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समाज

कंबोडिया में पतियों को चुनौती न देने की परंपरा को चुनौती

२९ जनवरी २०२१

महिला समानता के मामले में कंबोडिया भी दूसरे देशों जैसा ही है. कंबोडिया में 700 सालों तक एक कविता के जरिए महिलाओं को सिखाया गया कि पति की बात को चुनौती नहीं देनी चाहिए, उनकी हर बात माननी चाहिए. लेकिन हालात बदल रहे हैं.

Kambodscha Phnom Penh | Coronavirus | Schüler am lernen
तस्वीर: Heng Sinith/AP Photo/picture alliance

"रात के खाने में देरी हो चुकी है. कपड़े की सफाई नहीं हुई है. अचार ठीक नहीं है.” कंबोडिया के रेम रान ने सारे बहाने सुन रखे हैं जिनका इस्तेमाल कोई पति अपनी पत्नी को पीटने के लिए करता है. रेम रान, निर्माण से जुड़े क्षेत्र में काम करते है. उन्होंने अपनी पिछले 40 साल की जिंदगी में घरेलू हिंसा को "जीवन का एक सामान्य हिस्सा” के तौर पर देखा है, लेकिन अब वे हालात को बदलने की कोशिश कर रहे हैं और इसका असर भी दिख रहा है.

कंबोडिया के स्कूलों में चलने वाली किताबों में 2007 तक बताया जाता था कि लड़कियों को अपने पतियों को चुनौती नहीं देनी चाहिए. अब भी किसी-किसी किताबों में ऐसा लिखा मिल जाता है. हालांकि, अब समय बदलने लगा है. अब ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के मामले राष्ट्रीय अभियान का हिस्सा बनने लगे हैं. इस महीने कंबोडिया की सरकार ने भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय योजना शुरू की है.

मामलों को नजरअंदाज करते हैं अधिकारी

जेंडर एंड डेवलपमेंट फॉर कंबोडिया एक गैर सरकारी संस्थान है. यह संस्थान महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को लेकर हस्तक्षेप करता है, हिंसा के खिलाफ जागरूकता के लिए कार्यशाला का आयोजन करता है, और इससे जुड़ी पीड़ितों से मुलाकात कर अधिकारियों तक उनके मामलों को पहुंचाता है. इस संस्था ने 30 लोगों को प्रशिक्षित किया है. रान उनमें से एक हैं. रान कहते हैं कि लिंग आधारित हिंसा "एक मानसिकता” से आती है. यह मानसिकता लोगों के दिमाग पर इस कदर हावी हो चुकी है कि इसे खत्म करना काफी मुश्किल है.

रान महिलाओं के अधिकारों की वकालत करते है. कंबोडिया की राजधानी नामपेन्ह में लैंगिक समानता को लेकर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. यहां देश के बाहर से आए करीब एक दर्जन लोगों ने लैंगिक समानता के बारे में सीखा. इसी कार्यशाला में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से बात करते हुए रान ने कहा, "मैंने महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और संवेदनहीन हिंसा के कई मामले देखे हैं. आमतौर पर, अधिकारी इसे नजरअंदाज करते हैं. अधिकारी कहते हैं कि यह एक निजी मामला है जिसे हर कीमत पर पति-पत्नी के ऊपर छोड़ दिया जाना चाहिए. हम इसे एक सामूहिक मामला बनाते हैं और अधिकारियों इसे रोकने की सलाह देते हैं.”

प्रधानमंत्री हून सेनतस्वीर: Heng Sinith/AP Photo/picture alliance

स्थिति में हुआ है पहले से सुधार

विश्व आर्थिक मंच के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स के मुताबिक, लैंगिक समानता को लेकर 2016 में कंबोडिया 112वें पायदान पर था लेकिन 2020 में यह 89वें पायदान पर पहुंच गया है. हालांकि, 2020 में देश में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिसकी हर जगह निंदा की गई. फरवरी महीने में ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर कपड़े बेचने वाली 39 साल की एक महिला को पोर्नोग्राफी के आरोपों में जेल में डाल दिया गया था. इस घटना के दो दिन पहले प्रधानमंत्री हुन सेन ने कहा था कि महिलाएं लाइवस्ट्रीम बिक्री के दौरान उत्तेजक कपड़े पहन यौन उत्पीड़न को बढ़ावा दे रही थी. इस घटना के पांच महीने बाद एक मसौदा मीडिया में लीक हुआ था जिसमें पहनावे को तय करने के लिए कानून बनाने की बात थी.

