कभी आपने सोचा है कि कौन सा सागर दुनिया के सबसे ज्यादा लोगों को निगल रहा है? जवाब है भूमध्य सागर. इस साल भी दो हजार लोग इसकी लहरों में दफन हो चुके हैं. लेकिन सवाल यह है कि सिलसिला रुकेगा कब?
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शरणार्थियों पर नजर रखने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएचसीआर का कहना है कि इस साल भूमध्य सागर में डूब कर मरने वालों का आंकड़ा अब तक 2000 को पार कर चुका है.
वैसे इस पर हैरानी भी नहीं होनी चाहिए. आए दिन खबरें आती हैं कि भूमध्य सागर में प्रवासियों से भरी नौका पलट गई. और यह सिलसिला कई साल से चल रहा है. इसीलिए भूमध्यसागर को 'प्रवासियों का कब्रिस्तान' कहा जाता है, जिसमें पिछले पांच साल के दौरान 18 हजार से ज्यादा लोग दफन हो चुके हैं.
यूएनएचसीआर के आंकड़े बताते हैं कि इस साल अब तक एक लाख पांच हजार से ज्यादा लोग शरण की आस में यूरोप पहुंचे हैं. इनमें से 99.5 हजार लोगों ने बेहतर जिंदगी की उम्मीद में अपनी जान को जोखिम में डालकर भूमध्य सागर के रास्ते को चुना.
कौन सा समंदर कितने शरणार्थियों को खा गया
शरण की तलाश में सब कुछ दांव पर लगा देने वाले बहुत से लोग अक्सर मंजिल पर पहुंचने से पहले ही इस दुनिया को छोड़ देते हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान कितने प्रवासी मारे गए, कहां मारे गए और उनका संबंध कहां से था, जानिए.
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'प्रवासियों का कब्रिस्तान'
इस साल दुनिया के विभिन्न भागों में लापता या मारे जाने वाले शरणार्थियों की संख्या 1,319 है. सबसे ज्यादा मौतें भूमध्य सागर में हुईं, जहां अप्रैल के मध्य तक 798 लोग या तो मारे गये हैं या लापता हो गये हैं. शरण की तलाश में अफ्रीका या अन्य क्षेत्रों से यूरोप पहुंचने की कोशिशों में हजारों लोग अब तक भूमध्य सागर में समा चुके हैं.
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सैकड़ों लापता या मारे गये
इस साल जनवरी से लेकर मध्य अप्रैल तक दुनिया भर में 496 ऐसे लोग मारे गये हैं या लापता हुए हैं जिनकी पहचान स्पष्ट नहीं है. इनमें सब सहारा अफ्रीका के 149, हॉर्न ऑफ अफ्रीकी क्षेत्र के देशों के 241, लैटिन अमेरिकी क्षेत्र के 172, दक्षिण पूर्व एशिया के 44 और मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के पच्चीस लोग शामिल हैं.
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2016 का हाल
सन 2016 में वैश्विक स्तर पर लापता या मारे गये शरणार्थियों की कुल संख्या 7,872 रही. पिछले साल भी सबसे ज्यादा लोग भूमध्य सागर में ही मारे गये या लापता हुए. इनकी कुल संख्या 5,098 रही. 2016 के दौरान उत्तरी अफ्रीका के समुद्र में 1,380 लोग, अमेरिका और मैक्सिको की सीमा पर 402 लोग, दक्षिण पूर्व एशिया में 181 जबकि यूरोप के 61 प्रवासी मारे गये या लापता हो गये.
अफ्रीका पर सबसे ज्यादा मार
पिछले साल अफ्रीका के 2,815 प्रवासी मारे गये या लापता हो गये. मध्य पूर्व और दक्षिण एशियाई क्षेत्र के 544, दक्षिण पूर्व एशिया के 181 जबकि लैटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र के 675 शरणार्थी 2016 में मौत के मुंह में चले गये. पिछले साल बिना नागरिकता वाले 474 प्रवासी भी लापता हुए या मारे गये.
