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ओजोन परत में बहुत बड़ा छेद

१८ अक्टूबर २०११

सूर्य की पराबैंगनी किरणों से धरती को बचाने वाली ओजोन परत में काफी बड़ा छेद हो चुका है. यह पांचवां मौका है जब आर्कटिक के ऊपर ओजोन परत में इतना विशाल छिद्र देखा गया है. वैज्ञानिकों को कई तरह की चिंताएं सता रही हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

ओजोन परत का अध्ययन करने वाले जेट प्रॉपल्सन लैबोरेटरी कैलीफोर्निया के वैज्ञानिकों ने ताजा रिपोर्ट तैयार की है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के सैटेलाइट्स से मिली तस्वीरों के आधार पर रिपोर्ट कहती है कि ओजोन परत पर उत्तरी अमेरिका के आकार जितना बड़ा छेद हो चुका है. इसका आकार 2.5 वर्ग किलोमीटर आंका गया है. वैज्ञानिक 1980 से ओजोन परत में हो रहे छिद्र का अध्ययन कर रहे हैं. हर साल ग्लोब के सबसे निचले हिस्से अंटार्कटिका में जाकर ओजोन परत पर नजर रखी जा रही है.

रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों को आशंका है कि ओजोन परत का छेद फैलकर दक्षिणी अमेरिका तक पहुंच सकता है. ऐसी परिस्थितियों में ब्राजील, चिली और पेरू समेत कई देशों को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा. सूरज की पराबैंगनी किरणों से त्वचा का कैंसर और मोतियाबिंद जैसी बीमारियां महामारी का रूप ले सकती हैं. ओजोन परत को वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है. रिपोर्ट कहती है, "रासायनिक क्रिया के चलते 2011 की शुरुआत में आर्कटिक के ऊपर रिकॉर्ड बड़ा छेद देखा गया है."

विज्ञान मामलों की पत्रिका नेचर में छपी इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तरी रूस के ऊपर ओजोन परत का छिद्र फिर से खुल रहा है. इन इलाकों में रहने वाले लोगों को पराबैंगनी किरणों के खतरे से आगाह किया गया है.

ओजोन की परत घटने से तापमान बढ़ने की चिंतातस्वीर: picture-alliance/dpa

वैज्ञानिक मानते है कि ओजोन परत के मामले में इंसान प्रदूषण फैलाने के बाद भाग्य के भरोसे रहता है. प्रदूषण के बाद आगे का काम कुदरतन होता है. ताकतवर हवाओं और बेहद ठंडे वातावरण की वजह से क्लोरीन के तत्व ओजोन परत के पास जमा होते हैं. अन्य रासायनिक तत्वों के साथ मिले क्लोरीन के अणु सूर्य की पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आने पर टूट जाते हैं. विखंडित क्लोरीन अणु ओजोन गैस से टकरा कर उसे ऑक्सीजन में तोड़ देते हैं. विघटित रासायनिक तत्व बादलों के संपर्क में आने पर अम्ल बनाते हैं.

वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रदूषण और मौसमी बदलावों की वजह से ओजोन परत को और ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है. ऐसी स्थिति में दक्षिणी ध्रुव की बर्फ तेजी से गलने लगेगी. समुद्रों का जलस्तर बढ़ने लगेगा. तटीय इलाकों के डूबने से करोड़ों लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा. ऐसा संकट समुद्री सीमा वाले देशों और उनके पड़ोसी देशों का आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ढांचा बिगाड़ कर रख देगा.

रिपोर्ट: रॉयटर्स/ओ सिंह

संपादन: वी कुमार

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