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ओसामा की मौत, अमेरिका का 'कमबैक'

३ मई २०११

ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद जर्मन मीडिया में अलग अलग प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं. साथ ही बिन लादेन के मारे जाने का आतंकवाद के खिलाफ जंग पर क्या असर होगा इस पर भी स्थानीय मीडिया में बहस चल रही है.

तस्वीर: picture alliance / dpa

वैसे तो जर्मनी के हर छोटे बड़े अखबार में ओसामा बिन लादेन की तस्वीर और उसके मारे जाने की खबरों के साथ साथ सारी छोटी बड़ी बातें भी छापी गईं. लेकिन देश में बिन लादेन पर बहस चल रही है, उसकी मौत के हालात से लेकर पाकिस्तान के आसपास के देशों के रवैये तक.

ओसामा बने आइकन

ज्यूडडॉयचे त्साइटुंग का मानना है कि ओसामा बिन लादेन को इतनी अहमियत इसलिए मिली क्योंकि जॉर्ज बुश नें 11 सितंबर 2001 में न्यू यॉर्क हमलों के बाद ओसामा के जरिए आतंकवाद को एक पहचान दी. "अमेरिका और सबसे ज्यादा बुश की सरकार ने आतंकवाद को एक चेहरा दिया और इस वजह से ओसामा बिन लादेन एक आइकन बन गया. इस आदमी की मौत से वॉशिंगटन और न्यू यॉर्क में राहत और जीत का अहसास हो रहा है. दोनों ही धोखा देने वाली भावनाएं हैं- आतंकवाद पर जीत नहीं हुई है... पर अमेरिका आजाद भी नहीं है."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

आतंकवाद की लड़ाई पाकिस्तान में?

उधर फ्रांकफुर्टर आल्गेमाइने त्साइटुंग पाकिस्तान में बिन लादेन के पकड़े जाने के बाद क्षेत्रीय परेशानियों पर रोशनी डालने की कोशिश कर रहा है. लिखा है कि भारत और अफगानिस्तान, दोनों के लिए यह घटना पाकिस्तान की दोहरी नीति का सबूत हैः "काबुल में राष्ट्रपति करजई का कहना था, कि "अफगानिस्तान उस समय सही था, जब हमने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अफगानिस्तान में नहीं चल रही." कई लोगों को डर है कि अल कायदा अपनी कार्रवाई अब पाकिस्तानी सरकार और सुरक्षा बलों के खिलाफ तेज करेगा. पाकिस्तानी पत्रकार सैयद सलीम शहजाद ने 'युद्ध के मैदान के अफगानिस्तान से पाकिस्तान' में बदलने की बात कही है."

अमेरिका का कमबैक?

वहीं पत्रिका डेयर श्पीगेल ने बिन लादेन को मारे जाने पर एक दूसरी तरह का दृष्टिकोण पेश किया है. उसका कहना है कि ओसामा का पकड़ा जाना, अमेरिका जैसे एक बड़े देश के लिए 'कमबैक' जैसा है. खासकर लीबिया में अमेरिका की विफल कोशिशों के बाद. ओसामा के मारे जाने की खबर से राष्ट्रपति बराक ओबामा की छवि भी बेहतर हुई है. श्पीगेल आगे कहता है, "असल परेशानी तो अब भी वैसी की वैसी है, अर्थव्यवस्था की कमजोरी. ओसामा बिन लादेन के मारे जाने से अमेरिका के विशाल बजट घाटे पर कोई असर नहीं पड़ता, देश में बढ़ती बेरोजगारी पर असर नहीं पड़ता और इस बात पर असर नहीं पड़ता कि अमेरिका चीन के सामने हार रहा है.....कुछ ही वक्त की बात है कि अमेरिका दोबारा अपनी रोजमर्रा की परेशानियों से घिर जाएगा."

रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः आभा एम

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