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दक्षिण पूर्व एशिया भी प्रभावित
2015 में शरण के लिए अपनी मंजिल पर पहुंचने से पहले ही दुनिया को अलविदा कह देने वालों की संख्या 6,117 रही. उस साल भी सबसे ज्यादा 3,784 मौतें भूमध्य सागर में ही में हुईं. इसके बाद सबसे अधिक मौतें दक्षिण पूर्व एशिया में हुईं, जहां 789 शरणार्थियों के बेहतर जीवन के सपने चकनाचूर हो गये.
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रोहिंग्या भी शरण दौड़ में खो गए
सन 2015 के दौरान भूमध्य सागर के तट पर स्थित देशों के 3784 प्रवासी, दक्षिण पूर्व एशिया के 789 प्रवासी जबकि उत्तरी अफ्रीका के 672 प्रवासी मारे गये या लापता हो गये थे. यूएन की शरणार्थी संस्था यूएनएचसीआर के मुताबिक शरण के लिए समंदर में उतरने वाले हजारों रोहिंग्या भी काल के गाल में जा चुके हैं.
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पहचान स्पष्ट नहीं है
दुनिया के विभिन्न भागों में लापता या मारे गये प्रवासियों की संख्या सन 2014 में 5,267 थी. मौतों के मामले में इस साल भी भूमध्य सागर और दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र सबसे ऊपर हैं जहां 3,279 और 824 मौतें हो चुकी हैं. इस साल मारे गये करीब एक हजार लोगों की पहचान नहीं हो सकी थी.
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17 साल में 46,000 मौतें
'मिसिंग माइग्रेंट्स प्रोजेक्ट' पलायन करने वाले लोगों को लेकर शुरू की गयी एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना है. इस संस्था के अनुसार सन 2000 से लेकर अब तक लगभग 46,000 लोग शरण की आस में जान गंवा चुके हैं. यह संस्था सरकारों से इस समस्या का हल तलाशने को कहती है.
तस्वीर: Reuters/Marina Militare
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भूमध्य सागर के एक छोर पर यूरोप है तो दूसरे छोर पर उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व का इलाका है. एक छोर सुख, समृद्धि, शांति और बेहतर जिंदगी का प्रतीक है तो दूसरे छोर पर लोग गरीबी, कुपोषण, लड़ाई, संघर्ष और खतरनाक हालात झेलने को मजबूर हैं.
हर महीने हजारों लोग तुर्की, ट्यूनीशिया, लीबिया और मोरक्को जैसे देशों से नौकाओं पर सवार होते हैं और यूरोप की तरफ निकल पड़ते हैं. सबसे ज्यादा विकट हालात 2015 में थे जब 10 लाख से ज्यादा लोगों ने यूरोप की राह पकड़ी जबकि 2017 में यह आंकड़ा 362,753 और 2017 में 172,301 था. इस दौरान समंदर में डूब कर मरने और लापता होने वाले लोगों का आंकड़ा हमेशा हर साल तीन हजार से पांच हजार के बीच ही रहा है.
मां को भूल गया बच्चा
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गरीबी और मुफलिसी से निकलने की छटपटाहट इस कदर होती है कि लोग इंसानों की तस्करी करने वाले गिरोहों के फंदे में फंसने से पहले एक बार भी नहीं सोचते. ऐसे गिरोह अकसर नौकाओं पर क्षमता से ज्यादा लोग लादकर यूरोप की तरफ रवाना कर देते हैं. फिर इन लोगों की जिंदगी समंदर की लहरों के हवाले होती है. या तो वे हिचकोले खाती नौकाओं को पार लगा दें या फिर बीच भंवर में ही डुबो दें.
