64 देशों और यूरोपीय संघ के नेताओं ने बीते दशकों में प्रकृति को हुए अभूतपूर्व नुकसान को 2030 तक पलटने की शपथ ली है. शपथ में नेताओं ने लिखा कि वो इस भूमंडलीय आपातकाल का सामना करने के लिए अर्थपूर्ण कार्रवाई करेंगे.
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सोमवार को ली गई शपथ में नेताओं ने लिखा, "प्रकृति के लिए इस शपथ को लेते हुए हम अपनी प्रतिबद्धता जताते हैं कि हम इस भूमंडलीय आपातकाल का सामना सिर्फ शब्दों में नहीं करेंगे बल्कि अर्थपूर्ण कार्रवाई भी करेंगे और एक दूसरे की जवाबदेही भी स्थापित करेंगे."
शपथ में आगे लिखा है, "विज्ञान ने स्पष्ट रूप से दर्शाया है कि जैव विविधता का लोप, भूमि और महासागरों की दुर्दशा, प्रदूषण, संसाधनों का कम होना और जलवायु परिवर्तन, सब अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ रहे हैं. हमारे जीवन को सहारा देने वाली प्रणालियों को अपरिवर्तनीय नुकसान हो रहा है और इससे गरीबी, असमानताएं, भूख और कुपोषण भी बढ़ रहे हैं."
इन प्रतिज्ञाओं में कोरोना वायरस से उभरने में जैव विविधता को केंद्र में रखना, लंबे समय तक चलने वाली सप्लाई चेनों को समर्थन देना, अनियंत्रित मछली पकड़ने का अंत करना, 2050 तक महासागरों में प्लास्टिक के जाने को खत्म करना और वन्य जीवों की अवैध तस्करी को रोकना शामिल है. शपथ पर हस्ताक्षर करने वालों में राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों, जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन शामिल हैं.
लेकिन दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले कई देश इसमें शामिल नहीं हुए, जिनमें ब्राजील, चीन, भारत और अमेरिका शामिल हैं. शपथ संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता सम्मलेन के मौके पर ली गई है, जिसका आयोजन बुधवार को होना है. इसे विश्व के नेताओं के लिए पर्यावरण को हो रहे नुकसान की रोकथाम के लिए उनकी महत्वाकांक्षा को बढ़ाने के एक मौके के रूप में देखा जा रहा है.
कुछ ही दिनों पहले संयुक्त राष्ट्र की एक अहम रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि 10 साल पहले वैश्विक जैव विविधता के जिन 20 बिंदुओं को 2020 तक हासिल कर लेने का लक्ष्य रखा गया था, सभी देश उनमें से एक को भी पूरी तरह से हासिल नहीं कर पाए हैं. संयुक्त राष्ट्र का ऐतिहासिक सीओपी15 जैव विविधता अधिवेशन मई में चीन के कुंमिंग में होना है और उसमें प्रकृति को नष्ट होने से बचाने की 10 साल की एक रणनीति पर सहमति बनाने के लिए चर्चा होगी.
मिट्टी की उर्वरता घट रही है, मरुस्थल बढ़ते जा रहे हैं. फैलते मरुस्थल संयुक्त राष्ट्र के लिए भी चिंता का विषय है.
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बंजर धरती
पृथ्वी की सतह का एक तिहाई हिस्सा बंजर हो चुका है, और लगातार मरुस्थलों का विस्तार हो रहा है. तस्वीर में देखा जा सकता है कि अलजीरिया में हॉगर पहाड़ी इलाके में हजारों साल में किस तरह मरुस्थल चट्टानों का रूप ले चुके हैं.
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सूखा
एशिया, अफ्रीका और अमेरिका में मरुस्थलों का तेजी से विस्तार हो रहा है. 2011 में अमेरिका के टेक्सास में आए सूखे को गेहूं के खेत झेल नहीं सके.
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आबादी पर असर
हर साल करीब 70,000 वर्ग किलोमीटर नए मरुस्थल बन रहे हैं. पर्यावरण परिवर्तन में इंसानों का भी बड़ा योगदान है.
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पशुओं से नुकसान
पशुओं की बड़ी आबादी भी जमीन के सूखने का एक कारण है. वे छोटी घास को भी खा जाते हैं जिसके कारण जमीन खुद की तेज हवा और पानी से रक्षा नहीं कर पाती है. मिट्टी कमजोर पड़ जाती है और सूखे की स्थिति में मरुस्थलीकरण का शिकार हो जाती है.
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गैरजिम्मेदाराना खेती
किसानों के लिए भी मरुस्थलों का फैलना बड़ी समस्या है. जैसे कि मेक्सिको में मक्के की खेती बुरी तरह प्रभावित हो रही है. फसल की कटाई के बाद मिट्टी को दोबारा तैयार होने का ठीक समय नहीं दिया जाता और दोबारा बुआई कर दी जाती है. इससे मिट्टी के पोषक तत्व कम होते हैं और समय के साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी घटती जाती है.
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घटते जंगल
तेजी से जंगलों के काटे जाने से पेड़ों की संख्या घटती जा रही है. शहरों और औद्योगीकरण के विस्तार के साथ जंगल सिकुड़ रहे हैं. जंगलों के कटने से खाली होने वाले मैदान को नुकसान पहुंचने का खतरा बढ़ जाता है.
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पानी
बढ़ती आबादी के साथ पानी का इस्तेमाल भी बढ़ता जा रहा है. पिछले पचास सालों में पानी का इस्तेमाल दोगुना हो गया है. इस कारण पानी के स्रोत भी घटते जा रहे हैं.
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चेन रिएक्शन
मरुस्थलीकरण अकेला नहीं आता. इसके साथ और भी नुकसान किसी चेन की तरह होते हैं. पौधों का विकास प्रभावित होता है, पानी का ज्यादा वाष्पीकरण होता है और जमीन सूखती है. मिट्टी में नमक बढ़ता है और वह कठोर होती जाती है. मिट्टी को बचाना मुश्किल हो जाता है.
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दूरगामी प्रभाव
मरुस्थलों के विस्तार के साथ कई पशु प्रजातियों की विलुप्ति हो सकती है. गरीबी, भुखमरी और पानी की कमी इससे जुड़ी अन्य समस्याएं हैं.
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जमीन को दोबारा उर्वर बनाना
मिट्टी की उर्वरा शक्ति लौटाई जा सकती है लेकिन यह महंगा काम है. जैसे कि डॉमिनिकन रिपब्लिक में नए पेड़ लगाए जा रहे हैं. दुनिया भर में इस तरह के प्रोजेक्ट्स की विकास दर अभी ज्यादा नहीं है.
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सबसे बड़ी चुनौती
1996 में यूएन कंवेंशन टू कंबैट डिजरटिफिकेशन ने सामने आकर मोर्चा संभाला. तबसे वे मरुस्थलों के विस्तार को रोकने की मुहिम में लगे हैं.