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कब तक छिपेगा चंदा

१४ जनवरी २०११

हमारे अपने ग्रह को बेहतर समझ पाने के लिए, उसके सबसे निकट पड़ोसी चंद्रमा का लंबे समय से अध्ययन किया जाता रहा है. विशेष दिलचस्पी का केंद्र रहा है चंद्रमा का भीतरी भाग, उसका केंद्र यानी अभ्यंतर.

तस्वीर: picture-alliance / Helga Lade Fotoagentur GmbH

ग्रह का वह अंदरूनी भूगर्भीय हिस्सा, जिससे उपग्रह की, और नतीजे में, हमारे ग्रह की उत्पत्ति के बारे में महत्वपूर्ण सुराग़ मिल सकते हैं. अमरीकी अंतरिक्ष एजैंसी नैसा ने सबसे आधुनिक भूकंपीय तकनीकों के इस्तेमाल से उस व्यौरे का अध्ययन किया है, जो चंद्रमा की यात्रा पर गए ऐपॉलो यानों के दौर में जुटाया गया था.

हालांकि चंद्रमा को भेजे गए परिष्कृत छवि-अंकन मिशनों ने उसके इतिहास और स्थल आकृति विज्ञान के अध्ययन में अहम योगदान किया है, पृथ्वी के इस एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह की दूर गहराइयां ऐपॉलो मिशनों के बाद से अटकलों का विषय बनी रही हैं. अब से पहले वैज्ञानिक चंद्रमा के अंदरूनी तत्वों के अप्रत्यक्ष अनुमानों के आधार पर यह तो मानते रहे हैं कि उसका एक अभ्यंतर है, लेकिन उसकी परिधि और संरचना को लेकर वैज्ञानिकों के बीच मतभेद रहे हैं. अब इस नए विश्लेषण के आधार पर वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि चंद्रमा का अभ्यंतर भी वैसा ही है, जैसा पृथ्वी का.

अभ्यंतर की एक से अधिक परतें हैं

अपनी तरह के इस बिल्कुल पहले अध्ययन की चर्चा करते हुए मुख्य शोधकार रेने वैबर कहती हैं, "वास्तव में इस नतीजे पर पहुंचने के लिए कि चांद का बाक़ायदा एक अभ्यंतर मौजूद है, कई अलग-अलग तरह का भूभौतिक व्यौरा इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन उस अभ्यंतर का भूकंपीय उपकरणों और साधनों के रास्ते पहला-पहला सीधा अध्ययन हमने ही किया है. यह भी है कि इस अभ्यंतर की एक से अधिक परतें हैं. एक आंतरिक ठोस परत है और एक बाहरी तरल अभ्यंतर, ठीक पृथ्वी की तरह."

तस्वीर: AP

रेने वैबर नैसा के हंट्सविल, ऐलाबामा स्थित मार्शल अंतरिक्ष उड़ान केंद्र में अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं. उनके अनुसंधान दल की खोज से पता चलता है कि चंद्रमा का लोहे से संपन्न ठोस अंदरूनी अभ्यंतर लगभग 150 मील के घेरे तक फैला है और उसके बाद कोई 205 मील तक एक बाहरी घेरा है, मुख्य रूप से तरल लोहे का. पृथ्वी से अलग तरह की बात यह है कि अभ्यंतर के गिर्द लगभग 300 मील तक की सीमा ऐसे पदार्थ की है, जो एक हद तक पिघला हुआ है. विश्लेषण से पता चलता है कि चंद्रमा के अभ्यंतर में गंधक जैसे हल्के तत्वों का कुछ प्रतिशत मौजूद है. यह बात हमारे अपने ग्रह के अभ्यंतर से मिलती जुलती है. नए अनुसंधान से, पृथ्वी के अभ्यंतर के गिर्द भी गंधक और ऑक्सीजन जैसे हल्के तत्वों के होने का पता चलता है.

ऐपॉलो मिशनों के समय चंद्रमा की कंपीय गतिविधि के बारे में जुटाए गए व्यौरों से नैसा के खोजदल को यह भी पता चला कि कंपन की ये लहरें कैसे और कहां से गुज़रती हैं. इन्हीं लहरों के अध्ययन से उपग्रह की गहराई के अलग-अलग स्तरों की संरचना का भेद खुला.

