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कंगाल होती किंगफिशर के 15 जहाज जमीन पर

१९ दिसम्बर २०११

भारत की निजी एयरलाइन कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं. पैसे की कमी के चलते एयरलाइन को एक बार फिर अपने 15 विमान जमीन पर खड़े करने पड़े हैं. कंगाल हो रही कंपनी को पालयट भी बाय बाय कह रहे हैं.

तस्वीर: AP

भारतीय समाचारपत्र इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक किंगफिशर एयरलाइंस को एक बार फिर अपने 15 जहाज उतारने पड़े हैं. एयरलाइन के पास जहाजों की मरम्मत और रखरखाव के लिए पैसा नहीं है. एक सूत्र के हवाले से छापी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि महंगा एयरपोर्ट शुल्क कंपनी पर भारी पड़ रहा है. सूत्र के मुताबिक एयरपोर्ट शुल्क वित्तीय ढंग से कंपनी को मार रहा है.

50 से ज्यादा पायलटों ने पिछले हफ्ते कंपनी छोड़ दी. कंपनी ने विमानों को जमीन पर उतारने और पायलटों के जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. किंगफिशर के प्रवक्ता ने सिर्फ इतना कहा, "संशोधित कार्यक्रम के मुताबिक सेवा बहाल रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त पायलट हैं."

किंगफिशर एयरलाइंस शराब कारोबारी विजय माल्या की कंपनी है, जिसकी हालत अब खराब है. 2005 में शुरू हुई किंगफिशर एयरलाइंस को आज तक मुनाफा नहीं हुआ है. अब किंगफिशर को किसी भी तरह नया पैसा चाहिए. बैंक भी उस पर ज्यादा भरोसा नहीं दिखा रहे हैं. बैंकों का कहना है कि नया कर्ज पाने के लिए कंपनी को खुद से कुछ पैसा लाना होगा. बैंकों के इस रुख के बाद किंगफिशर अपने खर्चे में कटौती कर रहा है. मुनाफा न देने वाले रूटों पर फ्लाइट्स बंद कर दी गई हैं.

जेट एयरवेज भी नुकसान मेंतस्वीर: picture alliance/Dinodia Photo Library

मॉर्केट शेयर के आधार पर किंगफिशर भारत की तीसरी बड़ी एयरलाइन कंपनी है. वह 2011 के शुरू होने के साथ ही हिचकोले खाने लगी. किंगफिशर को एलान करना पड़ा कि वह सस्ती फ्लाइट्स बंद कर रहा है. द सेंटर फॉर एशियन पैसिफिक एविएशन के मुताबिक किंगफिशर को तुरंत 40-50 करोड़ डॉलर की पूंजी चाहिए.

विशेषज्ञों के मुताबिक किंगफिशर समेत कई एयरलाइन कंपनियों की खस्ता हालत के लिए भारत सरकार की नीतियां भी जिम्मेदार हैं. भारत में जेट ईंधन की कीमत बहुत ज्यादा है. कड़ी प्रतिस्पर्द्धा के बीच एयरलाइन कंपनियों को काफी ज्यादा स्थानीय कर भी देना पड़ता है. एयरपोर्ट शुल्क बहुत अधिक है, जबकि सुविधाओं के मामले में भारत के कई एयरपोर्ट अब भी आधुनिक दौर से मीलों पीछे हैं.

एक्सपर्ट कहते हैं कि सरकार अगर अपनी नीतियों में जरा बदलाव करे तो एयरलाइन कंपनियों के साथ यात्रियों को भी काफी राहत मिलेगी. भारत में हवाई यात्रा अब भी उच्च वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग तक सीमित है. ज्यादातर लोग ट्रेनों से सफर करते हैं. ट्रेनों में अथाह भीड़ रहती है और कई बार रिजर्वेशन तक नहीं मिलता. एयरलाइन उद्योग की सही नीतियां लंबी दूरी की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को बेहतर कर सकती हैं.

रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह

संपादन: ए जमाल

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