किसानों के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के तीन मंत्रियों के बीच हुई बैठक बेनतीजा रही. विवादास्पद कृषि कानूनों पर एक समिति गठित करने के सरकार के प्रस्ताव को किसानों ने ठुकरा दिया.
विज्ञापन
35 किसान संगठनों के प्रतिनिधि मंगलवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनके सहयोगी पीयूष गोयल और सोम प्रकाश से मिले थे. बैठक में मंत्रियों ने किसानों के सामने तीनों नए कृषि कानूनों पर उनकी आपत्तियों पर चर्चा करने के लिए एक समिति गठित करने का प्रस्ताव दिया.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार किसानों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि जब तक सरकार कानूनों को रद्द नहीं करती तब तक उनके प्रदर्शन जारी रहेंगे. कुछ किसानों का यह भी मानना था कि सरकार यह समिति आंदोलन में शामिल सैकड़ों किसान संगठनों के बीच फूट डलवाने के लिए बनाना चाहती थी लेकिन विरोध कर रहे सभी किसान एकजुट हैं और अपनी मांग पर कायम हैं.
बुधवार को किसान संगठनों की आपस में बैठक होगी जिसमें वो सरकार से हुई बातचीत की समीक्षा करेंगे और आंदोलन के लिए आगे की रणनीति तय करेंगे. गुरूवार को किसानों की केंद्रीय मंत्रियों के साथ एक और बैठक निर्धारित है. इस बीच किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं और उन्हें समर्थन देने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है.
बताया जा रहा है कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों से और भी किसान दिल्ली के तरफ निकल चुके हैं. महाराष्ट्र से भी किसानों के दिल्ली आने की संभावना व्यक्त की जा रही है. धरने पर बैठे किसानों को समर्थन देने दिल्ली की सीमाओं पर कई विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी और एक्टिविस्ट भी पहुंच रहे हैं.
कई खिलाड़ियों ने भी उनकी मांगों को अपना समर्थन दिया है और अर्जुन पुरस्कार प्राप्त कर चुके हॉकी खिलाड़ी सज्जन सिंह चीमा जैसे खिलाड़ियों ने घोषणा की वो किसानों के साथ किए जा रहे बर्ताव के विरोध में अपने पुरस्कारों को सरकार को वापस लौटा देंगे.
किसान इससे पहले नए कानूनों के विरोध में भारत बंद भी आयोजित कर चुके हैं. ये तीन कानून हैं आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून.
इनका उद्देश्य ठेके पर खेती यानी 'कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग' को बढ़ाना, खाद्यान के भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना और अनाज, दालों, तिलहन, आलू और प्याज जैसी सब्जियों के दामों को तय करने की प्रक्रिया को बाजार के हवाले करना है.
कानूनों के आलोचकों का मानना है कि इनसे सिर्फ बिचौलियों और बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा और छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे. सरकार ने कानूनों को किसानों के लिए कल्याणकारी बताया है, लेकिन कई किसान संगठनों, कृषि विशेषज्ञों और विपक्षी दलों का कहना है कि इन कानूनों की वजह से कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था में ऐसे बदलाव आएंगे जिनसे छोटे और मझौले किसानों का शोषण बढ़ेगा.
