ड्रेसडेन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने ऐसी चीज बनाई जो इंसान के बाल से भी 10 गुना पतली है लेकिन सीमेंट के साथ मिलाने पर वह ढांचों को बहुत हल्का, कहीं ज्यादा ताकतवर और जंगमुक्त बना देती है.
विज्ञापन
आज की दुनिया कंक्रीट से बनी है. लोहे के कंकाल पर खाल की तरह मढ़े गए इस पदार्थ ने दुनिया की शक्ल बदल दी है. लेकिन यही लोहा उसे कमजोर बनाता है क्योंकि लोहे को जंग लग सकता है. और यह भारी भी बहुत होता है. तो विकल्प क्या है? लोहे का क्रांतिकारी विकल्प है कार्बन फाइबर. यह कंक्रीट को हल्का, ज्यादा मजबूत और बहुत ही बनाता है.
ये हैं ड्रेसडेन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मानफ्रेड कुरबाख. उनकी टीम ने स्टील-कंक्रीट का विकल्प खोज लिया है. इसे क्या कहा जा सकता है? शायद टेक्सटाइल कंक्रीट. प्रोफेसर कुरबाख कहते हैं, "सामान्य कंक्रीट और टेक्सटाइल कंक्रीट में फर्क जंग से मुक्ति का है. जंग के खतरे की जद में रहने वाले स्टील की जगह इसमें कार्बन का इस्तेमाल किया गया है, जिसे जंग नहीं लगता.
सबसे अच्छी इमारत कौन सी
2016 के इंटरनेशनल हाईराइज अवॉर्ड के फाइनल में ये इमारतें पहुंची हैं. देखिए, आपको कौन सी इमारत सबसे ज्यादा पसंद आई.
तस्वीर: Boeri Studio/K. Bucher
वीआईए 57 वेस्ट, न्यूयॉर्क
मैनहटन की यह इमारत 108 मीटर ऊंची है. 34 मंजिला इस इमारत को बनाया है डेनमार्क के आर्किटेक्ट बयार्के इंगलेस ने. इसे ही प्रथम पुरस्कार मिला.
तस्वीर: Bjarke Ingels Group, Nic Lehoux
4, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, न्यूयॉर्क
जापानी आर्किटेक्ट फुमिहीको माकी की डिजाइन की इस इमारत को 11 सितंबर 2001 के हमले के बाद बनाया गया.
तस्वीर: Maki & Associates, TECTONIC
स्काई हैबिटैट, सिंगापुर
इस्राएली मूल के कनाडाई आर्किटेक्ट मोशे सफादी ने इसे डिजाइन किया है. इसे नई तरह का वर्टिकल सिटी कहा जा रहा है.
तस्वीर: Safdie Architects, Edward Hendricks
432 पार्क एवेन्यू, न्यूयॉर्क
अमेरिकी आर्किटेक्ट रफाएल विन्योल की डिजायन की गई यह इमारत अमेरिका की तीसरी सबसे ऊंची इमारत है. 426 मीटर ऊंची इस इमारतम में 88 मंजिलें हैं जिन पर 105 अपार्टमेंट बने हैं.
तस्वीर: Viñoly, DBOX
स्काईविले, सिंगापुर
WOHA के आर्किटेक्ट्स नई तरह की सोशल हाउसिंग शुरू करना चाहते हैं जहां सामाजिक और पर्यवारणीय दोनों बातों का ख्याल रखा गया हो. 960 अपार्टमेंट का यह समूह उसकी शुरुआत है.
तस्वीर: WOHA Architects, Patrick Bingham-Hall
पिछली विजेता
2014 का पुरस्कार मिलान की इस इमारत को मिला था. बालकनियों में पेड़ों वाली यह इमारत इटली के आर्किटेक्ट स्टेफानो बोएरी ने बनाई थी.
तस्वीर: Boeri Studio/K. Bucher
6 तस्वीरें1 | 6
कैसे बनता है कार्बन फाइबर
कार्बन से फाइबर तैयार किए जाते हैं, उनका व्यास होता है 5 माइक्रोमीटर. यानी इंसान के बाल से 10 गुना पतला. इन फाइबर्स को विशाल करघों पर 230 से ज्यादा बार घुमाया जाता है. कार्बन फाइबर मूल रूप से तो इतने नर्म होते हैं कि उन्हें सीधे कंक्रीट में नहीं मिलाया जा सकता. उन्हें सख्त करने के लिए उन पर एक लेप किया जाता है और उन्हें ऐसे रूप में ढाला जाता है कि वे कंक्रीट में मिलकर सबसे अच्छा काम कर सकें.
कार्बन फाइबर के 50 हजार धागों को मिलाकर एक तार बनाई जाती है. इस तार को करघों पर घुमाया जाता है उन्हें जोड़ा जाता है. इस बुनाई के बाद फाइबर के जाल बनते जाते हैं.
