भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए फादर स्टैन स्वामी का हिरासत में निधन हो गया. वो 84 वर्ष के थे. एनआईए पर उन्हें अनुचित रूप से गिरफ्तार करने और जेल प्रशासन पर उनके स्वास्थ्य को नजरअंदाज करने के आरोप लगते आए हैं.
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अक्टूबर 2020 को कोरोना वायरस महामारी के बीच जब स्वामी को एनआईए ने रांची के नामकुम स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया था, वो उस समय में भी पार्किंसंस और अन्य स्वास्थ संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे. इसके बावजूद 83 वर्षीय स्वामी को मुंबई के तलोजा केंद्रीय कारागार में बंद कर दिया गया. जो आठ महीने उन्होंने हिरासत में बिताए, इस दौरान उन्होंने और उनके प्रतिनिधियों ने कई बार उनके साथ अमानवीय किए जाने व्यवहार के आरोप लगाए.
जेल जाने के कुछ ही दिनों बाद स्वामी ने विशेष एनआईए अदालत से गुजारिश की थी कि उन्हें पानी पीने के लिए एक सिप्पर और स्ट्रॉ दिलवा दिया दिया जाए क्योंकि पार्किंसंस बीमारी से पीड़ित होने की वजह से वो पानी का गिलास उठा नहीं पाते हैं. लेकिन उन्हें एक सिप्पर और स्ट्रॉ जैसी छोटी सी मानवीय सहायता भी करीब 50 दिनों बाद दी गई. उन्होंने जमानत के लिए एक नहीं दो बार अदालत में याचिकाएं डालीं, लेकिन वो खारिज कर दी गईं.
जेल में स्वास्थ्य में गिरावट
पहली बार तो विशेष एनआईए अदालत ने उनकी जमानत की याचिका को खारिज करने के लिए भी तीन महीने का समय लिया. उन्होंने नवंबर 2020 में याचिका डाली थी जो मार्च 2021 में खारिज कर दी गई. मई में उन्होंने एक बार फिर जमानत याचिका डाली, और अदालत से कहा कि उनकी हालत बहुत खराब है और अगर उन्हें जेल से जल्द निकाला ना गया तो वो मर भी सकते हैं.
उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत को बताया कि जब उन्हें पहली बार जेल लाया गया था, तब कम से कम उनका शरीर मूल रूप से काम कर रहा था, लेकिन जेल में रहते रहते उनकी सुनने की शक्ति और कम हो गई और नहाना तो दूर, वो खुद चलने और खाना खाने के भी काबिल नहीं रहे हैं. मई 2021 में जेल में ही वो कोविड-19 से संक्रमित हो गए, जिसके बाद 28 मई को बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने उन्हें जेल से निकाल कर हौली फैमिली अस्पताल में भर्ती कराया.
चार जून को अस्पताल में ही उनकी हालत और खराब हो गई और उन्हें वेंटीलेटर पर डाल दिया गया. उसी दिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उनकी अवस्था को संज्ञान में लेते हुए महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया और आदेश दिया कि उनके इलाज का हर संभव इंतजाम किया जाए. सात जून को जमानत की उनकी याचिका पर दोबारा सुनवाई होनी थी, लेकिन उनका उसके पहले ही निधन हो गया.
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आरोपों पर संदेह
एनआईए का आरोप है कि स्वामी प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सदस्य थे और 2018 में पुणे के पास भीमा-कोरेगांव में जातिगत हिंसा भड़काने की साजिश में शामिल थे. स्वामी ने इन आरोपों से इंकार किया था और कहा था कि उन्हें आदिवासियों और हाशिए पर सिमटे अन्य समुदायों की मदद करने और उनका नुकसान करने वाली सरकार की नीतियों का विरोध करने के लिए निशाना बनाया जा रहा है.
अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार होने से दो दिन पहले ही उन्होंने एक वीडियो संदेश में अपनी गिरफ्तारी की आशंका जाहिर की थी. उन्होंने बताया था की एनआईए कम से कम दो बार कई घंटों तक उनसे पूछताछ कर चुकी है और उनके घर और सामान की तलाशी ले चुकी है. उन्होंने यह भी बताया था कि उनके कंप्यूटर से अभियोगात्मक सामग्री मिलने का उनका दावा झूठा है और यह सामग्री उनके कंप्यूटर से छेड़छाड़ करके उसके अंदर डाली गई है.
स्वामी के अलावा इस मामले में कम से कम 15 और मानवाधिकार कार्यकर्ता हिरासत में हैं. फरवरी 2021 में अमेरिकी डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग ने दावा किया कि इनमें से एक आरोपी रोना विल्सन की गिरफ्तारी के करीब 22 महीनों पहले उनके कंप्यूटर में एक मैलवेयर भेज कर उसे हैक कर लिया गया था और फिर धीरे धीरे उनके कंप्यूटर में कम से कम 10 दस्तावेज "प्लांट" किए गए यानी उनकी जानकारी के बिना उनके कंप्यूटर में छिपा दिए गए.
बढ़ती जा रही है जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि देश की जेलों में ऐसे कैदियों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है जिनके खिलाफ आरोपों पर सुनवाई अभी चल ही रही है. जानिए और क्या बताते हैं ताजा आंकड़े.
