस्तेमाल कर इन बूटों के डिजाइन और तले को पूरी तरह बदल दिया. उसी साल पश्चिमी जर्मनी ने फुटबॉल विश्वकप जीता. एडी के बड़े भाई रुडोल्फ डासलेर इससे खुश नहीं थे. प्यूमा कंपनी के मालिक रुडोल्फ ने दावा किया कि यह खोज उनकी थी.
तस्वीर: imago
सेफ्टी टेप
निविया क्रीम, लाबेलो लिप बाम बनाने के बाद भी फार्मेसिस्ट ऑस्कर ट्रोप्लोविट्स संतुष्ट नहीं हुए. तभी उनके दिमाग में सेलो टेप बनाने का विचार आया. लेकिन इस आइडिया पर और लोग भी काम कर रहे थे. तो ट्रोप्लोविट्स ने 1901 में ल्यूकोप्लास्ट बना दिया. आज मेडिकल क्षेत्र में इसका खूब इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: Reuters/E.Alonso
एकोर्डियन
एकोर्डियन भी जर्मन आविष्कार है. 1822 में इसे क्रस्टियान फ्रिडरिष लुडविष बुशमन ने बनाया. कहा जाता है कि बुशमन इससे पहले हार्मोनियम भी बना चुके थे. लेकिन आसानी से कंधे पर लटकने वाले एकोर्डियन जल्द ही दुनिया भर में छा गया.
तस्वीर: Reuters/C. Kern
क्रिसमस ट्री
सेंटा क्लॉज को खोजने का श्रेय फिनलैंड लेता है और क्रिसमस ट्री का जर्मनी. जर्मनी में पुर्नजागरण काल के दौरान टानेनबाउम नामक पेड़ को सजाने का चलन शुरू हुआ. 19वीं शताब्दी के अंत तक यह परंपरा सी बन गई. आज दुनिया भर में क्रिसमस ट्री को फलों, लाइटों और मेवों से सजाया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Thieme
टैक्सी मीटर
इससे प्यार और नाराजगी बनी रहती है. 1891 में फ्रिडरिष विल्हेम गुस्ताव ब्रून ने डायमलर कंपनी की टैक्सियों के लिए यह मीटर बनाया. तभी से दुनिया भर की टैक्सियों के मीटर लगातार डाउन हैं.
तस्वीर: Imago/Chromorange
10 तस्वीरें1 | 10
मामला सिर्फ पढ़ाई का ही नहीं है
इन परिस्थितियों का असर छात्रों की सिर्फ अकादमिक प्रगति पर ही नहीं पड़ रहा है बल्कि अन्य चीजें भी प्रभावित हो रही हैं क्योंकि स्कूल वो जगह है जहां जीवन जीने की कला सिखाई जाती है और छात्र एक दूसरे के संपर्क में आने से भी बहुत कुछ सीखते हैं. ओईसीडी के शिक्षा निदेशक एंड्रियास श्लीशर कहते हैं, "यह महज उस स्थान से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है जहां छात्र पढ़ाई करते हैं."
हालांकि ऐसा कहा जा रहा है कि कोविड-19 की वजह से युवा वर्ग को ज्यादा गंभीर बीमारियों का खतरा कम है लेकिन यदि दूसरे संदर्भों में देखें तो इस महामारी ने सबसे ज्यादा उन्हीं को प्रभावित किया है.
33 देशों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि 14 देशों में प्राइमरी स्कूलों को कम से कम एक बार बंद किया गया जबकि 11 देशों ने अपने यहां प्राइमरों स्कूलों को कई बार बंद किया. जर्मनी और इटली जैसे देशों में तस्वीर और ज्यादा खराब दिखती है जहां महामारी की वजह से स्कूलों पर राज्यों और क्षेत्रों की स्थिति के हिसाब से प्रभाव पड़ा है.
जर्मनी में ज्यादातर माध्यमिक स्कूलों को 15 से 30 दिनों तक बंद रखा गया. पड़ोसी देशों जैसे- फ्रांस, नीदरलैंड्स् और बेल्जियम की तुलना में यह बंदी काफी कम थी. इटली में स्कूलों को 101 दिन तक बंद रखा गया था. इटली पूरे यूरोप में इस महामारी से सबसे पहले और सबसे ज्यादा प्रभावित देश था.
विज्ञापन
संक्रमण पर प्रभाव
शिक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि स्कूलों को बंद रखने की वजह से युवाओं में इसका बहुत ही विपरीत प्रभाव पड़ा है. श्लीशर कहते हैं, "ध्यान देने वाली बात यह है कि यह पूरा दौर इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि स्कूल कितने दिन बंद थे."
सही आंकड़े आने अभी बाकी हैं लेकिन सरकारी स्वास्थ्य विभाग के ज्यादातर अधिकारियों को संदेह है कि छात्रों में लक्षण भले ही न दिखे हों लेकिन अपने घरों और अपने परिवारों तक उन्होंने कोविड-19 को जरूर पहुंचाया है.
इस बार कोरोना इतना घातक क्यों है?
04:43
डिजिटलाइजेशन सबसे अच्छा है
यह एक दिलचस्प बात है कि महामारी से पहले जिन देशों ने खुद को डिजिटल आधार पर बेहतर तरीके से तैयार किया था वो खुद को इस अवरोध से निपटने के लिए बेहतर तैयारी करने में सफल रहे. श्लीशर कहते हैं कि जर्मनी में ऑनलाइन पढ़ाई के लिए अचानक फैसला लेना पड़ा और इसे छात्रों की मर्जी पर छोड़ना पड़ा.
