तंबाकू दुनिया भर में ओरल कैंसर की बड़ी वजह है और भारत में पुरुषों के लिए इस प्रकार का कैंसर सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है.
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18 साल के मुकेश को जब ओरल कैंसर होने का पता चला, तब तक काफी देर हो चुकी थी और वह इस बीमारी की चौथी अवस्था में पहुंच चुके थे. उन्हें रेडिएशन थेरेपी दी गई और ऊपरी जबड़ा भी निकालना पड़ा क्योंकि कैंसर काफी फैल चुका था.
मुकेश के मामले में तंबाकू के मामूली सेवन के साथ जो शुरुआत हुई थी, वह धीरे धीरे इस हद तक बढ़ गया कि उसकी ओरल कैविटी में अल्सर पनपने लगे. इससे मुकेश की तकलीफ बढ़ गई थी और कई बार इन घावों से रक्तस्राव भी होने लगा था. तब मुकेश ने अपनी इस आदत से छुटकारा पाने का मन बनाया लेकिन इससे कुछ फायदा नहीं हुआ क्योंकि तब तक काफी नुकसान हो चुका था.
ओरल कैंसर के अधिकांश मामलों में यही होता है. अक्सर भूख का अहसास मिटाने के लिए तंबाकू चबाने की आदत पड़ जाती है और कई बार लोगों को इसका स्वाद भी पसंद आ जाता है जो जल्द ही लत बन जाती है.
सबसे खतरनाक कैंसर ये हैं
कितने तरह के कैंसर जानते हैं आप?
'कैंसर' एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही डर लगने लगता है. एक बार शरीर में कैंसर पहुंच जाए, तो वह शरीर के अलग अलग हिस्सों में फैल सकता है. जानिए कुछ सबसे खतरनाक कैंसर के बारे में.
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ब्रेस्ट कैंसर
स्तन का कैंसर महिलाओं में पाया जाने वाला सबसे आम कैंसर है. हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री एंजेलीना जोली को ब्रेस्ट कैंसर के खतरे के कारण अपने स्तन हटवाने पड़े थे.
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पैंक्रियास का कैंसर
पेट के पीछे छोटी सी पाचक ग्रंथि होती है, जो पाचन प्रक्रिया में हमारी मदद करती है. एप्पल के सीईओ स्टीव जॉब्स को पाचक ग्रंथि का कैंसर था. आठ साल तक इससे लड़ने के बाद उनकी जान चली गयी.
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फेफड़ों का कैंसर
धूम्रपान के कारण होने वाला सबसे आम कैंसर फेफड़ों का है. प्रदूषित हवा में सांस लेने से भी इसका खतरा बढ़ता है. बच्चों में इसका खतरा ज्यादा होता है क्योंकि वे बड़ों की तुलना में सांस के साथ अधिक हवा शरीर में लेते हैं.
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खून का कैंसर
फिल्म 'आनंद' में राजेश खन्ना को एक खास किस्म का खून का कैंसर था. इस फिल्म ने लोगों का ध्यान इस बीमारी की ओर खींचा जिसके बारे में पहले बहुत बात नहीं हुआ करती थी.
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ब्रेन ट्यूमर
आम तौर पर सिगरेट और शराब को कैंसर के लिए जिम्मेदार माना जाता है लेकिन ज्यादातर मामलों में दिमाग के कैंसर की यह वजह नहीं होती. इसमें दिमाग की कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं.
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कोलन कैंसर
आंत का कैंसर अधिकतर 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में देखा जाता है. आंतों में असामान्य रूप से गांठें बनने लगती हैं, जो सालों तक वहां रह सकती हैं लेकिन आखिरकार कैंसर का रूप ले लेती हैं.
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प्रोस्टेट कैंसर
अमेरिका में पुरुषों के कैंसर में सबसे आम प्रोस्टेट ग्रंथि का है. इसी ग्रंथि में शुक्राणु होते हैं. इस कैंसर के शुरुआती दौर में कोई लक्षण नहीं होते, इसलिए जब तक इसके बारे में पता चलता है, इलाज काफी मुश्किल हो जाता है.
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लीवर का कैंसर
लीवर यानि यकृत के कैंसर की सबसे बड़ी वजह है शराब. यह सबसे आम किस्म का कैंसर है. कई बार कैंसर शरीर में कहीं और शुरू होता है और फिर लीवर तक पहुंचता है.
