अफ्रीकी देश बोतस्वाना में इंसान और जंगली जानवरों में जंग छिड़ी है. भूखे शेर पालूत पशुओं पर झपट पड़ते हैं, फिर किसान शेरों को सबक सिखाने निकल पड़ते हैं. क्या शेरों को बेवकूफ बनाकर इस टकराव को हमेशा के लिए रोका जा सकता है?
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सिडनी की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक एक दिलचस्प आइडिया लेकर हजारों किलोमीटर दूर बोतस्वाना पहुंचे. वहां उन्होंने पालतू मवेशियों के शरीर में दो ओर आखें बनाईं. जानवर के शरीर के सबसे पिछले हिस्से में यह आंखे पेंटिंग के जरिए बनाई गई. वैज्ञानिकों ने 62 में से 20 गायों के शरीर पर ऐसी आंखें बनाई.
फिर वैज्ञानिकों ने ढाई महीने इंतजार किया. 10 हफ्ते के ट्रायल के बाद पता चला कि जिन गायों के पीछे आंखें बनाई गई थीं, उन पर शेरों ने बिल्कुल भी हमला नहीं किया. इसी दौरान शेरों ने बिना पेंटिंग वाली तीन गायों को अपना निवाला बनाया. अब वैज्ञानिक जीपीएस ट्रैकिंग के जरिए और विस्तार से इसे समझना चाहते हैं.
ऐसे होते हैं जानवरों के खेल
जानवरों को भी खेल उतने ही पसंद हैं, जितने इंसानों को. चलिये देखते हैं कि जानवर अपना मनोरंजन कैसे करते हैं.
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खूब दौड़ भाग
कुत्तों को खेल खासे पसंद होते हैं लेकिन वो अकेले नहीं खेलते. मालिक या दूसरे कुत्ते का साथ मिले तो उन्हें खेलने में मजा आता है. आम तौर पर कुत्ते प्यार से दांत लगाकर, पंजे उठाकर या फिर गोल गोल दौड़ते हुए खेलना पसंद करते हैं. पिल्लों को हर चीज कुतरने में मजा आता है.
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प्यार से ताकत का प्रदर्शन
ताकतवर शेरों के खेल में ताकत का प्रदर्शन होना लाजिमी है. जंगल में उन्हें एक दूसरे को धक्का देकर या पंजे चलाकर खेलते हुए देखा जाता है. इंसान से दोस्ती होने पर शेर गले लगाना और खुद को सहलाया जाना पसंद करते हैं.
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छुपन छुपाई
झाड़ या घास में खुद को बेहरीन तरीके से छुपाने वाला बाघ बड़ा होकर बहुत कम खेलता है. वयस्क होने पर बाघ गंभीर हो जाते हैं. लेकिन बचपन में वो छुपने, एक दूसरे को गिराने या फिर शिकार करने के खेल खेलते हैं. शावक पेड़ पर भी चढ़ जाते हैं, लेकिन नीचे आने में उन्हें खासी परेशानी होती है.
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बिल्ली मौसी की अलग दुनिया
चपल और फुर्तीली बिल्ली को हर चीज पर पंजा मारने में बड़ा मजा आता है. अगर वह खेल के मूड में हो तो पंजे का नाखून नहीं लगता. बिल्ली छुपकर सारी गतिविधियों पर नजर रखने की भी शौकीन होती है.
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नकल का खेल
बंदर, लंगूर या चिंपाजी नकल करने में माहिर होते हैं. इंसानों के संपर्क में आने पर वह हूबहू नकल करने की कोशिश करते हैं. आपस में खेलते हुए उन्हें एक दूसरे की पूछ खींचना या एक डाल से दूसरी डाल पर छलांग मारना पसंद है.
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बोरियत भगाओ
चिड़ियाघरों में जानवरों को बोरियत से बचाना एक बड़ी चुनौती होती है. जर्मनी के चिड़ियाघरों में उदबिलावों को मछली तरबूज में फंसाकर दी जाती है. इससे उनका मनोरंजन तो होता ही है और खाना भी मिल जाता है.
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बुद्धिमान जोड़ीदार
बेहद तेज दिमाग वाली डॉल्फिन मछली को इंसानों के साथ खेलने में बड़ा मजा आता है. डॉल्फिन बहुत जल्दी सब कुछ सीख लेती है और उसके पूरे परफेक्शन के साथ खेल का मजा लेती है.
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पानी में छपाक
विशाल व्हेल मछलियों को समुद्र में अपने बदन से पानी उछालने में बड़ा मजा आता है. धरती पर मौजूद ये सबसे बड़े जीव पानी में उथल पुथल करना और लहरें पैदा करने का खेल भी खेलते हैं.
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आरामदायक खेल
आलसी मगरमच्छ और घड़ियाल भी खाली समय मिलने पर आराम और मनोरंजन करते हैं. उन्हें पानी में बुलबुले बनाना, एक दूसरे को तकिये की तरह इस्तेमाल करना काफी अच्छा लगता है.
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रिसर्च टीम की अगुवाई करने वाले डॉक्टर नील जॉर्डन कहते हैं, "शेर घात लगाकर शिकार करने वाले जीव हैं, वे अपने शिकार पर नजर बनाये रखते हैं और छुपते हुए धीरे धीरे उसके पास पहुंचते हैं और फिर छलांग मारते हैं. लेकिन अगर जानवर पहले ही शेर को देख ले और शेर को पता चल जाए कि वह नजर में आ चुका है तो वह शिकार की कोशिश भी नहीं करता."
