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कप्तानी बचाने को जूझते पोंटिंग

२९ दिसम्बर २०१०

लगातार नाकामी, रसातल में जाती बल्लेबाजी, बढ़ती उम्र और घटते धैर्य के बीच ऑस्ट्रेलिया के कप्तान रिकी पोंटिंग के सामने अब सबसे बड़ा लक्ष्य टीम की जीत नहीं, बल्कि अपनी कप्तानी बचाना बन गया है.

क्या बच पाएगा पंटरतस्वीर: picture alliance/empics

कप्तान के तौर पर वर्ल्ड कप का एक भी मैच न हारने वाले पोंटिंग इन दिनों सिर्फ हार देख रहे हैं. 24 साल बाद मौका आया है, जब इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया में खेली गई एशेज ट्रॉफी को उनके घर नहीं रहने दिया और इसका खामियाजा कप्तान रिकी पोंटिंग को भुगतना पड़ सकता है.

लगभग छह साल से कंगारुओं की कप्तानी कर रहे रिकी ने जब कमान संभाली, तो वह दुनिया की पहले नंबर की टीम थी. टेस्ट में भी और वनडे में भी. वनडे में तो बादशाहत बनी हुई है लेकिन टेस्ट में वह पांचवें नंबर पर खिसक गई है. पोंटिंग ने अगर दो बार टीम को वर्ल्ड कप जिताया है, तो अब तीन बार एशेज हराने वाले कप्तान भी बन गए हैं. और अगर किसी ऑस्ट्रेलियाई से पूछा जाए कि उनके लिए वर्ल्ड कप और एशेज में ज्यादा अहम क्या है, तो शायद एशेज का पलड़ा भारी पड़ जाए.

तस्वीर: AP

पूरे डेढ़ सौ मैच खेलने वाले रिकी पोंटिंग ने इनमें से 99 में जीत देखी है और कप्तान के तौर पर टीम को 48 मैच जिताए हैं. लेकिन एशेज में तीन सीरीज हारने के बाद उनकी स्थिति खराब होती जा रही है और पोंटिंग को खुद याद दिलाना पड़ रहा है कि वह कितने काबिल हैं. मेलबर्न में मैच खत्म होते ही पोंटिंग ने वह सब कह डाला, जिसकी तैयारी शायद उन्होंने पहले ही कर ली थी क्योंकि टीम की हार तो पक्की थी ही. पोंटिंग का कहना है कि उन्हें सिर्फ तीन एशेज हारने वाले कप्तान के तौर पर याद नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि उनकी महान उपलब्धियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए जो उन्होंने अपने करियर में हासिल की हैं.

ऐसी दलीलें तभी देनी पड़ती हैं, जब खिलाड़ी गर्त में जा रहा होता है और किसी तरह स्थिति बचाने के लिए जूझ रहा होता है. पोंटिंग के साथ भी कुछ ऐसा ही मामला लगता है.

ऑस्ट्रेलिया की टीम दुनिया की सबसे पेशेवर क्रिकेट टीम मानी जाती है और नाकामी के बाद बदलाव की बहुत गुंजाइश रहती है. लेकिन रिकी एकाध बार पहले ही ऐसे झंझावातों को झेल चुके हैं. सिर्फ कप्तानी की बात हो तो खैर, पर अबकी बार मामला मुश्किल है, बल्ला भी दगा दे गया है.

सचिन तेंदुलकर के बाद टेस्ट क्रिकेट के सबसे सफल बल्लेबाज रिकी पोंटिंग के नाम 39 शतक और 12,300 से ज्यादा रन हैं. उन्हें एक शानदार कलात्मक बल्लेबाज के रूप में देखा जाता है, जिसने बेहतरीन पारियों से न जाने कितनी बार ऑस्ट्रेलिया को लबरेज किया है. लेकिन एशेज की मौजूदा सीरीज में अब तक की आठ पारियों में उनके बल्ले ने सिर्फ 113 रन दिए हैं. कभी रन मशीन समझे जाने वाले पोंटिंग का खराब प्रदर्शन उनकी कप्तानी के मामले में जले पर नमक छिड़क सकता है.

तस्वीर: AP

ऊपर से तेवर. रिकी पोंटिंग की झुंझलाने वाली आदत उन्हीं के ताबूत में कील ठोंक सकती है. टीम जब जीतती है, तो कप्तान का गुस्सा नजरअंदाज हो जाता है. उसे जीत की टैक्टिस करार दिया जाता है. लेकिन टीम हार जाए, तो यह बड़ा महंगा साबित होता है. मेलबर्न में पोंटिंग ने अंपायर अलीम दार के साथ जो व्यवहार किया, उन्हें बहुत भारी पड़ सकता है. अंपायरों से बहस भद्रजनों के खेल क्रिकेट के प्रोटोकॉल में बड़ी बदतमीजी समझी जाती है और पोंटिंग अपने व्यवहार को लेकर पहले भी गुड बुक में नहीं रहे हैं.

टूटी अंगुली के साथ पोंटिंग का सिडनी टेस्ट खेलना पक्का नहीं है और कहीं ऐसा न हो कि उनका करियर करवट ले चुका हो और उन्हें इसका पता भी न हो.

36 साल के हो चुके पोंटिंग की गिनती सफलतम कप्तानों में होती है और सवाल उठता है कि क्या वह खुद हटेंगे. जी नहीं. वह तो कप्तानी बचाने के लिए दलीलें दे रहे हैं. वर्ल्ड कप की दुहाई भी दे सकते हैं कि दो महीने में मुकाबला शुरू होना है और उन्हें टीम को संभालना है. ऐसे में क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया उन्हें सार्वजनिक तौर पर कप्तानी से विदा कर सकता है या फिर चुपचाप उन्हें गुलाबी पर्ची पकड़ा सकता है. पर ऑस्ट्रेलिया के लिए भी मुश्किल कोई कम नहीं. कैप्टेन इन मेकिंग माइकल क्लार्क भी कोई करिश्मा नहीं कर पा रहे हैं और ऐसे स्तर की टीम को संभालने वाला तीसरा खिलाड़ी नजर नहीं आता.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः ए कुमार

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