पिछले साल सितंबर महीने में पुलिस के एक प्रमुख अधिकारी पर मुकदमा नहीं चलाया गया, हालांकि उसे जांच में चार कनिष्ठ महिला अधिकारियों के साथ यौन दुर्व्यवहार का दोषी पाया गया. उनके करियर को खतरे में डालने की धमकी देकर उन्हें चुप करा दिया था. महिला अधिकारियों की हिम्मत के लिए तारीफ की गई और महिला अधिकारों के लिए अभियान चलाने वालों ने इसे महिला मामलों के मंत्रालय की विफलता बताया. सरकार 'महिलाओं के सम्मान की रक्षा' करने के नाम पर मुकदमे से पीछे हट गई.

पितृसत्ता की रक्षा की कोशिश

महिलाओं के लिए काम करने वालों ने कहा कि देश में महिलाओं को काफी कम अधिकार दिए गए हैं. अधिकारियों ने प्रत्येक मामले में तर्क दिया कि कंबोडियाई संस्कृति और महिलाओं की गरिमा की रक्षा करना उनकी जिम्मेदारी नहीं थी. जेंडर एंड डेवलपमेंट फॉर कंबोडिया (जीएडीसी) के निदेशक रोस सोफेप ने कहा, "महिलाओं के शरीर पर अधिकार जमाना संस्कृति या गरिमा नहीं है. इन सभी निर्णयों को कौन देखता है: पुरुष. यह यथास्थिति और पितृसत्ता की रक्षा को लेकर है."

कंबोडिया की समीक्षा करते हुए साल 2019 में संयुक्त राष्ट्र ने "ऐसे सामाजिक मानदंडों को समाप्त करने का आह्वान किया जो लिंग आधारित हिंसा को सही ठहराते हैं". इसमें चबाप श्रेय का उन्मूलन भी शामिल है. यह कविता "महिलाओं के पिछड़ेपन की स्थिति का मूल कारण" है.

परिवार को समर्पित जीवनतस्वीर: picture-alliance/dpa/The Phnom Penh Post

पति की सारी बातें माननी चाहिए

चबाप श्रेय या महिलाओं के लिए कोड की शुरुआत 14वीं शताब्दी में हुई थी जो 2007 तक चली. यह वहां के स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा भी थी. 16 साल की उम्र होने तक सभी लड़कियों को यह कविता पूरी तरह से याद करवायी जाती थी. पारंपरिक कला को सहेजने वाली एक चैरिटी कंबोडियन लिविंग आर्ट की प्रोग्राम मैनेजर और कवियित्री सो फिना कहती हैं, "इस कविता का लय काफी अच्छा है, लेकिन अर्थ काफी नुकसानदायक था. इसका समाज पर काफी असर देखने को मिला.”

कविता में बताया गया है कि महिलाओं को अपने पति की सारी बातें माननी चाहिए और उसकी सेवा करनी चाहिए. साथ ही महिलाओं के रहने और पहनावे को लेकर भी कई बातें बताई गई है. फिना आगे कहती हैं, "जब हम बड़े हो रहे थे, तो इसे सीखना काफी अच्छा लगता था. लेकिन क्या हमें यह सिखाया जाता है कि हमें यह सवाल करना चाहिए कि यह कोड महिलाओं पर क्यों लगाया गया है.”

राष्ट्रव्यापी योजना

साल 2007 में इस कोड पर रोक लगा दी गई लेकिन अभी भी यह 7वीं, 8वीं और 9वीं कक्षा की किताबों में शामिल है. शिक्षा मंत्रालय में पाठ्यक्रम विकास के निदेशक सुन बुन्ना कहते हैं कि उन्हें बैन की जानकारी नहीं थी. चबाप श्रेय एक अच्छी कविता है. इससे लड़कियों को समाज में बहादुरी से रहने की सीख मिलती है. इस कविता की आलोचना करना पूरी तरह गलत है. आज की तारीख में समाज पूरी तरह खुल चुका है. महिलाएं दुनिया के हर हिस्से की खबरें पढ़ सकती हैं. कभी-कभी वे उन जानकारी को स्वीकार कर सकती हैं और हिंसा कर सकती हैं.

इस महीने कंबोडिया ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुकाबला करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी योजना शुरू की है. वहीं महिला अधिकारों के लिए काम करने वालों ने "समाज की हर परत में उलझे सामाजिक मानदंडों" को जड़ से खत्म करने की क्षमता पर संदेह व्यक्त किया है. स्थानीय मानवाधिकार समूह लिचाडो के निदेशक नैली पिलोग ने कहा, "पीड़ितों के दोषारोपण की प्रथा लैंगिक असमानता को और बढ़ाती है और हिंसा और असुरक्षा का वातावरण तैयार करती है." वे कहते हैं, "सरकार जब तक प्रशासन के सभी स्तरों पर लैंगिक समानता के लिए काम नहीं करती है, तब तक कंबोडिया की महिलाओं की जीवन स्थिति में सुधार नहीं होने वाला है."

आरआर/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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