डॉक्टर जॉर्डन के मुताबिक, "प्रकृति में नजर में आना शिकार की सारी कोशिशें बेकार कर सकता है. तितली के पंख ही देखें, ऊपर से उन्हें देखने पर पंछी भ्रमित हो जाते हैं."
इस प्रयोग के लिए रिसर्चरों को भारतीय लकड़हारों से प्रेरणा मिली. भारत और बांग्लादेश के बीच बसे सुंदरबन इलाके में लकड़हारे एक तरकीब से बाघों को ठगने में सफल रहे. लकड़हारे जंगल में दाखिल होते ही एक मुखौटा डाल लेते थे. आदमी की शक्ल वाले मुखौटे को वे सिर के पीछे लगाते. इससे बाघ उलझन में पड़ गए. छुपकर हमला करने वाले शिकारी को लगा कि उसे देख लिया गया है और उसने हमला टाल दिया.
लेकिन असली मुश्किल अब आएगी. सुंदरबन के लकड़हारों का अनुभव बताता है कि कुछ समय बाद बाघ ने उनकी चालाकी समझ ली और फिर हमले शुरू कर दिये. अब सुंदरबन के लकड़हारे मुखौटों पर भरोसा नहीं करते हैं, क्योंकि बाघ इस ट्रिक को समझ चुके हैं. अब देखना है कि भूख मिटाने के लिए हाथियों पर झपटने वाले शेर ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों की पहेली को कितनी देर में सुलझाते हैं.
अगर ऐसा सलूक इंसानों के साथ हो तो?
जरा सोचिये कि जैसा व्यवहार इंसान जानवरों के साथ कर रहा है, अगर वैसा ही उसके साथ भी किया जाए तो. इसी अंदाज में दुनिया भर में पशु अधिकार कार्यकर्ता विरोध करते रहे हैं.
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इंसानी सभ्यता में अक्सर मनावाधिकारों, इंसानियत और एक व्यक्ति की गरिमा की बात होती है. लेकिन क्या पशुओं के भी अधिकार होते हैं? या फिर वे सिर्फ मांस हैं?
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पुराने जमाने में शरीर को गर्म रखने के लिए इंसान पशुओं की खाल का प्रयोग करता था. लेकिन अब फैशन के नाम पर जानवरों को पाला और मारा जाता है ताकि उनके उनके फर को इस्तेमाल किया जा सके.
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जर्मनी की राजधानी बर्लिन के ब्रांडेनबुर्ग गेट पर पशु अधिकार कार्यकर्ता. 6,20,000 लोगों को हस्ताक्षरों के जरिये उन्होंने जर्मन के पर्यावरण मंत्रालय से सर्कस में जंगली जानवरों के इस्तेमाल को रोकने की मांग की.
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लिपिस्टिक, लिपबाम या क्रीम को टेस्ट करने के लिए चूहों का इस्तेमाल होता है. काजल की टेस्टिंग में खरगोशों को अंधा होना पड़ता है. जर्मन दर्शनशास्त्री और भौतिकविज्ञानी अल्बर्ट श्वाइत्जर के मुताबिक, "जब तक इंसान सभी जीवित प्राणियों के लिए स्नेह का घेरा नहीं बनाएगा, तब तक शांति हासिल नहीं होगी."
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स्पेन में होने वाली बुलफाइटिंग का विरोध करते कार्यकर्ता. 20वीं सदी की महान शख्सियतों में गिने जाने वाले भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, "किसी राष्ट्र का नैतिक विकास इस बात से चेक किया जा सकता है कि वह पशुओं से कैसा बर्ताव करता है."
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चमड़े के लिए पशुओं को बड़े पैमाने पर कत्ल करने वाले उद्योगों के खिलाफ बार्सिलोना में इस अंदाज में प्रदर्शन हुआ.
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16वीं सदी में इटली में पैदा हुई महान शख्सियत लियोनार्दो दा विंची के मुताबिक, "एक दिन आएगा जब जानवर की हत्या को इंसान की हत्या की तरह देखा जाएगा."
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मीट उद्योग के लिए तैयार होने वाले जीवों को बहुत ज्यादा एंटीबायोटिक खिलाये जाते हैं. शारीरिक विकास तेज करने के लिए उन्हें कई तरह के रसायन दिये जाते हैं. जरा सोचिये पशुओं पर क्या गुजरती होगी.
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खुराक के अलावा इन जीवों को बेहद तंग माहौल में रखा और मारा जाता है.
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फैशन उद्योग ने लोमड़ियों की बड़ी पैमाने पर बलि ली है. इसी का विरोध इस अंदाज में करते पशु अधिकार कार्यकर्ता.
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बहुत सारे लोगों को अच्छे बैग, पर्स या बेल्ट बार बार खरीदने का शौक होता है, उनकी इस इच्छा की कीमत मगरमच्छों, सांपों, गायों या भैंसों को चुकानी पड़ती है.
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धीमी गति से चलने वाले कछुए लालची इंसान के तेज दिमाग का शिकार हो रहे हैं. बाली में समुद्री कछुओं के संरक्षण की अपली करते कार्यकर्ता.
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मछली और सील का शिकार करने वाले ध्रुवों के बर्फीले इलाके में जाते हैं, और वहां ध्रुवीय भालू भी उनका निशाना बनते हैं. गर्म होती जलवायु और शिकार ने ध्रुवीय भालुओं की हालत खस्ता कर रखी है.
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जापान में व्हेलों के अंधाधुंध शिकार के खिलाफ होता प्रदर्शन.