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ओबामा के तानों पर चुप क्यों है चीन

१५ नवम्बर २०११

ऐसा लगता है कि चीन अमेरिका के साथ किसी भी तरह की खींचतान से बचना चाह रहा है. इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तीखी टिप्पणियों का जवाब उसने बहुत शांति से दिया है.

तस्वीर: AP

ओबामा के बयान पर चीन का कहना है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर संबंधों से ही फायदा होगा.

अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था कि चीन को अपनी मौद्रिक और व्यापारिक नीतियों में बदलाव करना होगा. उन्होंने कहा कि अमेरिका चीन की मुद्रा संबंधी नीतियों से तंग आ चुका है. चीन के सहायक विदेश मंत्री लिउ जेनमिन ने ओबामा की टिप्पणी का सीधे सीधे कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति ओबामा के बयान का मतलब तो आपको व्हाइट हाउस और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से पूछना चाहिए. चीन और अमेरिका आर्थिक साझीदार हैं और दोनों की एक दूसरे के लिए अहमियत है."

क्यों बौखलाया है अमेरिका

चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ इसी हफ्ते के आखिर में इंडोनेशिया की राजधानी बाली में होने वाले आसियान और पूर्वी एशिया सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. ओबामा भी वहां पहुंचेंगे. पहली बार पूर्व एशिया सम्मेलन में कोई अमेरिकी राष्ट्रपति हिस्सा ले रहा है. लिउ ने बताया कि सम्मेलन के दौरान दोनों नेताओं की मुलाकात होगी. लिउ ने कहा, "मेरे ख्याल से वैश्विकरण और एशिया प्रशांत क्षेत्र के विकास के साथ साथ अमेरिका और चीन के बीच भी आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को मजबूत करने की भरपूर गुंजाइश है."

तस्वीर: dapd

चीन और अमेरिका के बीच ताजा तनाव की वजह एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन (एपेक) में पेश किया गया मुक्त व्यापार समझौते का अमेरिकी प्रस्ताव है. अमेरिका इस समझौते का अगुआ बनना चाहता है. वह इस समझौते को चीन के बढ़ते प्रभाव की बराबरी की एक ताकत के रूप में खड़ा करना चाहता है. इसलिए चीन इससे संतुष्ट नहीं है क्योंकि उसका मानना है कि अमेरिका उसे अपने हिसाब से चलने पर मजबूर करने की कोशिश में ऐसा कर रहा है.

चीन चुप क्यों

बीते हफ्ते हवाई में एपेक सम्मेलन के दौरान ओबामा चीनी राष्ट्रपति हू जिनताओ से मिले थे. उसके बाद उन्होंने जो बयान दिए उनमें बेहद सख्त जबान का इस्तेमाल हुआ. उन्होंने कहा कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं को खेल खेलने बंद करने चाहिए और जिम्मेदारियां निभानी चाहिए. बेशक, चीन की सरकार ऐसी टिप्पणियों से खुश नहीं होगी. लेकिन इस पूरे साल तनाव के दौरान चीनी नेतृत्व ने यही दिखाया है कि वे अमेरिका के साथ संबंधों को स्थिर बनाए रखना चाहते हैं. वे ऐसी कोई बात नहीं चाहते जो 2012 के आखिर में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में बदलाव पर लगे उनके ध्यान को भटकाए. चीन ने तो तब भी आक्रामक रुख नहीं दिखाया जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने तिब्बती नेता दलाई लामा से मुलाकात की और ताईवान के साथ हथियार समझौता किया. ये दोनों चीन की दुखती रग हैं लेकिन वह इस दर्द को पी गया.

क्यों

बीजिंग की रेनमिन यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पढ़ाने वाले प्रोफेसर शि यिनहोंग कहते हैं, "ओबामा की तीखी टिप्पणियां हैरान नहीं करतीं क्योंकि वह अपने घर में आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहे हैं. अमेरिकियों का मूड खराब है. फिर चुनाव भी होने हैं, जो व्यापारिक तनाव को और बढ़ा सकते हैं. लेकिन चीन अपनी उसी चाल पर चलता रहेगा कि सीधे झगड़ों से बचा जाए. वह स्थिरता सुनिश्चित करना चाहता है."

चीन और अमेरिके के बीच काफी समय से चले आ रहे विभिन्न तनावों की जड़ में मुद्रा विवाद ही है. अमेरिका का आरोप है कि चीन अपनी मुद्रा युआन की कीमत जानबूझकर कम रखे हुए है ताकि उसे निर्यात में फायदा मिले. चीन का तर्क है कि मुद्रा की कीमत धीरे धीरे बढ़नी चाहिए ताकि आर्थिक संतुलन बिगड़े नहीं और बेरोजगारी न बढ़े क्योंकि उससे वैश्विक विकास प्रभावित होगा.

रिपोर्टः एएफपी/रॉयटर्स/वी कुमार

संपादनः आभा एम

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