यह चेतावनी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और ब्रिटेन के इम्पीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने दी है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इबोला अब तक पश्चिम अफ्रीका में 2,811 लोगों की जान ले चुका है. करीब दो हजार लोग अब भी इस बीमारी की चपेट में है और मौत से लड़ रहे हैं. शोधकर्ताओं ने आशंका जताई है कि नवंबर तक इबोला 20,000 लोगों को अपनी चपेट में ले लेगा. इबोला के ज्यादातर रोगी बच नहीं सके हैं. गिनी, सियरा लियोन और लाइबेरिया में डरावनी स्थिति बनी हुई है. शोधपत्र के सह लेखक और डब्ल्यूएचओ के रणनीति निदेशक डॉक्टर क्रिस्टोफर डाय के मुताबिक, "बहुत ही ज्यादा तेजी की वजह से आप देखेंगे कि हर हफ्ते यह संख्या बढ़ेगी. हमारा अनुमान है कि इन तीन देशों में ही 20 हजार से ज्यादा पक्के या संदिग्ध मामले सामने आएंगे."
इबोला के खिलाफ चल रहे अभियान की जानकारी देते हुए डॉक्टर डाय ने कहा, "इस अनुमान को सच्चाई में न बदलने देने के लिए हर कोई कड़ी मेहनत कर रहा है." बीते हफ्ते संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने इबोला के खिलाफ एक अरब डॉलर की योजना का एलान किया. इस फंड की मदद से इबोला प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य विशेषज्ञ भेजे जाएंगे.
डरावना इबोला
इन कोशिशों के बावजूद पश्चिम अफ्रीका में इबोला को जड़ से मिटाना फिलहाल नामुमकिन लग रहा है. डॉक्टर डाय मानते हैं कि प्रभावित इलाकों में बीमारी लंबे वक्त तक हमेशा बनी रहेगी. थोड़ी सी राहत की बात यह है कि नाइजीरिया और सेनेगल जैसे पड़ोसी देशों में इसका कोई नया मामला सामने नहीं आया है.
पश्चिमी अफ्रीका में इबोला का कहर जारी है. इसका कोई पक्का इलाज नहीं है लेकिन एक अमेरिकी दवा कंपनी की दवा कथित तौर पर फायदा पहुंचा रही है. इससे बचने के लिए कुछ एहतियात भी जरूरी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Tim Brakemeierसियेरा लियोन में इबोला तेजी से फैल रहा है. वहां की सरकार ने फ्रीटाउन में ऐसे होर्डिंग लगवाए हैं, जिसमें लोगों को रोग के लक्षणों के बारे में बताया गया है. इसमें से कोई भी लक्षण नजर आने के बाद फौरन डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी गई है.
तस्वीर: picture alliance/AP Photoसेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने इबोला फैलाने वाले वायरस वीरिऑन की यह तस्वीर जारी की है. मानव शरीर का प्रतिरोधी तंत्र इस बीमारी से लड़ने में सक्षम है, बशर्ते शरीर के दूसरे अंग काम करते रहें. लेकिन इस वायरस का असर अंगों को निष्क्रिय कर देता है.
तस्वीर: Reutersइबोला का सबसे ज्यादा असर अफ्रीकी देश लाइबेरिया पर है, जहां लगभग 1000 लोग इस बीमारी की वजह से मारे गए. अपने एक रिश्तेदार की मौत के बाद यह महिला खुद को संभाल नहीं पा रही है. यहां भी एहतियात को लेकर भारी दिक्कतें हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaसबसे बड़ी मुश्किल लोगों का अंधविश्वास है. लाइबेरिया में बीमारी के लक्षण पता लगने के बाद भी वे डॉक्टरों की जगह इस तरह के नीम हकीमों के पास चले जाते हैं. इससे न सिर्फ इलाज प्रभावित होता है, बल्कि दूसरों को भी बीमारी फैलने का डर रहता है.
तस्वीर: DW/J. Kanubahलाइबेरिया के अलावा सियेरा लियोन, गिनी और नाइजीरिया में इबोला का सबसे ज्यादा प्रभाव है. वहां राहत कार्यों में लगे दूसरे देशों को भी इस बीमारी के संक्रमण का खतरा लगातार बढ़ रहा है.
इस बीमारी के बाद सबसे पहले मरीज को दूसरे लोगों से अलग करना जरूरी है. इसके लिए भी सुरक्षित पोशाक पहनने जरूरी हैं, ताकि मरीज के संपर्क में आने वाले किसी दूसरे डॉक्टर या बचावकर्मी को इसका इंफेक्शन न लगे.
तस्वीर: picture-alliance/dpaसियेरा लियोन की राजधानी फ्रीटाउन में टेंट लगा कर इबोला के मरीजों का इलाज किया जा रहा है. लेकिन यहां सही तरीके नहीं अपनाए जा रहे हैं. एक ही जगह कई मरीजों का बिस्तर लगा है, जिससे बीमारी और फैलने का खतरा है.
तस्वीर: picture alliance/AP Photoजर्मनी के हैम्बर्ग शहर में यूनिवर्सिटी क्लीनिक में इबोला के इलाज का सही इंतजाम है. मरीजों को बिलकुल अलग रखा जाता है और डॉक्टर वहां तीन दरवाजों से गुजर कर पहुंचते हैं. इससे पहले वह बेहद सुरक्षित पोशाक पहनते हैं, ताकि संक्रमण न हो.
तस्वीर: picture alliance/dpaइबोला से दम तोड़ चुके मरीजों के अंतिम संस्कार की तैयारियों के बाद लाइबेरिया की एक नर्स को डिसइंफेक्ट करने के लिए स्प्रे किया जा रहा है. डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि मौत के बाद इबोला वायरस के फैलने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaइबोला फैलने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे आधुनिक दौर की सबसे गंभीर बीमारी का दर्जा दिया है.
तस्वीर: Reuters
वैज्ञानिकों का मानना है कि इंसानों को यह बीमारी गिनी से लगी. गिनी में एक बच्चे ने फ्रूट बैट कहे जाने वाले चमगादड़ का अधपका मांस खाया. चमगादड़ भले ही इस विषाणु के प्रति प्रतिरोधी हो चुके हों, लेकिन इंसान के प्रतिरोधक तंत्र को इबोला ने भेद दिया. एक बार इंसान को अपनी चपेट में लेने के बाद इबोला का विषाणु मरीज के शरीर से निकलने वाले किसी भी प्रकार के द्रव में रहता है. अगर रोगी के शरीर से निकला द्रव किसी भी तरह दूसरे इंसान के शरीर में दाखिल हो गया तो इबोला फैल जाता है.
बीमारी की शुरुआत होती है तो रोगी को बुखार, उल्टी और दस्त होने लगता है. इसके बाद कुछ ही घंटों के भीतर शरीर के भीतरी अंगों में रक्त प्रवाह करने वाली नसें फटने लगती हैं. इबोला के ज्यादातर मामलों में मरीजों की मौत 48 घंटे के भीतर हो गई.
डब्ल्यूएचओ को आशंका है कि पश्चिम अफ्रीका से अगर इबोला एशिया के बड़े शहरों तक पहुंचा तो बहुत मुश्किल हो जाएगी. दक्षिणी और दक्षिण पूर्वी एशिया में आम तौर पर सर्दियों में मौसम गुनगुना रहता है. विषाणु के फैलने के लिए यह आदर्श स्थिति है.
ओएसजे/एमजे (रॉयटर्स)