भारत की पहचान एक कृषि प्रधान देश के रूप में रही है लेकिन देश के बहुत से किसान बेहाल हैं. इसी के चलते पिछले कुछ समय में देश में कई बार किसान आंदोलनों ने जोर पकड़ा है. एक नजर किसानों की मूल समस्याओं पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Adhikary
भूमि पर अधिकार
देश में कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है. असमान भूमि वितरण के खिलाफ किसान कई बार आवाज उठाते रहे हैं. जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है जिस पर छोटे किसान काम करते हैं. ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/NJ. Kanojia
फसल पर सही मूल्य
किसानों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें फसल पर सही मूल्य नहीं मिलता. वहीं किसानों को अपना माल बेचने के तमाम कागजी कार्यवाही भी पूरी करनी पड़ती है. मसलन कोई किसान सरकारी केंद्र पर किसी उत्पाद को बेचना चाहे तो उसे गांव के अधिकारी से एक कागज चाहिए होगा.ऐसे में कई बार कम पढ़े-लिखे किसान औने-पौने दामों पर अपना माल बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
तस्वीर: DW/M. Krishnan
अच्छे बीज
अच्छी फसल के लिए अच्छे बीजों का होना बेहद जरूरी है. लेकिन सही वितरण तंत्र न होने के चलते छोटे किसानों की पहुंच में ये महंगे और अच्छे बीज नहीं होते हैं. इसके चलते इन्हें कोई लाभ नहीं मिलता और फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Seelam
सिंचाई व्यवस्था
भारत में मॉनसून की सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. इसके बावजूद देश के तमाम हिस्सों में सिंचाई व्यवस्था की उन्नत तकनीकों का प्रसार नहीं हो सका है. उदाहरण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में सिंचाई के अच्छे इंतजाम है लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जहां कृषि, मॉनसून पर निर्भर है. इसके इतर भूमिगत जल के गिरते स्तर ने भी लोगों की समस्याओं में इजाफा किया है.
तस्वीर: picture alliance/NurPhoto/S. Nandy
मिट्टी का क्षरण
तमाम मानवीय कारणों से इतर कुछ प्राकृतिक कारण भी किसानों और कृषि क्षेत्र की परेशानी को बढ़ा देते हैं. दरअसल उपजाऊ जमीन के बड़े इलाकों पर हवा और पानी के चलते मिट्टी का क्षरण होता है. इसके चलते मिट्टी अपनी मूल क्षमता को खो देती है और इसका असर फसल पर पड़ता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup
मशीनीकरण का अभाव
कृषि क्षेत्र में अब मशीनों का प्रयोग होने लगा है लेकिन अब भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां एक बड़ा काम अब भी किसान स्वयं करते हैं. वे कृषि में पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. खासकर ऐसे मामले छोटे और सीमांत किसानों के साथ अधिक देखने को मिलते हैं. इसका असर भी कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और लागत पर साफ नजर आता है.
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari
भंडारण सुविधाओं का अभाव
भारत के ग्रामीण इलाकों में अच्छे भंडारण की सुविधाओं की कमी है. ऐसे में किसानों पर जल्द से जल्द फसल का सौदा करने का दबाव होता है और कई बार किसान औने-पौने दामों में फसल का सौदा कर लेते हैं. भंडारण सुविधाओं को लेकर न्यायालय ने भी कई बार केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार भी लगाई है लेकिन जमीनी हालात अब तक बहुत नहीं बदले हैं.
तस्वीर: Anu Anand
परिवहन भी एक बाधा
भारतीय कृषि की तरक्की में एक बड़ी बाधा अच्छी परिवहन व्यवस्था की कमी भी है. आज भी देश के कई गांव और केंद्र ऐसे हैं जो बाजारों और शहरों से नहीं जुड़े हैं. वहीं कुछ सड़कों पर मौसम का भी खासा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में, किसान स्थानीय बाजारों में ही कम मूल्य पर सामान बेच देते हैं. कृषि क्षेत्र को इस समस्या से उबारने के लिए बड़ी धनराशि के साथ-साथ मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता भी चाहिए.
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari
पूंजी की कमी
सभी क्षेत्रों की तरह कृषि को भी पनपने के लिए पूंजी की आवश्यकता है. तकनीकी विस्तार ने पूंजी की इस आवश्यकता को और बढ़ा दिया है. लेकिन इस क्षेत्र में पूंजी की कमी बनी हुई है. छोटे किसान महाजनों, व्यापारियों से ऊंची दरों पर कर्ज लेते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में किसानों ने बैंकों से भी कर्ज लेना शुरू किया है. लेेकिन हालात बहुत नहीं बदले हैं.