आंकड़े बताते हैं कि भूमध्य सागर के जरिए यूरोप में दाखिल होने वाले लोगों की संख्या में कमी आ रही है. तो क्या इसका यह मतलब है कि उत्तरी अफ्रीका या फिर मध्य पूर्व के देशों में हालात अच्छे हो रहे हैं? शायद नहीं. वहां लगभग वैसी ही परिस्थितियां बनी हुई हैं जिनसे बचकर लोग यूरोप की तरफ आना चाहते हैं. हां, इस दौरान यूरोप में आना और शरण पाना जरूर मुश्किल होता जा रहा है.
एक के बाद एक कई यूरोपीय देशों में धुर दक्षिणपंथी सत्ता में आए हैं, जिन्हें शरणार्थी बिल्कुल मंजूर नहीं हैं. बाहें फैला कर शरणार्थियों का स्वागत करने वाले जर्मनी जैसे देश में भी सरकार को लगातार सवालों का सामना करना पड़ रहा है और धुर दक्षिणपंथियों के लिए बढ़ते समर्थन के बीच सत्ताधारी पार्टियों का जनाधार घट रहा है.
9 तस्वीरें, जिन्होंने दुनिया बदल दी
तुर्की के तट पर मिले एक बच्चे के शव ने दुनिया भर को झकझोर दिया था. तस्वीर ने एक पल में शरणार्थी संकट की बहस को मानवीय बना दिया. एक नजर उन तस्वीरों पर जिन्होंने दुनिया पर गहरा असर किया.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Rslan
नेपाम की बच्ची
दक्षिणी वियतनाम के गांव पर हुए नेपाम बम हमले के बाद जान बचाने के लिए भागते बच्चे. धमाके के बाद नौ साल की बच्ची जलते कपड़ों को फाड़कर दौड़ने लगी. तस्वीर में दिखाई पड़ने वाली बच्ची अब कनाडा में सकुशल रहती है. इस तस्वीर ने वियतनाम युद्ध के प्रति पश्चिमी जनमानस की सोच बदल दी. फोटोग्राफर निक उट को 1973 में इसके लिए पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Images
डस्ट लेडी
धूल से सनी महिला. ये तस्वीर न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए 11 सिंतबर 2001 के आतंकवादी हमले के दौरान ली गई. तस्वीर में दिखने वाली महिला मैर्सी बोर्डर्स आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक बन गई. उन्हें डस्ट लेडी कहा गया. हमले की वजह से वह पेट के कैंसर का शिकार हुई. 26 अगस्त 2015 को उनकी मौत हो गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AFP
टैंक मैन
5 जून 1989, सामने खड़े होकर टैंकों को रोकने की कोशिश करता एक शख्स. यह तस्वीर चीन के तियानानमेन चौक में हुए अत्याचार की प्रतीक है. 4 जून को इसी जगह पर चीन की सेना ने प्रदर्शनकारियों को बर्बर तरीके से कुचला. जेफ विडनर ने यह तस्वीर ली. इस शख्स को थोड़ी देर बार गिरफ्तार कर लिया गया. आज तक उनके बारे में कुछ पता नहीं है.
तस्वीर: Reuters/A. Tsang
बेन ओनेजॉर्ग की मौत
2 जून 1967 को पुलिस ने ईरान के शाह की राजकीय यात्रा का विरोध कर रहे लोगों के खिलाफ बल प्रयोग किया. एक पुलिसकर्मी ने जर्मन छात्र बेनो ओनेजॉर्ग को गोली मारी. उनकी मौत के बाद जर्मनी में वामपंथी आंदोलन कट्टर हो उठा. हादसे के वक्त ओनेजॉर्ग की पत्नी गर्भवती थी.
तस्वीर: AP
कैनेडी की हत्या
अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की डलास में हत्या. कैनेडी की हत्या उनकी सरकारी कार में हुई. अब्राहम जैप्रूडर कैनेडी के काफिले का वीडियो बना रहे थे, तभी राष्ट्रपति के सिर पर गोली लगी. जैप्रूडर इस तस्वीर को प्रकाशित नहीं करना चाहते थे, लेकिन यह तस्वीर सामने आ गई. जांच और जिज्ञासा के चलते इसे हजारों बार बारीकी से देखा जा चुका है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
म्यूनिख नरसंहार
1972 के ओलंपिक खेलों के दौरान म्यूनिख में इस्राएली ओलंपिक टीम के 11 सदस्यों को बंधक बनाया गया. बाद में उनकी हत्या कर दी गई. आतंकवादी फलीस्तीनी संगठन ब्लैक सितंबर के थे. यह तस्वीर बालकनी से नीचे झांकते एक अपहर्ता की है.