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कितनी जेलें
2019 में देश में कुल 1,350 जेलें थीं, जिनमें सबसे ज्यादा (144) राजस्थान में थीं. दिल्ली में सबसे ज्यादा (14) केंद्रीय जेलें हैं. कम से कम छह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी केंद्रीय जेल नहीं है.
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जेलों में भीड़
इतनी जेलें भी बंदियों की बढ़ती संख्या के लिए काफी नहीं हैं. ऑक्यूपेंसी दर 2018 में 117.6 प्रतिशत से बढ़ कर 2019 में 118.5 प्रतिशत हो गई. सबसे ज्यादा ऊंची दर जिला जेलों (129.7 प्रतिशत) है. राज्यों में सबसे ऊंची दर दिल्ली में है (174.9 प्रतिशत).
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महिला जेलों का अभाव
'पूरे देश में सिर्फ 31 महिला जेलें हैं और वो भी सिर्फ 15 राज्यों/केंद्रीय शासित प्रदेशों में हैं. देश की सभी जेलों में कुल 4,78,600 कैदी हैं, जिनमें 19,913 महिलाएं हैं.
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कर्मचारियों का भी अभाव
2019 में जेल स्टाफ की स्वीकृत संख्या थी 87,599 लेकिन वास्तविक संख्या थी सिर्फ 60,787. सबसे बड़ा अभाव प्रोबेशन अधिकारी, कल्याण अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक आदि जैसे सुधार कर्मियों का था.
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कैदियों पर खर्च
2019 में देश में कैदियों पर कुल 2060.96 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जो कि जेलों के कुल खर्च का 34.59 प्रतिशत था. इसमें से 47.9 प्रतिशत (986.18 करोड़ रुपए) भोजन पर खर्च किए गए, 4.3 प्रतिशत (89.48 करोड़ रुपए) चिकित्सा संबंधी खर्च पर, 1.0 प्रतिशत (20.27 करोड़ रुपए) कल्याणकारी गतिविधियों पर, 1.1 प्रतिशत (22.56 करोड़ रुपए) कपड़ों पर और 1.2 प्रतिशत (24.20 करोड़ रुपए) शिक्षा और ट्रेनिंग पर किया गया.
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70 प्रतिशत कैदियों के मामले विचाराधीन
2019 में देश की सभी जेलों में अपराधी साबित हो चुके कैदियों की संख्या (1,44,125) ऐसे कैदियों की संख्या से ज्यादा थी जिनके खिलाफ मामले अभी अदालतों में विचाराधीन ही हैं (3,30,487). एक साल में विचाराधीन कैदियों की संख्या में 2.15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इनमें से लगभग आधे कैदी जिला जेलों में हैं और 36.7 प्रतिशत केंद्रीय जेलों में.
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न्याय के इंतजार में
विचाराधीन कैदियों में 74.08 प्रतिशत कैदी (2,44,841) एक साल तक की अवधि तक, 13.35 प्रतिशत कैदी (44,135) एक से दो साल की अवधि तक, 6.79 प्रतिशत (22,451) दो से तीन सालों तक, 4.25 प्रतिशत (14,049) तीन से पांच सालों तक और 1.52 प्रतिशत कैदी (5,011) पांच साल से भी ज्यादा अवधि से जेल में बंद थे.
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शिक्षा का स्तर
सभी कैदियों में 27.7 प्रतिशत (1,32,729) अशिक्षित थे, 41.6 प्रतिशत (1,98,872) दसवीं कक्षा तक भी नहीं पढ़े थे, 21.5 प्रतिशत (1,03,036) स्नातक के नीचे तक पढ़े थे, 6.3 प्रतिशत (30,201) स्नातक थे, 1.7 प्रतिशत 8,085 स्नातकोत्तर थे और 1.2% प्रतिशत (5,677) कैदियों के पास टेक्निकल डिप्लोमा/डिग्री थी.
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मृत्युदंड वाले कैदी
सभी कैदियों में कुल 400 कैदी ऐसे थे जिन्हें मौत की सजा सुना दी गई थी. इनमें से 121 कैदियों को 2019 में मृत्युदंड सुनाया गया था. 77,158 कैदियों (53.54 प्रतिशत) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
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जेल में मृत्यु
2018 में 1,845 कैदियों के मुकाबले 2019 में 1,775 कैदियों की जेल में मृत्यु हुई. इनमें से 1,544 कैदियों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई. अप्राकृतिक कारणों से मरने वाले कैदियों की संख्या 10.74 प्रतिशत बढ़ कर 165 हो गई. इनमें से 116 कैदियों की मौत आत्महत्या की वजह से हुई, 20 की मौत हादसों की वजह से हुई और 10 की दूसरे कैदियों द्वारा हत्या कर दी गई. कुल 66 मामलों में मृत्यु का कारण पता नहीं चल पाया.
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पुनर्वास
2019 में कुल 1,827 कैदियों का पुनर्वास कराया गया और 2,008 कैदियों को रिहाई के बाद वित्तीय सहायता दी गई. कैदियों द्वारा कुल 846.04 करोड़ रुपए मूल्य के उत्पाद भी बनाए गए.