ओडिशा के तटीय इलाकों में बारिश अपने साथ खुशियां लेकर आती है. लेकिन झुग्गियों में रहने वाले हजारों लोगों के लिए यह विपदा से कम नहीं है. यहां बारिश और चक्रवात से उनका घर उजड़ जाता है. लेकिन भविष्य में ऐसा नहीं होगा.
विज्ञापन
हर साल बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनने वाला चक्रवात तटीय ओडिशा के गोपालपुर शहर की बस्तियों को तबाह कर देता है. यहां के ज्यादातर घर कच्चे हैं और तेज हवा अपने साथ टिन की छतों और कमजोर दीवारों को गिरा देती है. 1999 की तबाही को सोचकर आज भी लोग सिहर उठते हैं जिसमें 10 हजार लोगों की जानें गई थीं और करीब 15 मकान तबाह हो गए थे. लेकिन इस बार हालात सुधारने की कोशिश है. ओडिशा सरकार की योजना के मुताबिक, इस बार बस्ती में रहने वालों को घर बनाने के लिए उसी बस्ती में जमीन और कर्ज दिया जाएगा. इससे करीब 10 लाख लोगों को फायदा होगा.ॉ
बेघर लोगों का गांव
जिन लोगों के पास घर और स्थायी पता नहीं होता, वो अपनी जिंदगी कैसे संवारें? इसी सवाल के साथ जबाव खोजते हुए स्कॉटलैंड में बेघर लोगों के लिए एक गांव बसाया गया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Buchanan
मिल गई छत
यह है "सोशल बाइट विलेज" नाम का स्कॉटिश गांव. बेघर लोग यहां रह सकते हैं, खाना पीना खा सकते हैं. बेघर लोगों के हकों की आवाज बुलंद करने वाले लोग खाने पीने का खर्च उठाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Buchanan
डेढ़ साल तक टेंशन फ्री
12 से 18 महीने तक बेघर लोग इन घरों में मुफ्त में रह सकते हैं. इस दौरान संस्था उनके लिए नौकरी और नया घर खोजने की कोशिश करती है. सोशल बाइट विलेज एडिनबरा शहर में है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Buchanan
हर तरह की सुविधा
हर घर में एक बेडरूम, ओपन किचन और बाथरूम है. किचन में सारे बर्तन और औजार मौजूद हैं. मनोरंजन के लिए एक टेलिविजन भी है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Buchanan
लकड़ी के घर
सारे मकान टिकाऊ ढंग से उगाए गए जंगल की लकड़ी से बने हैं. बाहरी दीवारें 25 सेंटीमीटर मोटी हैं. घर सर्दियों में गुनगुने और गर्मियों में ठंडे रहते हैं
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Buchanan
सुकून भरा कोना
बेडरूम बहुत बड़ा नहीं है लेकिन आरामदायक है. मकानों को इस ढंग से बनाया गया है कि ज्यादा से ज्यादा जगह बचाई जा सके.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Buchanan
मानवीय मदद
सोशल बाइट का मकसद बेघर लोगों को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करना है. 18 महीने तक यहां रहने के दौरान बेघर लोगों की छत की चिंता दूर हो जाती है. फाउंडेशन के कर्मचारी सोनी मरे (बाएं) कॉलिन चाइल्ड्स (दाएं) भी कभी बेघर थे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Buchanan
सामाजिक पहल के जनक
सोशल बाइट विलेज प्रोजेक्ट के लिए पहल करने वालों में जोश लिटिल जॉन की अहम भूमिका है. वह मानते हैं कि गरीबी से घिरे इंसान में भी प्रतिभा होती है, उसे बस सहारे की जरूरत पड़ती है. लिटिल जॉन इस प्रोजेक्ट को दुनिया भर के शहरों में फैलाना चाहते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Buchanan
7 तस्वीरें1 | 7
यहां रहने वाली नीलाबेनी बताती हैं, ''हमारे घर हमेशा कच्चे रहे. हर साल बारिश के बाद अपनी जमापूंजी को नया घर बनाने में लगा देते थे और फिर वह बारिश से उजड़ जाता था.'' जमीन के कागजात दिखाते हुए वह कहती हैं, ''पहली बार कागज पर मेरे पति का नहीं बल्कि मेरा नाम है. पूरे घर पर मेरा हक होगा.''