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इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (एनसीआरपी) के आंकड़ों के मुताबिक, 2017 में भारत के चार बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में ओरल कैंसर के 15.17 लाख मामले सामने आए. उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 12.5 लाख मामले दर्ज किए गए हैं.
मैक्स हैल्थकेयर के डिपार्टमेंट ऑफ ओंकोलॉजी के प्रिंसिपल कन्सल्टेंट डॉ. गगन सैनी ने कहा, "ओरल कैंसर के अन्य कारणों में पारिवारिक इतिहास भी अहम है. कैंसर मरीजों में आनुवांशिकी की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन ओरल कैंसर के जो मरीज रेडिएशन थेरेपी के लिए आते हैं, उनके मामलों में ज्यादातर कारण तंबाकू सेवन ही होता है."
प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के साइड इफेक्ट
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उन्होंने कहा, "पिछले दो दशकों के अपने अनुभवों के दौरान मैंने पाया कि जिन 10,000 मरीजों का मैंने उपचार किया है उनमें से करीब 3900-4000 ओरल कैंसर से ग्रस्त थे. यह मेरे पास इलाज के लिए आने वाले मरीजों का 40 फीसदी है. सर्वाधिक मामले उत्तर भारत से दर्ज किए गए और खासतौर से मेरे पास उत्तर प्रदेश के मरीज आए. भारत के जिन अन्य राज्यों में तंबाकू सेवन ज्यादा पाया जाता है उनमें देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र अग्रणी हैं."
भारत में वयस्कों की मौत के लिए कैंसर सबसे प्रमुख कारणों में से है और विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2008 में यह 634,000 मौतों और करीब 949,000 नए मामलों का कारण बना था. इस रिपोर्ट से यह भी खुलासा हुआ है कि भारत में पुरुषों में सिर और गर्दन कैंसर और ओरल कैविटी, लिप, फैरिंक्स और लैरिंक्स कैंसर अकसर पाया जाता है. इनकी वजह से हर साल, देश में 105,000 नए मामले और 78,000 मौतें होती हैं. महिलाओं में, ओरल कैंसर मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण है.
इन कारणों से जाती हैं भारत में जान
इन कारणों के चलते भारत में जाती हैं जानें
भारत में होने वाली 61 फीसदी मौतें गैर-संक्रामक बीमारियों के चलते होती है जिसमें दिल की बीमारियां, कैंसर और डायबिटीज प्रमुख हैं. वहीं कुछ संक्रामक बीमारियां भी हैं जिन्हें साफ-सफाई पर ध्यान देखकर रोका जा सकता है.
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1. दिल की बीमारियां
बदलते लाइफस्टाइल में आज लोगों को काफी छोटी उम्र में ही दिल से जुड़ी शिकायतें होने लगती है. कुछ स्टडीज यह भी दावा करती हैं कि दिल का बीमारियों का संबंध अवसाद से होता है, जो व्यक्ति के लिए घातक हो सकता है.
फेफड़ों की बीमारियों से ग्रस्त लोगों को सांस लेने में दिक्कत और कफ की समस्या महसूस होती है. यह बीमारियां उम्र बढ़ने के साथ-साथ और भी गंभीर हो जाती हैं. इसका एक बड़ा कारण दूषित हवा में सांस लेना है.
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3. डायरिया संबंधी रोग
डायरिया संबंधी रोग देश में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत का दूसरा बड़ा कारण हैं. इन बीमारियों से साफ-पानी और साफ-सफाई रख कर बचा भी जा सकता है. डायरिया के चलते हर साल करीब 5.25 लाख बच्चे मारे जाते हैं.
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4. सरबोवेसकुलर बीमारियां
इन बीमारियों का सीधा संबंध मस्तिष्क तक रक्त पहुंचाने वाली धमनियों और कोशिकाओं (ब्लड वैसल) से होता है. जो आर्टरीज मस्तिष्क तक ऑक्सीजन और जरूरी पदार्थों की आपूर्ति करती हैं, उनमें अगर कोई मुश्किल आती है तो ये बीमारियां और डिसऑर्डर जन्म लेते हैं.
