कंबोडियाई मीडिया दशकों से अपने प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री हुन सेन लिखता और बोलता आया है. लेकिन चेतावनी मिल गई है कि ऐसा नहीं चलेगा. अगस्त से मीडिया को प्रधानमंत्री के लिए पूरा छह शब्द का टाइटल इस्तेमाल करना होगा.
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''सामदेच अक्का मोहा सेना पदेई टेको हुन सेन'' अब यही कंबोडिया के प्रधानमंत्री का टाइटल सहित पूरा नाम होगा. हर अखबार, रेडियो और टीवी चैनल को यही नाम इस्तेमाल करना होगा. इसे सामान्य जबान में समझें तो कुछ ऐसा होगा कि लॉर्ड प्राइम मिनिस्टर और सुप्रीम सैन्य कमांडर. हुन सेन को कंबोडिया के राजा नोरदम सिहामोनी ने 2007 में इस टाइटल से नवाजा था.
गुरुवार को सूचना मंत्रालय ने पत्रकारों के साथ तीन-चार बैठकें कीं. इन बैठकों में नए दिशा-निर्देश और चेतावनियां जारी की गईं. चेतावनी यह है कि जो मीडिया पूरा नाम नहीं लिखेगा या बोलेगा, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी. हालांकि कार्रवाई क्या होगी और सजा क्या होगी, यह नहीं बताया गया है.
मोदी अकेले नहीं 'फर्जी डिग्री' विवाद में
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर हुआ विवाद ऐसा कोई पहला मामला नहीं है. डिग्री विवादों से ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी राजनीति गर्माती आई है. देखें इन तस्वीरों में.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
मोदी डिग्री विवाद
आम आदमी पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाया था. इसके बाद सरकार की ओर से इस पर स्पष्टीकरण के बतौर मोदी की डिग्री की फोटो प्रतियां मीडिया में बांटी गई, लेकिन इन्हें 'आप' ने फर्जी बताया. हालांकि दिल्ली यूनिवर्सिटी ने इन डिग्रियों को सही बताया है.
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पकिस्तान में फर्जी डिग्री विवाद
पाकिस्तान में जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि चुने गए प्रतिनिधियों की डिग्रियों की जांच कराई जाएगी तो वहां डिग्री विवाद के एक रोचक प्रसंग ने जन्म लिया. फर्जी डिग्री वालों को पकड़ने के बजाय 2012 में संविधान में ऐसा संशोधन कर दिया गया कि डिग्री की अनिवार्यता खत्म हो गई.
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डिग्री का गोलमाल
फर्जी डिग्री विवाद के दौरान पाकिस्तान में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग के एक सांसद की डिग्रियों में बड़ा गोलमाल था. उन्होंने एमए 2002 में किया था जबकि बीए 2006 में और स्कूली पढ़ाई 2007 में खत्म की थी. ऐसे ही एक मामले में एक सांसद तो केवल 10 साल की उम्र में ही हाईस्कूल कर चुके थे.
तस्वीर: Reuters
जर्मन रक्षा मंत्री कार्ल थियोडोर सू गुटेनबर्ग
जर्मन रक्षा मंत्री कार्ल थियोडोर सू गुटेनबर्ग को 2011 में तब अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा जब यह पाया गया कि उन्होंने अपने डॉक्टरेट के डिसर्टेशन को चुराया था. इस प्रसंग ने उनका राजनीतिक भविष्य खराब कर दिया.
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केन्या के राजनेता
फरवरी 2013 में केन्या के उच्च शिक्षा आयोग ने गैर मान्यताप्राप्त उच्च शिक्षा संस्थानों की डिग्रियों को मानने से इनकार कर दिया. मामला ये था कि कई वरिष्ठ मंत्रियों के साथ ही अन्य राजनेता इस तरह की फर्जी डिग्रियों का इस्तेमाल अपनी शैक्षणिक योग्यता के बतौर कर रहे थे.
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जर्मन शिक्षा मंत्री अनेटे शावान
ठीक इसी दौर में जर्मनी में फिर यही विवाद खड़ा हुआ. यूनिवर्सिटी ऑफ डुसेलडॉर्फ ने शिक्षा और विज्ञान मंत्री अनेटे शावान की डॉक्टरेट की डिग्री वापस ले ली. जर्मन फैकल्टी परिषद ने फैसला किया कि उन्होंने अपने शोध प्रबंध में जानबूझकर नकल की.
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रोमानिया में ईओन मांग और विक्टर पोंटा
विक्टर पोंटा सरकार के शिक्षा मंत्री रहे ईओन मांग पर भी अपने कई पेपर्स को चोरी करने के आरोप लगे. मांग ने पहले ही मई 2012 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद ऐसे ही आरोप खुद पोंटा पर भी लगे लेकिन नेशनल एथिक्स काउंसिल ने उनके रिसर्च को एकेडमिक अनुशासन के भीतर ही माना. लेकिन इस पर विवाद बरकरार रहा.
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हंगरी के पूर्व राष्ट्रपति पाल श्मिट
हंगरी में वर्ल्ड इकॉनोमी वीकली ने तत्कालीन राष्ट्रपति पाल श्मिट पर उनकी थिसीस, ''आधुनिक ओलंपिक कार्यक्रम का विश्लेषण'' के लिए चोरी के आरोप लगाए थे. जिसे बाद में बुडापेस्ट की सेमेल्वाइस यूनिवर्सिटी ने पुष्ट किया. इसके चलते राष्ट्रपति को अपने पद से हटना पड़ा.