मटीरियल की गुणवत्ता को और बढ़ाने के लिए फाइबर जाल पर एक और लेप किया जाता है जो इसकी स्थिरता को बढ़ाता है. फिर होती है कटाई और 15 मिनट की प्रोसेसिंग के बाद मटीरियल को प्रोडेक्शन साइट पर भेज दिया जाता है. कंक्रीट में सीमेंट, रेत और पानी होता है. ड्रेसडेन यूनिवर्सिटी में एक खास तरह का मिश्रण बनाया गया है जिसमें सीमेंट के बेहद बारीक कण और अन्य कई चीजें मिलाई गई हैं.
इस महीन कंक्रीट की चादर बना ली जाती है जिसकी मोटाई मिलिमीटरों में होती है. कंक्रीट की इस पतली चादर के बीच में कार्बन फाइबर का जाल डाला जाता है. टेक्सटाइल कंक्रीट की इस चादर को फिर 24 घंटे तक सुखाया जाता है.
यह सामान्य कंक्रीट से बहुत हल्का होता है. केवल कुछ मिलीमीटर मोटाई वाली महीन कंक्रीट की चादर में फौलाद से भी ज्यादा मजबूती होती है. टेक्सटाइल कंक्रीट ईको फ्रेंडली भी है और बिल्डर ही नहीं, डिजायनर्स भी अब इसे अभिव्यक्ति का माध्यम बना रहे हैं. देखिए इससे रोजमर्रा की कैसी चीजें बनाने की कोशिश हो रही है.
आग, तूफान और भूकंप से लड़ने वाले घर
बर्फीले माहौल में रहने वाले एस्कीमो लोगों के गोल गोल घर याद हैं आपको? भारत और थाइलैंड के बाद अब इंडोनेशिया में भी ऐसे घर बड़े मददगार साबित हो रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/P. Utama
इंडोनेशिया का एस्कीमो विलेज
इंडोनेशिया में नगेलेपेन गांव को 2006 के भूकंप के बाद खास अंदाज में बसाया गया. गरीब तबके के लिए वहां सस्ते और सुरक्षित घर बनाए गए.
तस्वीर: Getty Images/D. Ardian
आपदा के बाद
मई 2006 में 5.9 तीव्रता के भूकंप के बाद बांतुल इलाके में बड़ा भूस्खलन हुआ. दासुन सेनगिर नगेलेपेर गांव पूरी तरह जमींदोज हो गया. साल भर बाद वहां नई बस्ती बसाई गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Berry
साझा वित्तीय मदद
अप्रैल 2007 में बस्ती का उद्घाटन किया गया. अमेरिका और दुबई समेत कई देशों की गैर सरकारी संगठनों ने वित्तीय मदद दी. सारे मकान 5.3 करोड़ रुपये की मदद से बनाये गए.
तस्वीर: Getty Images/D. Ardian
गुंबदनुमा छत
भूकंप को झेलने के बाद ये घर खास डियाजन में बनाए गए. इनकी गुंबदाकार छत भूकंप के झटके बर्दाश्त कर सकती है. हर घर का व्यास सात मीटर और ऊंचाई 4.6 मीटर है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/P. Utama
आग और तूफान से भी सुरक्षा
छोटे दिखते इन घरों के भीतर दो मंजिलें हैं. गर्मियों में घर ठंडा और बरसात में गर्म रहता है. भूकंपरोधी होने के साथ साथ यह घर आग और तूफानरोधी भी हैं. इनकी 20 सेंटीमीटर मोटी नींव में 200 लोहे के फ्रेम हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Berry
एक जैसी बस्ती
बस्ती के 70 से ज्यादा घर एक जैसे हैं. ज्यादातर घरों में चार लोगों का परिवार रहता है. हर घर में दो दरवाजे, चार खिड़कियां और दो बेडरूम हैं. किचन, लिविंग रूम और बाथरूम अलग से हैं. सामने बच्चों के खेलने के लिए जगह भी है.
तस्वीर: Getty Images/D. Ardian
पटरी पर लौटी जिंदगी
गांव की ज्यादातर आबादी खेती से जुड़ी है. पक्की छत मिलने के बाद लोग फिर से अपने कामकाज के आदी हो चुके हैं.
तस्वीर: Getty Images/D. Ardian
सारी सुविधाएं
इस बस्ती में पॉलीक्लीनिक, स्कूल और सामुदायिक केंद्र जैसी दूसरी सुविधाएं भी हैं. बच्चों के खेलने के लिए भी पर्याप्त जगह है.
तस्वीर: Getty Images/D. Ardian
पूजास्थल
गांव में पूजा करने के लिए भी एक इमारत बनाई गई है.
