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और क्रिकेट जीत गया !

६ अक्टूबर २०१०

क्रिकेट का खेल ऐसा होता है, जो आंकड़ों की भाषा में बोलता है. कभी कभी ऐसा नहीं भी होता है. और मोहाली में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहले टेस्ट मैच में यही देखा गया.

भारतीय क्रिकेट के अर्जुनतस्वीर: AP

भारतीय मिडल ऑर्डर की ताकत सौरव गांगुली के रिटायर होने के बाद तीन खिलाड़ी सचिन, राहुल और लक्ष्मण अब भी खेल रहे हैं. इन चारों को फैब 4 कहा जाता था. शायद मैच फिक्सिंग के कौरव पर्व के बाद पंचपांडव कहना बेहतर होता: कुंबले ज्ञानी युधिष्ठिर, सौरव अक्खड़ भीम, सचिन महारथी अर्जुन. द्रविड़ और लक्ष्मण इसलिए भी नकुल सहदेव, क्योंकि बाकी तीन भाइयों के रिकॉर्डों के सामने उनके बेहतरीन प्रदर्शन की अक्सर चर्चा नहीं होती. हां, तसल्ली देने के लिए मिस्टर वॉल या वेरी वेरी स्पेशल कह दिया जाता है.

जबकि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच मुकाबले का नाटकीय दौर सन 2001 में लक्ष्मण की 281 की पारी के साथ शुरू हुआ था, और मोहाली में मंगलवार को उसकी पराकाष्ठा देखने को मिली. इस प्रदर्शन के बाद भी टीम में लक्ष्मण का दर्जा सुरक्षित नहीं है, उसके पूरे खेल जीवन में यह सुरक्षित नहीं रहा है. हालांकि आंकड़े बोलते हैं कि 114 मैचों में 16 शतकों और 47.40 के औसत के साथ वीवीएस ने 7490 रन बनाए हैं. सबसे बड़ी बात कि जहां उम्मीद नहीं रह जाती, वहां लक्ष्मण के बल्ले से पत्थर टूटकर उम्मीद के अंकुर फुट निकलते हैं.

वेरी वेरी स्पेशलतस्वीर: UNI

लेकिन बात सिर्फ लक्ष्मण की नहीं है, बात भारत की जीत की भी नहीं है. इस जीत के साथ उसका पहला दर्जा पक्का होने की संभावना कुछ बढ़ गई है. लेकिन भारत की टीम को अपराजेय नहीं माना जाता, जैसा कभी ऑस्ट्रेलिया या उससे पहले वेस्ट इंडीज को माना जाता था. और यह एक अच्छी बात है. प्रतिस्पर्धा बनी हुई है, जिसकी वजह से हमें मोहाली जैसे मैच देखने को मिलते हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स और उसमें भारत के पांच सोने के पदकों के बावजूद ऐसे एक मंगलवार को बहुतेरे खेल प्रेमी टेस्ट मैच की ओर नजर दौड़ाते हैं.

बात सिर्फ लक्ष्मण की नहीं है, बात भारत की जीत की भी नहीं है. पांच दिनों के मैच के पहले तीन दिनों में दोनों टीमों ने चार-चार सौ रन बटोरे. ऑस्ट्रेलिया की नाक 23 रन आगे रह गई. और आखिर में इन्हीं 23 रनों की बढ़त फैसलाकून होती दिख रही थी. लक्ष्मण और ईशांत की जोड़ी 81 रनों की साझेदारी जोड़कर मैच को भारत के लिए 9 रनों की दूरी पर ला चुकी थी. लेकिन ये 9 रन कतई निश्चित नहीं लग रहे थे. भारत का हारना ज्यादा संभव लग रहा था, मैच टाई भी हो सकता था. एक छोटी सी उम्मीद थी भारत की जीत की. जब 6 रन बाकी रह गए, तो ओवर थ्रो से मिले 4 और बाई में मिले दो रनों से कसर पूरी हो गई.

हां, क्रिकेट में सिर्फ शतक और पांच या दस विकेट लेने की करामातें ही नहीं होती. कैच छूटते हैं, ओवर थ्रो होते हैं, गैर समझदार ढंग से रन लेने की कोशिश में रन आउट होना पड़ता है, नो बॉल होते हैं. मसलन इस टेस्ट के एक हीरो ईशांत शर्मा के दोनों पारी मिलाकर 15 नो बॉल. लेकिन ये भी खेल को दिलचस्प, कभी कभी नाटकीय बनाते हैं. ईशांत जब पहली पारी में नाइट वाचमैन के तौर पर बैटिंग करने आए, तो थोड़ी हूटिंग भी हुई. लेकिन किसी के मन में कोई दूसरी किस्म का शक नहीं था, जिनका क्रिकेट से नाता नहीं है, नहीं होना चाहिए. इन गलतियों के जरिए भी क्रिकेट जीता है. और मोहाली में क्रिकेट जी उठा.

और अंपायर तो ग्रीक देवता होते हैं, जिनके फैसले कभी कभी बड़े ही मानवीय लगते हैं. यहां भी कुल मिलाकर दोनों पक्षों को फायदा या नुकसान हुआ. ईशांत अगर आउट नहीं थे, तो क्या प्रज्ञान ओझा भी आउट नहीं थे? चूंकि अंपायरों की मानवीयता बराबरी के साथ बंटी, उदार मन के साथ धोनी और पोंटिंग बंगलौर जा रहे हैं. एक दूसरे के लिए ऐसी उदारता उनके मन में कतई नहीं है, होनी भी नहीं चाहिए.

साढे चार दिन में 39 विकेट गिरे. अगर 40 गिरते, तो ऑस्ट्रेलिया की जीत होती. बस 39-40 का फर्क था.

लेखक: उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन: एस गौड़

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