अगले साल 75वीं बार आजादी का जश्न मनाया जाएगा. भारत सरकार के पास एक साल का समय है कि वह सारे जरूरी कानूनों को सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद कर देश की जनता को असली आजादी का अहसास दे.
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इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने एक अहम बात कही है. वह बात भाषाओं के संबंध में है. मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र सरकार को राजभाषा कानून में संशोधन पर विचार करने को कहा है. यह सुझाव इसलिए आया है कि भारत सरकार अभी भी कानूनों को सिर्फ अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित करने की राय पर अड़ी है. आजादी के 73 साल बाद भी प्रांतों की भाषा को अभी भी उनका अधिकार नहीं मिला है. इन प्रांतों के बहुत से नागरिक हैं जो अब भी अंग्रेजी और हिंदी नहीं जानने के कारण कानूनों को समझने की स्थिति में नहीं हैं. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सेदारी के लिए नियम कायदों को समझना और उन पर राय व्यक्त करना भी जरूरी है.
पिछले सात दशकों में दुनिया भर में बहुत परिवर्तन हुए हैं. राजनीतिक परिवर्तनों के अलावा राष्ट्रवाद और अस्मितावाद का उदय भी हुआ है. किसी भी देश की बहुलता को लोकतांत्रिक संरचना में समेटने के लिए उसकी खास बातों को समाहित करना जरूरी है. यूरोपीय संघ भारत के लिए एक उदाहरण हो सकता है, जहां सदस्य देशों की संप्रभुता को ध्यान में रखते हुए नियम कायदों को स्थानीय भाषाओं में भी प्रकाशित करने का चलन है. यूरोपीय संघ में 27 सदस्य देशों की भाषाओं के इस्तेमाल की संरचना का अध्ययन कर भारत खुद अपनी संरचना बना सकता है.
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भारत के सबसे विवादित कानून
भारत में कुछ कानून मधुमक्खी का छत्ता बन चुके हैं. उन पर बात करना बवाल खड़ा कर देता है. ऐसे कौन से कानून हैं जिन पर खूब विवाद होता है.
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धारा 375, सेक्शन 2
धारा 375 रेप की परिभाषा देती है लेकिन इसमें एक अपवाद बताया गया है. पति-पत्नी के बीच यौन संबंधों को किसी भी सूरत में रेप नहीं माना जाएगा, अगर पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक है. यानी पति अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती कर सकता है. इस पर कोर्ट में केस चल रहा है.
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धारा 370
भारतीय संविधान की धारा 370 के मुताबिक जम्मू और कश्मीर राज्य को बाकी राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार दिए गए हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत कई दक्षिणपंथी संगठन और विचारक इस कानून का विरोध करते हैं और इसे खत्म करने की मांग करते हैं.
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सैन्य बल विशेषाधिकार कानून
अंग्रेजी में AFSPA के नाम से मशहूर यह कानून अशांत इलाकों में सेना को विशेष अधिकार देता है. सेना किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है, कहीं भी छापे मार सकती है. लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इसका बहुत बेजा इस्तेमाल होता है.
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धारा 499
संविधान की धारा 499 के अनुसार किसी व्यक्ति, व्यापार, उत्पाद, समूह, सरकार, धर्म या राष्ट्र की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने वाला असत्य कथन मानहानि कहलाता है. राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और सुब्रमण्यन स्वामी ने तो सुप्रीम कोर्ट में अपील की कि इस कानून को खत्म किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, नहीं.
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धारा 498-ए
इस कानून के मुताबिक पत्नी पर क्रूरता करता हुआ पति या पति का रिश्तेदार यानी ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो कि किसी महिला का पति या पति का संबंधी हो, यदि महिला के साथ क्रूरता करता है तो उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है. इस कानून का विरोध करने वालों का कहना है कि महिलाएं कई बार इसका इस्तेमाल बेजा तरीके से करती हैं.
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भूमि अधिग्रहण कानून
मोटे मोटे शब्दों में कहें तो यह कानून सरकार को किसानों से जमीन लेने का अधिकार देता है. 1894 में बनाए गए इस कानून में 2014 में कुछ सुधार हुए थे. लेकिन सरकार का जमीन लेने का अधिकार बना हुआ है. किसानों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोग इस कानून में और बदलाव चाहते हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने खुद अपने फैसलों को अंग्रेजी के अलावा दूसरी भारतीय भाषाओं में प्रकाशित करना शुरू किया है. यह एक स्वागतयोग्य कदम है. इससे न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के प्रति लोगों का सम्मान बढ़ेगा बल्कि अदालत के फैसले उनकी समझ में भी आएंगे. इसका एक फायदा स्वयं भाषाओं को भी होगा. एक ओर अनुवाद को प्रोत्साहन देने से भाषाओं का विकास होगा, जो आधुनिक तकनीकी दौर में अक्सर शब्दों के पीछे भागने को मजबूर हैं. दूसरी ओर यह जजों को भी ऐसी भाषा का इस्तेमाल करने को प्रेरित करेगा जो लोगों की समझ में आने लायक हो. इस समय अदालतों की भाषा समझने के लिए वकील होना बहुत जरूरी है.
लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आम लोगों की भागीदारी के लिए भाषाओं की राष्ट्रीय मान्यता बहुत जरूरी है. संविधान के आठवें अनुच्छेद ने भाषाओं का चयन तो कर लिया है लेकिन उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं दी है. अगर भारत सरकार यह काम करती है तो औपनिवेशिक दिमागी ढांचे को तोड़ने में मदद मिलेगी. भाषा का विकास इलाकों के विकास में मदद करेगा. कानूनों का अनुवाद होने से रोजगार के नए अवसर खुलेंगे, राज्यों को एक दूसरों को समझने और उनसे सीखने का मौका मिलेगा. इसके लिए भविष्य में सिर्फ अंग्रेजी या हिंदी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.
जो काम कब का सरकारों को कर लेना चाहिए था, उसकी ओर सुप्रीम कोर्ट ने उसका ध्यान दिलाया है. इसमें अब देर नहीं की जानी चाहिए और अदालतों के फैसलों का भी इंतजार नहीं करना चाहिए. देश के नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपनी चुनी सरकार होती है. उसे इन आकांक्षाओं को पूरा करने का समयबद्ध कार्यक्रम बनाना चाहिए न कि हाथ पर हाथ धरे बैठकर इंतजार करना चाहिए. केंद्र सरकार के पास एक मौका है. आने वाली पीढ़ियां इस पर अमल के लिए उसकी आभारी रहेंगी.
भारतीय कानून में पशुओं की हिफाजत के लिए कम से कम 15 कानून हैं. एक नजर इन नियमों पर.
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हर नागरिक का कर्तव्य
भारतीय संविधान के अनुच्छे 51(A) के मुताबिक हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है.
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मांस को लेकर निर्देश
कोई भी पशु (मुर्गी समेत) सिर्फ बूचड़खाने में ही काटा जाएगा. बीमार और गर्भ धारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा. प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी ऑन एनिमल्स एक्ट और फूड सेफ्टी रेगुलेशन में इस बात पर स्पष्ट नियम हैं.
भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के मुताबिक किसी पशु को मारना या अपंग करना, भले ही वह आवारा क्यों न हो, दंडनीय अपराध है.
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पशु को आवारा बनाना
प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी ऑन एनिमल्स एक्ट (पीसीए) 1960 के मुताबिक किसी पशु को आवारा छोड़ने पर तीन महीने की सजा हो सकती है.
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बंदर पालना
वाइल्डलाइफ एक्ट के तहत बंदरों को कानूनी सुरक्षा दी गई है. कानून कहता है कि बंदरों से नुमाइश करवाना या उन्हें कैद में रखना गैरकानूनी है.
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एंटी बर्थ कंट्रोल (2001) डॉग्स रूल
इस नियम के तहत कुत्तों को दो श्रेणियों में बांटा गया है. पालतू और आवारा. कोई भी व्यक्ति या स्थानीय प्रशासन पशु कल्याण संस्था के सहयोग से आवारा कुत्तों का बर्थ कंट्रोल ऑपरेशन कर सकती है. उन्हें मारना गैरकानूनी है.
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पशुओं की देखभाल
जानवर को पर्याप्त भोजन, पानी, शरण देने से इनकार करना और लंबे समय तक बांधे रखना दंडनीय अपराध है. इसके लिए जुर्माना या तीन महीने की सजा या फिर दोनों हो सकते हैं.
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पशुओं को लड़ाना
पशुओं को लड़ने के लिए भड़काना, ऐसी लड़ाई का आयोजन करना या उसमें हिस्सा लेना संज्ञेय अपराध है.
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एनिमल टेस्टिंग
ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक रूल्स 1945 के मुताबिक जानवरों पर कॉस्मेटिक्स का परीक्षण करना और जानवरों पर टेस्ट किये जा चुके कॉस्मेटिक्स का आयात करना प्रतिबंधित है.
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बलि पर बैन
स्लॉटरहाउस रूल्स 2001 के मुताबिक देश के किसी भी हिस्से में पशु बलि देना गैरकानूनी है.
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चिड़ियाघर का नियम
चिड़ियाघर और उसके परिसर में जानवरों को चिढ़ाना, खाना देना या तंग करना दंडनीय अपराध है. पीसीए के तहत ऐसा करने वाले को तीन साल की सजा, 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
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पशुओं का परिवहन
पशुओं को असुविधा में रखकर, दर्द पहुंचाकर या परेशान करते हुए किसी भी गाड़ी में एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मोटर व्हीकल एक्ट और पीसीए एक्ट के तहत दंडनीय अपराध है.
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कोई तमाशा नहीं
पीसीए एक्ट के सेक्शन 22(2) के मुताबिक भालू, बंदर, बाघ, तेंदुए, शेर और बैल को मनोरंजन के लिए ट्रेन करना और इस्तेमाल करना गैरकानूनी है.
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घोंसले की रक्षा
पंछी या सरीसृप के अंडों को नष्ट करना या उनसे छेड़छाड़ करना या फिर उनके घोंसले वाले पेड़ को काटना या काटने की कोशिश करना शिकार कहलाएगा. इसके दोषी को सात साल की सजा या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
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जंगली जानवरों को कैद करना
किसी भी जंगली जानवर को पकड़ना, फंसाना, जहर देना या लालच देना दंडनीय अपराध है. इसके दोषी को सात साल की सजा या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.