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कई सपनों को भी लील गई अस्पताल की आग

९ दिसम्बर २०११

कोलकाता के आलीशान व महंगे एएमआरआई अस्पताल में शुक्रवार को लगी भयावह आग ने सिर्फ मरीजों की जिंदगी ही नहीं, बल्कि सैकड़ों सपनों को भी खाक कर दिया. नियम को धज्जियां उड़ाकर चल रहे अस्पताल में अक्सर नेता भी इलाज कराया करते थे.

तस्वीर: AP

अगले महीने सुप्रिया की शादी थी. लेकिन बीते सप्ताह अचानक तबियत बिगड़ने की वजह से उसकी मां को इस अस्पताल में दाखिल कराया गया था. उसे शुक्रवार को ही छुट्टी मिलनी थी. लेकिन अस्पताल की बजाय उसे दुनिया से ही छुट्टी मिल गई. बेटी के हाथ पीले करने का सपना उसकी आंखों में ही रह गया. अस्पताल के बाहर मां के शव का इंतजार कर रही सुप्रिया को समझ में नहीं आ रहा कि वह अब क्या करें. कहती हैं, "कल रात को ही मां से मिल कर गई थी. डॉक्टर ने कहा था कि कल सुबह ले जाना. लेकिन सुबह चार बजे अचानक अस्पताल में आग लगने की खबर मिली. अस्पताल पहुंचने पर मां की बजाय उसका शव मिला. वह भी घंटों इंतजार करने के बाद."

दिल की बीमारी का इलाज कराने के लिए गुरुवार को इस अस्पताल में दाखिल अखिल दास को सपने में भी इसकी आशंका नहीं थी कि वे अगली सुबह नहीं देख पाएंगे. अस्पताल में उनके बेटे नरेन दास ने कहा कि डॉक्टरों ने कहा था कि एक सप्ताह में पिताजी घर लौट जाएंगे. लेकिन अब वे कभी नहीं लौटेंगे. नरेन को अमेरिका में एक अच्छी नौकरी मिल गई थी और 20 तारीख को उसे रवाना होना था.

तस्वीर: AP

लोगों की नाराजगी

शुक्रवार की सुबह अस्पताल परिसर में पहुंचने पर जितने शव मिले उतनी ही मार्मिक कहानियां भी थीं. लगभग हर मरीज और उनके घरवालों ने बीती रात तक जो सपने देख रखे थे वे सब इस आग में स्वाहा हो गए. जिंदगी की आस लिए इस महंगे अस्पताल में दाखिल होने वालों को मौत नसीब हुई. अपनों और उन सपनों के राख होने का गम उस समय नाराजगी में बदल गया जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अस्पताल में पहुंचीं. नाराज परिजन उन पर फूट पड़े.

कोई इस घटना के लिए अस्पताल प्रबंधन को जिम्मेदार ठहरा रहा था तो कोई सरकार को. लोगों का सवाल था कि आखिर इतने बड़े अस्पताल में अग्निशमन की समुचित व्यवस्था नहीं होने के बावजूद उसे लाइसेंस और फायर ब्रिगेड से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट कैसे मिला. ममता के पास उनके सवालों का कोई जवाब नहीं था. वे अधिकारियों को शवों को बाहर निकाल कर पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पतालों में भिजवाने की व्यवस्था करती रहीं.

अस्पताल पर आरोप

अस्पताल के मालिक तो दूर कोई डॉक्टर या नर्स तक मौजूद नहीं थी. लोगों के गुस्से से बचने के लिए सब लोग फरार हो गए थे. वैसे, किसी समय इस अस्पताल के मालिक लगभग रोजाना टीवी पर मुस्कुराते नजर आते थे. यह वह समय था जब पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु लंबे समय तक इसी अस्पताल की दूसरी शाखा में भर्ती थे. बसु का निधन भी वहीं हुआ था. सीपीएम, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के दूसरे कई नेता भी अक्सर इलाज के लिए इस अस्पताल में आते थे. शायद राजनेताओं की इस करीबी ने ही अस्पताल प्रबंधन को नियमों की अनदेखी करने का साहस दिया था. आग की शुरूआत बेसमेंट से हुई. उसके बाद धीरे-धीरे ऊपरी मंजिलों में धुंआ फैलने लगा.