तस्वीर: imago/ZUMA Press
पर्यटक केंद्र
घरों की विशेष बनावट के कारण अब यहां पर्यटक भी पहुंचने लगे हैं. थाइलैंड और भारत में भी ऐसे प्रयोग सफल रहे हैं रिपोर्ट: आयु पूर्वानिंगसिह
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/P. Utama
10 तस्वीरें1 | 10
लैब टेस्ट के नतीजे
अब टेक्सटाइल कंक्रीट को दिखाना है कि यह कितना दबाव बर्दाश्त कर सकता है. लैब में वे जानकारियां जुटाई जाएंगी जो बाद में टेक्सटाइल कंक्रीट से निर्माण की योजना बना रहे आर्किटेक्ट्स और सर्वेयर्स के काम आएंगी. ये जानकारियां लैब के नियंत्रित माहौल में ही हासिल की जा सकती हैं.
वैज्ञानिक टेक्सटाइल कंक्रीट पर इतना दबाव डालना चाहते हैं कि वह ब्रेकिंग पॉइंट तक पहुंच जाए. दबाव को लगातार बढ़ाया जाता है. दरारें दिखनी शुरू हो जाती हैं. लेकिन भीतर का कार्बन मैटिरियल इन ताकतों के खिलाफ संघर्ष करता रहता है. परीक्षण दिखाते हैं कि टेक्सटाइल कंक्रीट पारंपरिक कंक्रीट से छह गुना ज्यादा बलवान है. पर, यह नया मैटिरियल जितना भी प्रभावशाली दिखे, अटूट तो बिल्कुल नहीं है.
कहां कहां इस्तेमाल
टेक्सटाइल कंक्रीट से रोजमर्रा की चीजें बनाने के प्रयोग भी हो रहे हैं. ड्रेसडेन में स्टूडेंट्स कैंपस में इसी कंक्रीट से बनाए गए फर्नीचर पर आराम फरमा रहे हैं. प्रोफेसर कुरबाख कहते हैं, "कंक्रीट भद्दा होता है, भारी होता है. यह लिविंग रूम्स में तो नहीं जंचेगा. लेकिन कार्बन के इस्तेमाल का मतलब है कि अब हम कंक्रीट से दुबली-पतली कुर्सी, स्टूल या फिर मेज बना सकते हैं."
टेक्सटाइल कंक्रीट, इंजीनियरों और डिजायनरों को अभिव्यक्ति के नए माध्यम दे रहा है. कौन जाने, भविष्य में इस बेहद महीन और मजबूत कंक्रीट से कलाकृतियां भी बनने लगें.
किसने बनाईं ये जरूरी चीजें
ऐसी आम सी चीजें जो आप रोज इस्तेमाल करते हैं और जानते भी नहीं हैं कि किसने बनाईं, कैसे बनाईं. कम से कम उनका नाम तो जान लीजिए, जिन्होंने आपकी जिंदगी बदल दी.
तस्वीर: Reuters/S. Stapleton
किसने बनाई फ्लशिंग टॉयलेट
इंग्लैंड के जॉन हैरिंगटन ने सन 1600 के आसपास इसे बनाया था.
तस्वीर: Reuters/S. Stapleton
सनस्क्रीन लोशन
लोरियाल कंपनी के संस्थापक फ्रेंच केमिस्ट यूजीन शुएलेर ने 1936 में आधुनिक सनस्क्रीन बनाया था.
तस्वीर: AP
विंडशील्ड वाइपर्स
अमेरिका की मैरी एंडरसन ने 1903 में वाइपर्स ईजाद किया था. 1916 के बाद ये हर कार पर आम हो गए.
तस्वीर: CandyBox Images/Fotolia
डायपर्स
बच्चों के डिस्पोजेबल डायपर्स मैरियन डोनोवन नाम की महिला ने 1950 के दशक में बना लिए थे. लेकिन उसे बाजार में लाने में मैरियन को 10 साल लग गए.
तस्वीर: imago/imagebroker
आलू चिप्स
1853 में अमेरिका के जॉर्ज क्रम ने आलू के चिप्स की खोज एक रेस्तरां में खाना बनाना सिखाते हुए की थी.
तस्वीर: etiennevoss - Fotolia
माइक्रोवेव
1945 में अमेरिका के पर्सी स्पेंसर नाम के व्यक्ति ने माइक्रोवेव को बनाया था.
तस्वीर: AP
ड्रम स्टाइल वॉशमशीन
अमेरिका के अल्वा जे फिशर ने 1907 में ड्रम स्टाइल वॉशिंग मशीन बनाई थी.
तस्वीर: Getty Images/Yonhap
टॉयलेट पेपर
अमेरिका के जोसेफ गायेटी ने 1857 में वो टॉयलेट पेपर बनाया जो आज भी प्रयोग हो रहा है.