2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में करीब 6.5 करोड़ लोग झुग्गियों वाली बस्तियों में रहते हैं. 2025 तक देश की आधी आबादी शहरों की ओर पलायन कर जाएगी. ऐसे में सरकार के पास इन्हें बसाना बड़ी चुनौती है. राज्य सरकारों ने सड़कों को चौड़ा करने और निकासी की व्यवस्था पर ध्यान देना शुरू किया है.
हाउसिंग विभाग के कमिश्नर जीएम वथानन कहते हैं, ''जो लोग गांवों से शहर में आए उन्हें कब्जा करने वाला माना जाता है. ये शहर के बाहरी हिस्से में नहीं रहना चाहते क्योंकि काम के लिए उन्हें शहर आना-जाना पड़ता है. ऐसे में झुग्गी बस्तियों को ही विकसित करना सही है.''
इस योजना के लिए इन बस्तियों की ड्रोन कैमरों से मैपिंग की गई और जमीनों का बंटवारा किया गया. उम्मीद की जा रही है कि इस साल के अंत तक घर बनकर तैयार हो जाएंगे. वथानन कहते हैं, ''हम जमीनों की कीमत इतनी बढ़ा चुके हैं कि हम इंसान की कीमत भूल चुके हैं. इस योजना से लाखों लोगों को फायदा होगा.''
वीसी/एमजे (रॉयटर्स)
बिना रोहिंग्या अब ऐसा दिख रहा है रखाइन
बिना रोहिंग्या अब ऐसा दिख रहा है रखाइन
पिछले साल म्यांमार के उत्तरी रखाइन में हुई हिंसा ने देश के अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, जिसके चलते गांव खाली हो गए. लेकिन अब रखाइन के इलाकों को फिर से बसाया जा रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. H. Kyaw
बन रहा मॉडल गांव
रखाइन के इस इलाके में अब बौद्ध धर्म के झंडे नजर आने लगे हैं. इस क्षेत्र को एक मॉडल गांव की शक्ल दी जा रही है. रोहिंग्या मुसलमानों पर हुई हिंसा को नकारने वाली म्यांमार सरकार कहती आई है कि गांवों को इसलिए साफ किया गया है ताकि वहां लोगों को फिर से बसाने की योजना पर काम किया जा सके. इसके तहत बेहतर सड़कें और घर बनाए जाएंगे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. H. Kyaw
आ रहे हैं नए लोग
पलायन कर रखाइन पहुंचे देश के अन्य इलाकों के लोगों को यहां बसाया जा सकता है. हालांकि जो लोग इस क्षेत्र में अब रहने आए हैं वे देश के दक्षिणी इलाके से आए गरीब हैं जिनकी संख्या फिलहाल काफी कम है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. H. Kyaw
लोगों में डर
ये नए लोग इन इलाकों में काफी उम्मीदों के साथ रहने आए हैं. लेकिन अब भी उन्हें यहां से भागे लोगों के वापस आने का डर सताता है. अब तक तकरीबन सात लाख रोहिंग्या म्यांमार से बांग्लादेश भाग चुके हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. H. Kyaw
गैर मुस्लिमों वाला बफर जोन
इस क्षेत्र के पुनर्निमाण के लिए देश में "कमेटी फॉर द रिक्सट्रंक्शन ऑफ रखाइन नेशनल टेरिटरी" (सीआरआर) का गठन किया गया. कमेटी को रिफ्यूजी संकट के बाद ही बनाया गया था. एक स्थानीय नेता के मुताबिक सीआरआर की योजना इस क्षेत्र को गैर मुस्लिमों वाले बफर जोन के रूप में स्थापित करने की है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. H. Kyaw
सीआरआर जुटाएगा पैसा
रखाइन से सांसद ओ हला सा का कहना है कि अब तक ये क्षेत्र मुस्लिमों के प्रभाव में रहा है. लेकिन अब जब वे यहां से चले गए हैं तो इसमें रखाइन के लोगों को जगह मिलेगी. उन्होंने बताया कि सीआरआर यहां रहने वालों के लिए घर और पैसे जुटाने का काम करेगी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. H. Kyaw
64 परिवार पहुंचे
इस क्षेत्र में अब तक सीआरआर ने 64 परिवारों के 250 लोगों को रहने की इजाजत दी है. इसके अलावा 200 परिवारों के रहने को लेकर विचार किया जा रहा है जो फिलहाल वेटिंग लिस्ट में है. इनमें से अधिकतर दिहाड़ी मजदूर या गरीब तबके से आने वाले लोग हैं.