श्लीशर कहते हैं कि स्पेन और पुर्तगाल जैसे अन्य यूरोपीय देशों ने महामारी के दौरान पढ़ाई के लिए मास मीडिया का इस्तेमाल किया, "डिजिटल मीडिया का सहारा लेना वहां की सफलता के लिए एक अहम कारक साबित हुआ. यह ऐसी चीज है जिसे जर्मनी वहां से सीख सकता है."
लोग बंद स्कूलों को खोलना चाहते हैं
जर्मन परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन ने संक्रमण की बढ़ती दरों के बावजूद स्कूलों की बंदी को तत्काल खत्म करने का आह्वान किया है. इस संगठन ने कहा, "महीनों से हमारे बच्चे सामाजिक तौर पर एकांत में रह रहे हैं, एक दूसरे के संपर्क में नहीं हैं और एक दूसरे से कुछ सीखने में असमर्थ हैं. बढ़ने और सीखने की एकमात्र खिड़की को ही हमने बंद करके रखा हुआ है."
संगठन ने स्वास्थ नियमों और बचाव के अन्य उपायों के साथ स्कूलों को खोलने की अनुमति देने की मांग की है. देशव्यापी महामारी की स्थिति पर विचार करते हुए, जर्मनी उन स्कूलों को बंद कर रहा है जहां सात दिन तक संक्रमण की दर प्रति एक लाख व्यक्ति पर दो सौ से ज्यादा है. जर्मनी के ज्यादातर इलाकों में फिलहाल ऐसी ही स्थिति है.
जर्मनी में पढ़ना पसंद कर रहे हैं अंतरराष्ट्रीय छात्र
भारत से हर साल लाखों छात्र उच्च शिक्षा हासिल करने विदेश जाते हैं. यूनेस्को के 2018 के सर्वे के मुताबिक दुनिया भर 50 लाख छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए थे. डाड के मुताबिक भारतीयों में जर्मनी लोकप्रिय देश बन रहा है.
तस्वीर: DW/Sirsho Bandopadhyay
जर्मनी है पसंद
अमेरिका अब भी विदेश में जाकर पढ़ने वाले छात्रों का पसंदीदा देश है लेकिन बीत सालों में जर्मनी छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ है. वहीं भारत से जर्मनी जाने वाले छात्रों की संख्या बीते कुछ सालों में बढ़ी है. विश्व स्तर पर भी छात्रों की पसंद में बदलाव आया है. जर्मन अकैडमिक एक्सचेंज सर्विस यानी डाड के मुताबिक जर्मनी आने वाले छात्र सबसे ज्यादा चीन और भारत के हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Fischer
पिछड़ गया फ्रांस
जर्मनी में 13 फीसदी विदेशी छात्र चीन से आते हैं. वहीं भारत से आने वाले छात्रों की संख्या सात प्रतिशत है. उच्च शिक्षा के मामले में जर्मनी ने फ्रांस को पछाड़ते हुए तीसरा स्थान हासिल कर लिया है. अमेरिका पहले स्थान पर काबिज है और उसके बाद संयुक्त रूप से ब्रिटेन और चीन हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Grubitzsch
जर्मनी है आकर्षक
डाड के अध्यक्ष जॉयब्रतो मुखर्जी के मुताबिक विश्व स्तर पर कोरोना महामारी ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के आने जाने को बदल दिया है. यह अच्छा मौका है कि हम भविष्य के लिए छात्रों को समझाए कि यह देश शिक्षा के लिए अच्छा विकल्प है.
तस्वीर: picture alliance/ZB/J. Woitas
कहां-कहां से आते हैं जर्मनी
साल 2019 में चीन से 40,000 छात्र जर्मनी पढ़ाई के लिए पहुंचे, इसके बाद भारत से 20,600, सीरिया से 13,000, ऑस्ट्रिया से 11,500 और रूस से 10,500 छात्र पढ़ने के लिए पहुंचे. दिलचस्प बात यह है कि सीरिया से यहां पढ़ने वाले छात्रों की संख्या पिछले तीन साल में 275 फीसदी बढ़ी है. जर्मनी में पढ़ने वाले ज्यादातर सीरियाई छात्र शरणार्थी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/S. Ziese
उच्च शिक्षा के लिए घर से दूर
साल 2001 में 21 लाख छात्रों ने वैश्विक स्तर पर उच्च शिक्षा के लिए अपना घर छोड़ दूसरे देशों में गए. यह संख्या साल 2019 में बढ़कर 53 लाख हो गई. इस दौरान विदेशी छात्रों के बीच कनाडा और चीन आकर्षक देश बने तो वहीं अमेरिका की पकड़ थोड़ी ढीली हो रही है. एशिया के छोटे देश जैसे सिंगापुर भी छात्रों को अपनी ओर खींच रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Stratenschulte
जर्मनी में मौके
जर्मनी में उच्च शिक्षा से लेकर शोध तक में विदेशी छात्रों को कई मौके मिलते हैं. विज्ञान और आईटी के क्षेत्र में बड़ी संख्या में भारतीय छात्र जर्मनी में जाकर शोध करते हैं और अपनी प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शित करते हैं.
तस्वीर: Getty Images/J. Koch
स्कॉलरशिप से शिक्षा आसान
जर्मनी में छात्र स्कॉलरशिप पाने के बाद करीब-करीब मुफ्त शिक्षा पा लेते हैं. रहने के लिए हॉस्टल और खाना भी वहां अन्य देशों के मुकाबले सस्ता है. प्रांतों में यात्रा के लिए छात्रों को ट्रैवल पास भी दिया जाता है.