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कचरे से बिजली का हल

१४ दिसम्बर २०१२

बिजली की कमी और यहां वहां जमा होता कचरा. दोनों ही परेशान करने वाली चीजें हैं. और भारत जैसे विकासशील देश दोनों ही से जूझ रहे हैं. अगर कचरे से बिजली बन जाए तो दोनों समस्याओं का हल हो सकता है. भारत में इसकी शुरुआत हो गई है.

तस्वीर: DW

यूरोप में करीब साढ़े चार सौ केंद्रों पर कचरे से बिजली बनाने का काम चल रहा है. अब भारत में भी इसकी शुरुआत हुई है. आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद तेजी से फैलता शहर है जिसे इसकी कीमत शोर और प्रदूषण के रूप में चुकानी पड़ रही है. लेकिन वहां रिसाइक्लिंग के जरिए आधुनिकता की मुश्किलों से निबटने की भी कोशिश हो रही है. शहर के एक प्लांट में कचरे की रिसाइक्लिंग में पर्यावरण का भी ध्यान रखा जा रहा है. रिसाइक्लिंग को पर्यावरण रक्षा से जोड़कर देखा जा रहा है. स्राको प्रोजेक्ट की सुनीता प्रसाद का कहना है कि हर रोज करीब दस टन कचरे की रिसाइक्लिंग हो रही है जिससे प्रदूषण घटा है.

तस्वीर: Leonie Wenning

हैदराबाद में पिछले सालों में उद्योग बढ़ा है, जिसकी वजह से कचरे की समस्याएं भी पैदा हुई हैं. औद्योगिक पार्क के मैनेजर विनोद कुमार बताते हैं कि बारिश में फैक्ट्रियों का जहरीला कचरा बहकर नालियों में भर जाता था. अब फैक्ट्रियों के साथ मिलकर इसे रोकने की कोशिश हो रही है और कचरे से बिजली बनाकर उद्योग की मदद भी की जा रही है. सैलिसिलेट्स केमिकल्स के मैनेजर जीवन कुमार कहते हैं, "कोयले का खर्च और कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन भी बढ़ रहा है. तो इस तरीके से हम कोयला भी बचा पाएंगे और पर्यावरण को भी बचा सकेंगे."

इन कदमों के अलावा लोगों को जागरूक करने की भी कोशिश हो रही है. जर्मन संस्था जीआईजेड की मदद से वर्कशॉप चलाए जा रहे हैं जिनमें बताया जाता है कि किस तरह से छोटे छोटे स्तर पर पर्यावरण रक्षा के कदम उठाए जा सकते हैं. औद्योगिक पार्क के मैनेजर विनोद कुमार का मानना है कि यदि इस प्रोजेक्ट पर पूरी तरह अमल हो तो हर साल लगभग अड़तीस लाख टन कार्बन डायऑक्साइड की कटौती हो सकती है.

इस परियोजना के बारे में डीडब्ल्यू के वीडियो साइंस मैगजीन मंथन में विस्तार से बताया गया है. यह कार्यक्रम भारत में दूरदर्शन के डीडी-नेशनल चैनल पर शनिवार सुबह 10:30 बजे देखा जा सकता है. शनिवार और रविवार की मध्यरात्रि 12 बजे मंथन का फिर से प्रसारण होता है.

मंथन की दूसरी रिपोर्टों में पानी को साफ करने के प्रयासों के अलावा भूलने की बीमारी अल्जाइमर के बढ़ते मामलों और उससे बचने के उपायों पर चर्चा शामिल है. दुनिया का लगभग तीन चौथाई हिस्सा पानी से भरा है, फिर भी पीने के पानी की कमी है क्योंकि ज्यादातर पानी पीने लायक नहीं. जर्मन वैज्ञानिक गंदे पानी को साफ साफ कर उसे पीने लायक बनाने पर काम कर रहे हैं.

आईबी/एनआर

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