ओजोन परत में सुधार ने जगाई उम्मीद की किरण
१३ नवम्बर २०१८पृथ्वी का सुरक्षाकवच कहे जाने वाले ओजोन परत में सकारात्मक बदलाव आया है. इस परत में छेद होने की वजह से पर्यावरणविद पहले जहां चिंतित थे वहीं अब पता चला है कि साल 2000 से ओजोन परत में 2 फीसदी की दर से सुधार हो रहा है. उम्मीद की जा रही है कि सदी के मध्य तक यह परत पूरी तरह दुरुस्त हो जाएगी. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में इस सफलता की सराहना की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक अगर यह दर बरकरार रही तो 2030 तक उत्तरी गोलार्ध और 2050 तक दक्षिणी गोलार्ध पूरी तरह ठीक हो जाएगा. वहीं, अंटार्कटिका के ऊपर उत्तरी अमेरिका जितने बड़े छेद को भरने में 2060 तक का समय लगेगा.
हाल ही में इक्वाडोर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को लेकर 30वीं बैठक हुई जिसमें पर्यावरण से जुड़े फैसलों को मजबूती से लागू करने पर सहमति बनी. यह प्रोटोकॉल दरअसल ओजोन परत के संरक्षण के लिए बनी अंतरराष्ट्रीय संधि है. अगर यह वैश्विक समझौता नहीं होता तो ओजोन की परत 2065 तक खत्म हो चुकी होती. ओजोन परत में छेद होने से सूरज की खतरनाक पराबैंगनी किरणें धरती पर आती हैं, जो नुकसानदेह हैं. इससे स्किन कैंसर और मोतियाबिंद की समस्या हो सकती है.
अभी काम और बाकी
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की वजह से भले ही ओजोन परत को ठीक करने में सफलता मिली हो लेकिन शोधकर्ता एक खास गैस सीएफसी-11 से परेशान हैं. एनवायरमेंटल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (ईआईए) ने बीते जुलाई में इसके लिए चीन को जिम्मेदार बताया था. जांचकर्ताओं का कहना है कि चीन की 18 फैक्टरियों में अब भी प्रतिबंधित सीएफसी (क्लोरोफ्लोरोकार्बन) का इस्तेमाल किया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र की ओजोन लेयर रिपोर्ट के सहलेखक पॉल न्यूमैन के मुताबिक, ''अगर सीएफसी-11 का इसी तरह उत्सर्जन होता रहा तो अंटार्कटिक क्षेत्र की ओजोन लेयर को ठीक होने में सात से 20 वर्षों तक की देरी हो जाएगी.''
ओजोन परत में सुधार के बावजूद वैज्ञानिक मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को लेकर चिंतित हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम के प्रवक्ता कीथ वेलर का कहना है, ''अगर ओजोन का क्षरण करने वाले रसायनों में कोई वृद्धि होती है, जैसा हम सीएफसी-11 में देख चुके हैं, तो इससे न सिर्फ पिछले 30 वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा बल्कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की प्रतिष्ठा पर भी आंच आएगी.''
ओजोन में सुधार के नुकसान
ओजोन परत में सुधार के कुछ नुकसान भी हैं. ओजोन परत के ठीक होने से अंटार्कटिक क्षेत्र में थोड़ी गर्मी बढ़ जाएगी. हालांकि वैज्ञानिक अभी तक कह नहीं पा रहे हैं कि ओजोन परत के सुधरने से अंटार्कटिक क्षेत्र में कितना तापमान बढ़ेगा, लेकिन यह उन्हें मालूम है कि इस क्षेत्र में असर पड़ेगा, जो पहले ही इंसानों द्वारा निर्मित जलवायु परिवर्तन से जूझ रहा है.
न्यूमैन मानते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने से वैश्विक तापमान में कमी होगी जो जलवायु के लिए अच्छा होगा. वह कहते हैं, ''जलवायु परिवर्तन और ओजोन परत में क्षरण अलग-अलग मुद्दे हैं, लेकिन दोनों कहीं न कहीं रोचक तरीके से जुड़े हुए हैं.''
शाय माइनेके/वीसी
धरती को बचाना है तो मांसाहार छोड़िए