तस्वीर: dapd
अफगान लड़की
स्टीव मैकरी का यह पोट्रे 1985 में नेशनल जियोग्राफिक में प्रकाशित हुआ. तस्वीर से पता नहीं चलता है कि पाकिस्तान में 12 साल की यह अफगान लड़की किन हालात में जी रही है. लेकिन यह तस्वीर अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले और शरणार्थी संकट का प्रतीक बन गई. शरबत गुला नाम की इस लड़की को 2002 में फिर खोजा गया. उसने अपनी यह मशहूर तस्वीर पहले नहीं देखी थी.
तस्वीर: STAN HONDA/AFP/Getty Images
एक बार फिर सीरिया
सीरिया में सरकार विरोधियों ने पांच साल के एक बच्चे का फुटेज जारी किया है. संतरी रंग की कुर्सी पर बैठा यह बच्चा खून और धूल से लथपथ है. बच्चे की पहचान ओमरान दाकनीश के रूप में हुई है.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Rslan
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भूमध्य सागर के जरिए यूरोप में दाखिल होने वाले सबसे ज्यादा लोगों की मंजिल पहले इटली हुआ करती थी. लेकिन इस साल सबसे ज्यादा 49,000 लोग स्पेन के तटों पर पहुंचे, जबकि इटली 22,160 के आंकड़े के साथ तीसरे नंबर पर रहा. 27,700 लोगों के साथ ग्रीस इस मामले में दूसरे पायदान पर रहा.
इटली को लेकर हुए उलटफेर की बड़ी वजह वहां सत्ता में आए धुर दक्षिणपंथियों के गठबंधन को माना जा सकता है. नई सरकार ने जून में सत्ता संभाली, जब साल के पांच महीने बीत चुके थे. अगर इटली में दक्षिणपंथियों को इससे पहले सत्ता मिल गई होती तो यह आंकड़ा शायद 22,160 से भी बहुत कम होता. वहीं जून के महीने में ही स्पेन में सत्ता संभालने वाले प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज एक वामपंथी और समाजवादी विचारधारा से जुड़े नेता हैं और शरणार्थियों के प्रति नरम रवैया रखते हैं.
शरणार्थी इटली में आएं या स्पेन में, या फिर किसी और देश में, उनके लिए जिंदगी हमेशा एक जंग होती है. आज यूरोप से लेकर अफ्रीका और एशिया तक शरणार्थियों के मुद्दे पर खूब राजनीति हो रही है. लेकिन क्या इसके मूल कारणों पर तरफ ध्यान दिया जा रहा है.
ऐसा होता है अवैध आप्रवासियों का जीवन
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यूरोपीय संघ के देशों को लगता है कि अगर अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों की आर्थिक मदद की जाए तो वहां से लोग यूरोप की तरफ नहीं आएंगे. सैद्धांतिक रूप से बात बिल्कुल सही है. लेकिन यह कौन सुनिश्चित करेगा उस मदद को सही जगह इस्तेमाल किया भी जा रहा है. इन देशों के शासक और व्यवस्थाएं तो वैसे ही विदेशों से मिलने वाले मदद को डकारने के लिए बदनाम रहे हैं.
एक सवाल हथियारों के अर्थशास्त्र से भी जुड़ा है. मध्य पूर्व के कई देश बरसों से लड़ाई की आग में चल रहे हैं, जिसकी कीमत लाखों करोड़ों लोगों को चुकानी पड़ रही है. लेकिन लड़ाई की यही तपिश हथियार कंपनियों की जेबें भर रही है.
