ओबामा और नेतनयाहू के बीच खरी खरी
२१ मई २०११![President Barack Obama meets with Prime Minister Benjamin Netanyahu of Israel in the Oval Office at the White House in Washington, Friday, May 20, 2011. (Foto:Charles Dharapak/AP/dapd)](https://static.dw.com/image/15094202_800.webp)
बराक ओबामा के बयान पर इस्राएल की तरफ से काफी कड़ी प्रतिक्रिया हुई है. नेतनयाहू ने कहा कि इस्राएल कभी भी 1967 की सीमाओं को स्वीकार नहीं करेगा. अमेरिकी राष्ट्रपति ने सुझाव दिया था कि फलीस्तीन और इस्राएल को 1967 की सीमाओं को स्वीकार कर लेना चाहिए.
नेतनयाहू की खरी खरी
नेतनयाहू ने गुरुवार को वॉशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात की. इसके बाद ओबामा और नेतनयाहू ने पत्रकारों से बात की. इस दौरान इस्राएली प्रधानमंत्री बहुत ही गंभीर नजर आए. उन्होंने कहा, "भ्रम पर आधारित शांति आखिरकार मध्य पूर्व के सच की चट्टानों पर गिरकर ध्वस्त हो जाएगी."
नेतनयाहू ने जोर दिया कि इस्राएल शांति के लिए समझौते करने को तैयार है लेकिन उन्होंने साफ साफ कहा कि शांति प्रक्रिया को लेकर उनके अमेरिका से मतभेद हैं.
ओबामा की मिली जुली
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि वह सिर्फ शांति चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इस्राएल और अमेरिका के बीच फलीस्तीनियों के भविष्य को लेकर मतभेद तो हैं, लेकिन ऐसे मतभेद दोस्तों के बीच होते रहते हैं.
पत्रकारों से बातचीत के दौरान ओबामा ने सीमाओं का मुद्दा नहीं उठाया. उन्होंने कहा, "फलीस्तीनियों के सामने काफी मुश्किलें हैं. लेकिन सच्ची शांति तभी हासिल की जा सकती है, जब इस्राएल के पास अपनी सुरक्षा का अधिकार हो."
मुश्किल है सफर
इस्राएल की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद सवाल उठता है कि ओबामा मध्य पूर्व की शांति की खातिर कितना ज्यादा जोर लगा सकते हैं और क्या अमेरिकी राष्ट्रपति का सुझाव दशकों पुराने मध्य पूर्व झगड़े को खत्म कर सकता है.
इस्राएल और फलीस्तीन के नेता दोस्ती को आगे बढ़ाने की बात तो करते रहे हैं लेकिन ओबामा के बयान के बाद जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं, उससे जाहिर कि ओबामा प्रशासन के लिए आने वाला समय आसान नहीं होगा.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ईशा भाटिया