मरीजों ने ड्यूटी पर तैनात नर्स को फायर ब्रिगेड को सूचना देने की बात कही तो उसने कहा कि चिंता मत करें, आग पर काबू पा लिया गया है. फायर ब्रिगेड को सूचना देर से दी गई. रात को ढाई से तीन बजे के बीच लगी आग धीरे-धीरे फैलती गई. फायर ब्रिगेड के लोग सुबह पांच बजे मौके पर पहुंचे. तब तक यह अस्पताल लाक्षागृह बन चुका था.

मृतकों को इस तरह निकाला जा सकातस्वीर: AP

यही नहीं, अस्पताल प्रबंधन ने स्थानीय लोगों को भी आग बुझाने के लिए अस्पताल के भीतर आने की अनुमति नहीं दी. बाद में लोग जबरन भीतर घुसे और उन्होंने कई मरीजों को सुरक्षित बाहर निकाला. इन युवकों में एक बादल कहते हैं, "पहले तो सुरक्षा कर्मचारियों ने हमको भीतर ही नहीं जाने दिया. आधे घंटे बाद हम जबरन भीतर घुसे. तब तक हर मंजिल पर धुंआ भर चुका था. हमने दर्जनों मरीजों को बाहर निकाला." उनका कहना है कि अगर हमें पहले ही भीतर जाने दिया गया होता तो कई और मरीजों की जान बचाईं जा सकती थी.

बेबस मरीज कुछ न कर सके

नारायण सान्याल उन चंद सौभाग्यशाली मरीजों में हैं जो इस आग से जीवित बच कर बाहर निकल आए. वह बताते हैं, सुबह चार बजे जब नींद टूटी तो दो नर्सें आपस में बात कर रही थीं कि अस्पताल के एक हिस्से में आग लग गई है. लेकिन उन्होंने हमारे बचाव के लिए कुछ भी नहीं किया. बाद में फायर ब्रिगेड के लोगों ने खिड़की का शीशा तोड़ कर मुझे बाहर निकाला. उनके तमाम काजगात वहीं आग में जल गए. सान्याल को इस बात का बेहद अफसोस है कि वे अपने बगल के बिस्तर पर इलाज करा रहे एक मरीज को नहीं बचा सके. उसके पांव में तकलीफ थी. वह बिना किसी सहारे के चल नहीं सकता था. इस आग ने उसे लील लिया.

जिस बेसमेंट का इस्तेमाल कार पार्किंग के लिए किया गया था वहां कई ज्वलशील वस्तुएं रखी थीं. प्राथमिक जांच से पता चला है कि आग शार्ट सर्किट की वजह से लगी. बेसमेंट में रखे ज्वलनशील पदार्थों की वजह से आग तेजी से फैली.

सवालों की आग

अब सरकार और अस्पताल प्रबंधन ने इस घटना में मरने वाले मरीजों के परिजनों को आर्थिक सहायता देने का एलान किया है. लेकिन महंगा अस्पताल होने की वजह से यहां इलाज कराने वाले ज्यादातर लोग संपन्न तबके के हैं. ऐसे में कुछ लाख रुपयों से अपनों को खोने का गम नहीं मिटेगा. एक मरीज के परिजन ने सवाल किया कि बीते पंद्रह दिनों के दौरान हमने अस्पताल को दस लाख रुपए का बिल भरा था. हम तो जान बचाने के लिए मरीज को यहां ले आए थे, उसकी जान का सौदा करने नहीं.

आगजनी की इस घटना ने दो साल पहले महानगर से पार्क स्ट्रीट स्थित स्टीफन कोर्ट नामक इमारत में लगी आग की यादें ताजा कर दी हैं. इसके साथ ही सवाल उठने लगा है कि आखिर पर्याप्त अगिनरोधक उपायों के बिना ऐसी इमारतों को हरी झंडी कैसे मिल जाती है. स्टीफन कोर्ट की आग के बाद सरकार ने तमाम इमारतों की जांच पड़ताल शुरू की थी. लेकिन कुछ समय बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया. अब इस आग के बाद भी एक बार फिर वही कवायद शुरू होगी. लेकिन उसका क्या नतीजा निकलेगा, यह अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है. सरकार ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं. इस अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है और प्रबंधन के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाने के निर्देश दिए गए हैं. लेकिन इस आग ने जिन घरों में अंधेरा फैलाया उनका क्या होगा, इस सवाल का जवाब न तो सरकार के पास है और न ही अस्पताल प्रबंधन के पास. कल तक रंगीन सपने देखने वाली सैकड़ों आंखों में आज उदासी, सूनापन और लपटों से आंखों में जलन पैदा करती भयावह रात उतर आई है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः ओ सिंह

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