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स्मृति ईरानी
इसके अलावा भारत में भी 'फर्जी डिग्री' का विवाद कई राजनेताओं से जुड़ा रहा है. मोदी सरकार की ही मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्री भी पिछले दिनों विवादों में रही है. उन पर आरोप था कि उन्होंने 2004 और 2014 के चुनावों में डिग्री को लेकर अलग अलग जानकारियां दी हैं.
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जितेंदर सिंह तोमर
आम आदमी पार्टी ने पीएम मोदी के खिलाफ तो तल्खी से मोर्चा खोला लेकिन खुद केजरीवाल सरकार में कानून मंत्री रहे जितेंदर सिंह तोमर को फर्जी डिग्री के चलते अपना पद छोड़ना पड़ा था.
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राहुल गांधी
फर्जी डिग्री का विवाद राहुल गांधी से भी जुड़ा रहा है. उन पर आरोप लगाए जाते हैं कि उन्होंने अपनी असल शैक्षणिक योग्यता को चुनाव आयोग के समक्ष दाखिल किसी भी दस्तावेज में नहीं बताया है.
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माना जाता है कि सरकार के ये नए नियम खासकर उन मीडिया संस्थानों को निशाना बनाकर लागू किए गए हैं जो पश्चिम समर्थक और विपक्ष की ओर झुकाव वाले हैं. सरकारी मीडिया और सरकार समर्थक मीडिया तो यूं भी सम्मानसूचक शब्दों का इस्तेमाल करता है.
हुन सेन की सरकार ने हाल के दिनों में अपने आलोचकों और विरोधियों पर सख्ती बढ़ा दी है. हुन सेन तीन दशक से सत्ता में हैं. मीडिया पर उनकी सरकार काफी सख्त रही है. कंबोडिया में असहमति जाहिर करना कोई आसान काम नहीं है. यह काफी खतरे वाला काम है. सरकार ने टेलिकम्यूनिकेशन पर नियंत्रण भी बढ़ा दिया है. ऑनलाइन मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वालों को सख्त कार्रवाई की चेतावनियां दी गई हैं. खासकर हुन सेन और उनके परिवार के बारे में लिखने, बोलने वाले लोग सरकार के सीधे निशाने पर हैं.
सूचना मंत्रालय में अंडर सेक्रटरी ओउक किमसेंग ने मीडिया से कहा, ''हम चाहते हैं कि अपनी खबर के पहले पैराग्राफ आप नेताओं का पूरा टाइटल लिखें. हालांकि बाद में आप बिना टाइटल के भी नाम लिख सकते हैं.''
हुन सेन की पत्नी को 2013 में एक शाही टाइटल दिया गया था जिसका अनुवाद कुछ यूं होगाः प्रख्यात वरिष्ठ विदुषी बन रैनी हुन सेन. यह दरअसल एक तरह की मानद पीएचडी है जो प्रथम महिला को दी गई थी. हालांकि प्रथम महिला ने औपचारिक तौर पर यूनिवर्सिटी से कोई डिग्री पास नहीं की है.
वैसे, सरकार पहले भी इस तरह की चेतावनियां जारी करती रही है लेकिन उन्हें अब तक नजरअंदाज किया जाता रहा है. नए नियम के तहत सिर्फ प्रधानमंत्री नहीं, सत्ताधारी पार्टी के अन्य कई नेताओं के लिए भी मान्य होगा. यानी उनके नाम के आगे भी अब टाइटल लगाने होंगे.
खास प्रतिभा के धनी 5 भारतीय नेता
कांग्रेस नेता डॉ. श्रीकांत जिचकर का नाम भारत के "सबसे योग्य व्यक्ति" के रूप में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है. अनगिनत डिग्रियों के अलावा वे एक पेंटर, पेशेवर फोटोग्राफर और एक्टर भी थे. ऐसे कुछ और प्रतिभाशाली नेता-
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नरसिंहा राव, कांग्रेस
पूर्व प्रधानमंत्री राव को भारतीय साहित्य में गहरी दिलचस्पी के अलावा 17 भारतीय और विदेशी भाषाओं का ज्ञान भी था. इनमें फ्रेंच. स्पैनिश, अरबी, जर्मन, ग्रीक, फारसी और लैटिन भाषाएं शामिल हैं.
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अटल बिहारी वाजपेयी, बीजेपी
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ना केवल एक कुशल वक्ता बल्कि एक उम्दा कवि भी हैं. उनकी कविताओं का संकलन 'मेरी इक्यावन कविताएं" काफी लोकप्रिय हुई.
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बाल ठाकरे, शिव सेना
महाराष्ट्र में शिव सेना की स्थापना करने वाले कद्दावर नेता बाल ठाकरे एक मंझे हुए कार्टूनिस्ट भी थे. लोकसत्ता और दूसरे कई प्रमुख भारतीय अखबारों में ठाकरे के कार्टून प्रकाशित हुआ करते थे. वह अमेरिकी कलाकार और उद्यमी वॉल्ट डिज्नी के प्रशंसक थे.
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एम करुणानिधि, डीएमके सुप्रीमो
जीवन के 92 वसंत देख चुके करुणानिधि स्क्रीनप्ले लेखन से राजनीति में आए. द्रविड़ मुनित्र कड़गम नेता फिलहाल गणितज्ञ रामानुजम के जीवन पर आधारित एक मेगा टेलीविजन धारावाहिक लिख रहे हैं. अपने करीब 75 साल लंबे लेखन में पहले भी कई फिल्मों और नाटकों की कहानी लिखी है.
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राजीव प्रताप रूडी, बीजेपी
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में रूडी का नाम एकलौते भारतीय सांसद के रूप में दर्ज है जिसने एयरबस-320 व्यावसायिक हवाई जहाज उड़ाया है. उनके नाम 1,000 से भी अधिक घंटों की उड़ान भरने का श्रेय है.