हल्के स्तर के होते हैं चंद्रकंप

चंद्रमा की कंपन गतिविधि की चर्चा करते हुए रेने वैबर बताती हैं, "जिस कई तरह की कंपन गतिविधि के बारे में हम जानते हैं, वह गहराई में आने वाले चंद्रकंपों की है. ये चंद्रकंप उपग्रह की सतह और केंद्र के बीच के आधे फ़ासले पर आते रहते हैं. तो इस तरह ये चंद्रकंप काफ़ी अंदर यानी गहराई पर होते हैं, पृथ्वी की तरह सतह के निकट नहीं. "

वैबर का कहना है कि ये चंद्रकंप काफ़ी हल्के स्तर के होते हैं, रिक्टर पैमाने पर एक अंक या उसके आस-पास. सतह के निकट इनसे कहीं अधिक बड़े चंद्रकंप भी आते हैं, जो रिक्टर पैमाने पर अधिक से अधिक पांच के स्तर तक के आंके जा सकते हैं. लेकिन ऐसे चंद्रकंप बहुत ही कम होते हैं, शायद वर्ष में एक बार.

तस्वीर: picture-alliance / dpa

चंद्रमा की कंपन गतिविधि पृथ्वी पर ऐसी गतिविधि यानी भूकंपों से किस रूप में अलग हैं, इसकी चर्चा करते हुए रेने वैबर कहती हैं, "वहां स्थिति पृथ्वी की तरह की नहीं है, जहां भूकंप प्लेट टैक्टॉनिक्स कहलाने वाली भूगर्भीय प्रक्रिया के परिणाम में धरातल की पट्टियों की सीमा वाले स्थल पर आते हैं. चंद्रमा पर तल-पट्टियों की ऐसी सक्रिय प्रक्रिया नहीं होती. तो जिस कंपीय ऊर्जा की हम यहां बात कर रहे हैं, वह बिल्कुल अलग तरह की ऊर्जा है."

वैबर का कहना है कि उनका दल चंद्रमा के अभ्यंतर के तत्वों के बारे में अपने अनुमानों को आगे और संवारने और चंद्रमा पर मिलने वाले सुराग़ों को अधिक से अधिक स्पष्ट समझने के लिए ऐपॉलो-मिशनों से प्राप्त व्यौरे पर काम करना जारी रखेगा, ताकि भावी मिशनों से मिलने वाले व्यौरे को बेहतर समझने में सहायता मिल सके.

नैसा की ओर से मिशन

नैसा के भावी मिशन, बेशक़, और व्यौरेवार जानकारी जुटाने में सहायता करेंगे. इस वर्ष नैसा की ओर से ग्रैविटी रिकवरी ऐंड इंटीरियर लैबोरेटरी, संक्षेप में, ग्रेल नामक मिशन रवाना किया जाएगा. इस मिशन में दो अंतरिक्षयान एक साथ चंद्रमा की कक्षा में दाख़िल होंगे और कई महीनों तक उपग्रह की परिक्रमा करते हुए उसके गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का इतना व्यौरेवार माप करेंगे जितना पहले कभी नहीं किया गया. यह मिशन हमारे चंद्रमा के बारे में चिरकालिक सवालों के जवाब मुहैया करेगा, वैज्ञानिकों को उसकी सतह से लेकर अभ्यंतर तक के बारे में अधिक बेह्तर समझ प्रदान करेगा. यानी सतह के नीचे की बनावटों की, और इस तरह से उसके तापीय इतिहास की जानकारी उपलब्ध करेगा.

नैसा और अन्य अंतरिक्ष एजैंसियां एक अंतरराष्ट्रीय चांद्रिक प्रणाली स्थापित करने की धारणाओं पर विचार कर रही हैं. चंद्रमा पर रोबॉट-संचालित भूभौतिक निगरानी केंद्रों की एक प्रणाली - इस प्रयास में कि आने वाले दशकों में अंतरराष्ट्रीय मिशनों के बीच तालमेल बिठाया जा सके.

रिपोर्ट: गुलशन मधुर, वॉशिंगटन

सम्पादन: ईशा भाटिया

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