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समाज

औरतों को ही नहीं पता था कि उनका शोषण हुआ

३० दिसम्बर २०१७

इन दिनों जितनी यौन दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आ रही है उसके बाद कहा जाने लगा है कि दुनिया की ज्यादातर महिलाओं ने कभी ना कभी इसे झेला है. लेकिन 1990 के पहले तो महिलाओं को ही इसके बारे में पता नहीं था. अमेरिका में भी.

Symbolbild MeToo
तस्वीर: Imago

1979 में कारेन श्नाइडर एक शुरुआती स्तर की कॉपी एडिटर थीं. उनके अखबार के एक सीनियर एडिटर ने सहकर्मियों के साथ ड्रिंक्स पर मुलाकात के बाद देर रात गाड़ी में उन्हें घर छोड़ने का प्रस्ताव दिया. उनकी मंजिल पर पहुंचने के बाद उस शख्स ने कार के दरवाजे बंद कर दिए और जबर्दस्ती उन्हें किस किया. भयभीत कारेन किसी तरह वहां से निकलीं. बाद में उन्होंने इस बारे में सिर्फ अपने ब्वॉयफ्रेंड को बताया.

हाल ही में टेलिफोन पर एक इंटरव्यू में कारेन ने कहा, "मुझे नहीं पता था कि यौन शोषण वास्तव में होता क्या है. मुझे नहीं पता था कि जो उसने मेरे साथ किया, वास्तव में वह गैरकानूनी था." कारेन ने कहा, "मैं बस इतना जानती थी कि मैं डर गयी थी और अपने करियर को लेकर चिंता से भर गई थी क्योंकि वह आदमी अधिकारी के स्तर पर था और मैं उत्सुकता से भरी युवा पत्रकार."

बोलने से डरते हैं लोग 

तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Airio

हाल में यौन दुर्व्यवहार के आरोपों की बाढ़ आ गई है, दर्जनों प्रमुख लोगों को अपने पद और प्रतिष्ठा से हाथ धोना पड़ा है और इससे पता चलता है कि श्नाइडर के साथ जैसी घटना हुई, वह अब भी दफ्तरों और काम की दूसरे जगहों पर जारी हैं. श्नाइडर पांच और सालों तक उसी दफ्तर में काम करती रहीं और खामोश रहीं. बाद में उन्होंने दूसरे मीडिया संस्थानों और अधिकारों की बात करने वाले संगठनों में काम किया. अब वे अमेरिका के नेशनल वीमेंस लॉ सेंटर की वाइस प्रेसिडेंट हैं और उन महिलाओं की मदद करती हैं जो दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठा रही हैं. श्नाइडर ने कहा, "अब इस बात को बहुत ज्यादा महत्व मिलने लगा है कि यौन शोषण कानून के खिलाफ है और उसे सहन नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन बहुत सारे उद्योग और दफ्तर हैं जहां लोग बोलने से डरते हैं."

सैक्सुअल हैरेसमेंट क्या होता है?

तकनीकी रूप से यौन शोषण 1964 में सिविल राइट्स एक्ट के लागू होने का बाद गैरकानूनी बना. इस एक्ट में लैंगिक भेदभाव पर रोक लगाई गई. हालांकि इसके बाद अदालत को इसे मौजूदा स्वरूप तक पहुंचाने में तीन दशक लगे जहां अब इस तरह के मामले निबटाए जाते हैं. अमेरिकन सिविल लिबर्टिज यूनियन के अटॉर्नी गिलियन थॉमस ने इस मुद्दे पर काफी कुछ लिखा है. उन्होंने बताया कि 1975 तक "सैक्सुअल हैरेसमेंट" का तो किसी ने नाम भी नहीं सुना था.

इस मामले में लोगों की जागरूकता जगाने का एक बड़ा पड़ाव 1991 में तब आया जब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में क्लैरेंस थॉमस की सुनवाई के दौरान अनिता हिल की गवाही में सेक्सुअल हैरेसमेंट पर पूरा ध्यान दिया. इसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की भी बड़ी अहमियत थी. इनमें 1986 का वह फैसला भी शामिल है जिसमें यौन शोषण से "होस्टाइल वर्क एनवायरनमेंट" बनने की बात कही गई. भले ही किसी कर्मचारी को नौकरी जाने की वजह से या फिर प्रमोशन नहीं मिलने के कारण आर्थिक नुकसान हुआ हो या नहीं. 1993 में हाईकोर्ट ने कहा कि कर्मचारी यौन शोषण का केस, मानसिक पीड़ा को साबित किये बगैर भी जीत सकते हैं. 1998 में सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों में कई नौकरी देने वालों को इसके लिए मजबूर किया. वे यौन शोषण के खिलाफ नीतियां और इस तरह का तंत्र कायम करें कि कर्मचारी इसके बारे में गोपनीय तरीके से शिकायत दर्ज कर सकें.

डॉक्टर ने किया दुर्व्यवहार

तस्वीर: picture alliance/Bildagentur-online/Begsteiger

अमेरिका में कानूनी तंत्र अब भी नौकरी देने वालों के पक्ष में झुका हुआ है. थॉमस कहते हैं, "लेकिन अब कम से कम इस पर बात करने के लिए शब्द तो हैं." 1982 तक न्यूयॉर्क के दमकल विभाग में इस तरह का कोई शब्द नहीं थी. उस वर्ष ब्रेंडा बेर्कमैन ने विभाग को याचिका दायर कर नियुक्ति के लिए शारीरिक परीक्षाओं को बदलने पर विवश किया ताकि महिलाएं इसे पास कर सकें.

बेर्कमैन 2006 में कैप्टेन के रैंक से रिटायर हुईं. उन्होंने बताया कि उन्होंने और पहले बैच की 39 दूसरी महिलाओं ने ट्रेनिंग के दौरान भी दुर्व्यव्हार का सामना किया. उन्होंने कहा, "ना सिर्फ प्रशिक्षकों ने, बल्कि ट्रेनिंग ले रहे साथी पुरुषों ने भी दुर्व्यवहार किया." 90 के शुरुआती दशक में बेर्कमैन ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि विभाग के डॉक्टर ने परीक्षा के दौरान उनसे शारीरिक दुर्व्यवहार किया. उस डॉक्टर को दोषी ठहराने और इस्तीफा देने पर विवश करने में एक साल से ज्यादा वक्त लगा.

इस तरह के दुनिया भर में हजारों मामले हैं. ज्यादातर में महिलाएं या तो शिकायत करने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं या फिर करती भी हैं तो लंबी कानूनी लड़ाई में अकेली पड़ जाती हैं. शुक्र है तो बस इतना कि अब मी टू जैसे अभियानों की बदौलत या फिर दूसरी वजहों से मामले सामने आने लगे हैं.

एनआर/आईबी (एपी) 

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