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5. श्वसन संक्रमण
इसे लोउर रेस्पिरेटरी ट्रेक्ट इनफेक्शन भी कहते हैं, जिसे आम बोलचाल में निमोनिया और फेफड़ों के अन्य इंफेक्शन के लिए प्रयोग किया जाता है. इसमें ब्रोंकाइटिस भी शामिल है. बुखार, कमजोरी, कफ, थकान इस संक्रमण के लक्षण होते हैं.
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6. ट्यूबरक्लोसिस (टीबी)
एक खास तरह के बैक्टेरिया से होने वाली ये बीमारी आमतौर पर फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है. लेकिन यह शरीर के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित कर सकती है. टीबी एक संक्रामक बीमारी है, जिसका बैक्टेरिया हवा के जरिए किसी स्वस्थ शरीर में जा सकता है.
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7. डायबिटीज
डायबिटीज का सीधा संबंध खून में मौजूद शकर के स्तर से होता है. जिन लोगों के खून में शकर की मात्रा बढ़ जाती है उनके शरीर की पाचक-ग्रंथियां इंसुलिन का उत्पादन कम करती हैं. यही स्थिति डायबिटीज की होती है. आज यह एक लाइफस्टाइल बीमारी बन गई है.
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8. रोड एक्सीडेंट
रोड एक्सीडेंट के मामले भी बीते कुछ सालों में तेजी से बढ़े हैं. प्रशासन ने हेलमेट पहनने से लेकर स्पीड लिमिट तक के कई नियम बनाए हैं, लेकिन सड़कों पर इनका अमल नहीं होता. वहीं शराब पीकर गाड़ी चलाना देश में एक बड़ी समस्या बन गया है.
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9. किडनी की बीमारियां
मानव शरीर में किडनी का काम कचरा जमा कर उसे मूत्र के रूप में बाहर निकालना होता है. जब किडनी को बीमारी लग जाती है तो यह अपना काम ठीक से नहीं कर पाती और शरीर में बड़े स्तर पर कचरा जमा हो जाता है, जो कई मामलों में जानलेवा भी साबित होता है.
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10. स्वयं को नुकसान
स्वयं को नुकसान पहुंचा कर मौत को गले लगाना भी देश की बड़ी समस्या बन गया है. इसमें आत्महत्या, अवसाद जैसे कारण प्रमुख हैं. इंटरनेट युग में कई खेल और सनकीपन भी लोगों की जान का दुश्मन बन रहा है.
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डॉ गगन सैनी ने कहा, "इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के प्रोजेक्ट में, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन का समर्थन हासिल था, यह पाया गया है कि भारत में पुरुषों की मौतों के 40.43 प्रतिशत मामलों में तंबाकू सेवन ही प्रमुख रूप से दोषी है. तंबाकू सेवन सर्वाधिक प्रमुख कारण है और यह राष्ट्रीय बोझ की तरह है. फेफड़ों, मुंह और फैरिंक्स का कैंसर और कुछ हद तक ईसोफैगस का कैंसर तंबाकू प्रयोग से जुड़ा है. कैंसर नियंत्रण रणनीतियों को लागू कर इन अंगों/भागों में कैंसर से बचा जा सकता है."
डॉ. गगन सैनी ने कहा, "शुरुआती संकेतों और लक्षणों में मुंह और जीभ की सतह पर दाग या धब्बे उभर सकते हैं. ये लाल या सफेद रंग के हो सकते हैं. मुंह का अल्सर या छाले होना, तीन हफ्तों से अधिक बने रहने वाली सूजन, त्वचा या मुंह की सतह में गांठ या उसका कड़ा होना, निगलने में परेशानी, बिना किसी वजह के दांत ढीले पड़ना, मसूढ़ों में दर्द या कड़ापन, गले में दर्द, गले में हर वक्त कुछ फंसे रहने का अहसास, जीभ में दर्द, आवाज में भारीपन और गर्दन या कान में दर्द होना, ये लक्षण हमेशा कैंसर के होने का ही संकेत नहीं होते लेकिन ऐसे में पूरी जांच और ठीक से इलाज के लिए ओंकोलॉजिस्ट से परामर्श जरूरी है."
