बलूचिस्तान प्रांत के मुसाखेल में कतर का शाही परिवार दुर्लभ तिलोर का शिकार करने पहुंचा था. इसी दौरान बड़ी संख्या में गांव वाले उनकी तरफ दौड़ पड़े. कई बंदूकें और चाकू लहराते हुए आगे बढ़ रहे थे. शाही परिवार सलामत है.
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इलाके के डीएसपी मुहम्मद यासेर के मुताबिक 25 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. पुलिस का कहना है कि गांव वाले शाही परिवार से मिलना चाह रहे थे. वो एक मस्जिद के लिए पैसा जुटाना चाहते थे. लेकिन जब ग्रामीणों को शाही परिवार से नहीं मिलने दिया गया तो वे हिंसक हो गए.
कतर के एक अधिकारी ने भी हमले की पुष्टि करते हुए कहा, "कतर के शिकारी सरकारी परमिट के लिए आवेदन करते हैं और फीस देते हैं. साथ ही स्थानीय समुदायों और वन्यजीव संरक्षण के लिए भी दान देते हैं. दुर्भाग्य से हथियारबंद गुटों ने हमला किया."
वन्यजीव संरक्षण से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के मुताबिक पाकिस्तान में मिलने वाले तिलोर पक्षी खतरे में हैं. अब दुनिया भर में ऐसी 50,000 से 1,00,000 तिलोर ही बचे हैं. अरब प्रायद्वीप में तो वह पूरी तरह लुप्त हो चुके हैं. लेकिन पाकिस्तान में उनका शिकार जारी है.
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इस शिकार पर बैन लगा दिया था. लेकिन 2016 में सरकार ने अदालत से कहा कि प्रतिबंध से उसके खाड़ी के देशों के साथ रिश्ते खराब हो रहे हैं. सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने शिकार से प्रतिबंध हटा दिया.
अरब देशों में तिलोर के मांस को उच्च वर्ग का लजीज खाना माना जाता है. अरब जगत के अमीर लोग हर साल अपने बाजों के साथ पाकिस्तान आते हैं और सर्दियों में बाज की मदद से बटेरों और तिलोर का शिकार करते हैं.
स्थानीय लोगों को खुश रखने के लिए अरबी शिकारियों ने बलूचिस्तान में गांवों में सड़कें, स्कूल और मस्जिदें भी बनवाई हैं. रईस शिकारी कई बार अपनी महंगी फोर बाइ फोर गाड़ियां भी कबीले के सरदारों को तोहफे में दे जाते हैं.
लेकिन आलोचक कहते हैं कि अरब देशों में लोग बाज के जरिये शिकार, अपनी जान बचाने और पेट भरने के लिए करते थे. आज यह सिर्फ अमीरों का शौक भर है. कुछ आलोचक यह भी कहते हैं कि अरबी शिकारी आतंकवाद से प्रभावित इलाके में पैसा खर्च करते हैं.
दिसंबर 2015 में करीब 100 हथियारबंद लोगों ने इराक में कतर के 26 लोगों को अगवा कर लिया था. इनमें कतर के शाही परिवार का एक सदस्य भी था, जिसे अप्रैल 2016 में रिहा किया गया.
(इंसान जो दूसरे जीवों के साथ करता है, अगर वैसा ही सलूक इंसान के साथ किया जाए तो)
अगर ऐसा सलूक इंसानों के साथ हो तो?
जरा सोचिये कि जैसा व्यवहार इंसान जानवरों के साथ कर रहा है, अगर वैसा ही उसके साथ भी किया जाए तो. इसी अंदाज में दुनिया भर में पशु अधिकार कार्यकर्ता विरोध करते रहे हैं.
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इंसानी सभ्यता में अक्सर मनावाधिकारों, इंसानियत और एक व्यक्ति की गरिमा की बात होती है. लेकिन क्या पशुओं के भी अधिकार होते हैं? या फिर वे सिर्फ मांस हैं?
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पुराने जमाने में शरीर को गर्म रखने के लिए इंसान पशुओं की खाल का प्रयोग करता था. लेकिन अब फैशन के नाम पर जानवरों को पाला और मारा जाता है ताकि उनके उनके फर को इस्तेमाल किया जा सके.
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जर्मनी की राजधानी बर्लिन के ब्रांडेनबुर्ग गेट पर पशु अधिकार कार्यकर्ता. 6,20,000 लोगों को हस्ताक्षरों के जरिये उन्होंने जर्मन के पर्यावरण मंत्रालय से सर्कस में जंगली जानवरों के इस्तेमाल को रोकने की मांग की.
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लिपिस्टिक, लिपबाम या क्रीम को टेस्ट करने के लिए चूहों का इस्तेमाल होता है. काजल की टेस्टिंग में खरगोशों को अंधा होना पड़ता है. जर्मन दर्शनशास्त्री और भौतिकविज्ञानी अल्बर्ट श्वाइत्जर के मुताबिक, "जब तक इंसान सभी जीवित प्राणियों के लिए स्नेह का घेरा नहीं बनाएगा, तब तक शांति हासिल नहीं होगी."
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स्पेन में होने वाली बुलफाइटिंग का विरोध करते कार्यकर्ता. 20वीं सदी की महान शख्सियतों में गिने जाने वाले भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, "किसी राष्ट्र का नैतिक विकास इस बात से चेक किया जा सकता है कि वह पशुओं से कैसा बर्ताव करता है."
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चमड़े के लिए पशुओं को बड़े पैमाने पर कत्ल करने वाले उद्योगों के खिलाफ बार्सिलोना में इस अंदाज में प्रदर्शन हुआ.
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16वीं सदी में इटली में पैदा हुई महान शख्सियत लियोनार्दो दा विंची के मुताबिक, "एक दिन आएगा जब जानवर की हत्या को इंसान की हत्या की तरह देखा जाएगा."
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मीट उद्योग के लिए तैयार होने वाले जीवों को बहुत ज्यादा एंटीबायोटिक खिलाये जाते हैं. शारीरिक विकास तेज करने के लिए उन्हें कई तरह के रसायन दिये जाते हैं. जरा सोचिये पशुओं पर क्या गुजरती होगी.
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खुराक के अलावा इन जीवों को बेहद तंग माहौल में रखा और मारा जाता है.
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फैशन उद्योग ने लोमड़ियों की बड़ी पैमाने पर बलि ली है. इसी का विरोध इस अंदाज में करते पशु अधिकार कार्यकर्ता.
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बहुत सारे लोगों को अच्छे बैग, पर्स या बेल्ट बार बार खरीदने का शौक होता है, उनकी इस इच्छा की कीमत मगरमच्छों, सांपों, गायों या भैंसों को चुकानी पड़ती है.
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धीमी गति से चलने वाले कछुए लालची इंसान के तेज दिमाग का शिकार हो रहे हैं. बाली में समुद्री कछुओं के संरक्षण की अपली करते कार्यकर्ता.
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मछली और सील का शिकार करने वाले ध्रुवों के बर्फीले इलाके में जाते हैं, और वहां ध्रुवीय भालू भी उनका निशाना बनते हैं. गर्म होती जलवायु और शिकार ने ध्रुवीय भालुओं की हालत खस्ता कर रखी है.
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जापान में व्हेलों के अंधाधुंध शिकार के खिलाफ होता प्रदर्शन.