क्रोनो थेरेपी के जरिए कैंसर का इलाज
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डॉ. सैनी ने कहा, "ओरल कैंसर का इलाज काफी मुश्किल हो सकता है और मरीज को रेडिएशन और कीमो की वजह से कई तरह के साइड इफेक्ट्स का भी सामना करना पड़ सकता है. रोग के चौथे चरण में इलाज की स्थिति में मुंह की संरचना भी बिगड़ सकती है और कई बार मरीज के फेशियल स्ट्रक्चर को सामान्य बनाने के लिए कॉस्मेटिक सर्जरी भी करानी पड़ती है. ओरल कैंसर के उन्नत उपचार में रेडियोथेरेपी तथा कीमोथेरेपी दी जाती है ताकि मरीज का शीघ्र उपचार किया जा सके."
उन्होंने कहा, "ओरल कैंसर की एडवांस स्टेज में उपचार के लिए सर्जरी के साथ-साथ रेडिएशन थेरेपी, कीमोथेरेपी या टारगेटेड थेरेपी दी जाती है. संपूर्ण उपचार के लिए ये थेरेपी आंख के नजदीक दी जाती है या कई बार ओरल कैंसर की वजह से मरीज की नजर भी पूरी तरह खराब हो सकती है. ट्यूमर रीसेक्शन जैसी सर्जरी ट्यूमर को हटाने के लिए दी जाती हैं, होंठों के लिए माइक्रोग्राफिक सर्जरी, जीभ के लिए ग्लासेक्टमी जिसमें जीभ निकाली जाती है, मुख के तालु के अगले भाग को हटाने के लिए मैक्सीलेक्टमी, वॉयस बॉक्स निकालने के लिए लैरिंजेक्टमी की जाती है."
कैंसर दुनियाभर में मौत का एक प्रमुख कारण है और 2008 में इसकी वजह से 76 लाख मौतें (सभी मौतों में लगभग 13 फीसदी) हुई थीं. 2030 में दुनियाभर में कैंसर की वजह से करीब 1.31 करोड़ मौतों की आशंका जताई गई है.
आईएएनएस
आधे से अधिक भारतीय हैं आलसी
अच्छी सेहत की चाह सबको होती है, लेकिन इसके लिए जरूरी कोशिशें करने में लोगों को आलस आता है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की एक रिपोर्ट कहती है कि आधे से अधिक भारतीय सुस्ती और आलस का शिकार हैं.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
लाइफस्टाइल
रिपोर्ट में कहा गया है कि शारीरिक निष्क्रियता भारत में काफी ज्यादा है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा है कि देश में करीब 54.4 फीसदी लोग स्वास्थ्य गतिविधियों को लेकर सक्रिय नहीं हैं.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
पुरुष सक्रिय
रिपोर्ट कहती है कि देश के पुरुष महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सक्रिय होते हैं. वहीं महज 10 फीसदी लोग ही मनोरंजक शारीरिक गतिविधियों के लिए समय निकाल पाते हैं. इसके अलावा लोगों काफी वक्त अपने काम और दफ्तर की भाग-दौड़ में लगाते हैं.
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बढ़ता स्वास्थ्य खर्च
इसी शारीरिक सुस्ती के चलते लोगों में गंभीर बीमारियों के खतरे में इजाफा हुआ है. इसके अलावा यह सुस्ती कुल क्षमता को प्रभावित करती है. साथ ही स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को भी बढ़ाती है.
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मौत का जोखिम
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक शारीरिक निष्क्रियता, दुनिया भर में होने वाली मौतों का चौथा बड़ा कारण हैं. लगभग 6 फीसदी मौतें इसके चलते होती हैं.
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दुनिया का हाल
रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में हर पांच में से एक वयस्क और हर पांच में से चार किशोर, जरूरी स्वास्थ्य गतिविधियों में शामिल नहीं होते. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़े बताते हैं कि यह सुस्ती स्वास्थ्य व्यवस्था पर 54 अरब डॉलर का बोझ डालती है.
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कैंसर का खतरा
रिपोर्ट में कहा गया है, स्तन और कोलन कैंसर के करीब 21-25 फीसदी मामलों में, डायबिटीज के 27 फीसदी और दिल से जुड़ी बीमारियों के 30 फीसदी मामले में शारीरिक निष्क्रियता को जिम्मेदार माना जाता है.