आलीशान होटलों और महलों में होने वाले शांति सम्मेलनों में यह सवाल भी पूछना होगा कि लड़ाई में इस्तेमाल होने वाले हथियारों की सप्लाई को कैसे रोकें. शांति कायम करने का काम इसी के बाद शुरू हो सकता है. फिर रोजगार और आर्थिक अवसरों की बात होगी. यह समाधान कहने को तीन वाक्यों में सिमट गया, लेकिन इसके लिए लंबा सफर तय करना होगा.
अगर दुनिया भर के राजनेता इस सफर को तय नहीं करेंगे तो फिर हजारों लोग हिचकोले खाती हुई नौकाओं पर भूमध्य सागर में निकलते रहेंगे. और हम यूं ही साल दर साल आंकड़ों में तब्दील होते लोगों को देखते रहेंगे.
मदद मांगते पुतिन, तो रिफ्यूजी बने ट्रंप
अब्दुल्ला अल-आमरी की पेंटिंग में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप बेघर हैं, तो रूस के राष्ट्रपति पुतिन मदद मांग रहे हैं. दुनिया के नेताओं को कैनवास पर उतारने वाले सीरियाई कलाकार आमरी अपनी पेटिंग्स से बहुत कुछ कह जाते हैं.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
डॉनल्ड ट्रंप
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आक्रामक नीतियों के चलते उन्हें कैनवास पर जगह मिली है. इसमें ट्रंप अपने बोरिया-बिस्तर समेटे, परिवार समेत बेघर नजर आ रहे हैं.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
व्लादिमीर पुतिन
कैनवास पर मदद का कटोरा लेकर लिए नजर आ रहे हैं रूस के राष्ट्रपति. पुतिन अब साल 2024 तक रूस के राष्ट्रपति पद पर काबिज रहेंगे.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
बशर अल असद
इस पेटिंग में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद को एक नाव के साथ जूझते हुए दिखाया गया है. शरणार्थियों ने बड़ी संख्या में नावों के सहारे समंदर पार किए हैं. लेकिन कई नावें डूबीं और हजारों जानें गईं.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
अंगेला मैर्केल
लाखों शरणार्थियों को जर्मनी में जगह देने का निर्णय लेने वाली चांसलर अंगेला मैर्केल को इस मुद्दे पर भारी राजनीतिक आलोचना झेलनी पड़ी है. तस्वीर में मैर्केल डरी हुई और कंफ्यूज नजर आ रहीं हैं.
तस्वीर: DW/A. Drechsel
किम जोंग उन
उत्तर कोरिया आम तौर पर दुनिया के नेताओं से दूर रहता है. लेकिन मिसाइल परीक्षण और आक्रामक बयानों के चलते सुर्खियों में बने रहने वाले उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन को भी कैनवास पर उतारा गया है, वो भी मिसाइल के साथ.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
खाने का इंतजार
इस पेटिंग में दुनिया के ये नेता लाइन बनाकर खाना मिलने का इंतजार कर रहे हैं. आर्टिस्ट आमरी कहते हैं कि जब ये लोग इस स्थिति में होंगे, तभी आम लोगों की तकलीफों को समझेंगे.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
आम आदमी
आमरी कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि ये लोग स्वयं को आइने में देंखे और खुद को एक कमजोर व्यक्ति, एक शरणार्थी की तरह देंखे. इस पेटिंग में एक आम व्यक्ति को दिखाया गया है."
तस्वीर: Abdalla Al Omari
भागते शरणार्थी
ओमारी ने अपनी जिंदगी सीरिया के कैंपों में बिताई है. उन्होंने बताया कि तस्वीरों में भागते हुए जब उन्होंने लोगों को देखा, तो महसूस किया कि यह दुनिया को परेशान करता एक मानवीय संकट है.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
न भूले नेता
इन नेताओं को आम व्यक्तियों की इस परेशानी से जोड़कर आमरी चाहते हैं कि ये नेता उन आम लोगों को याद रखें जिनके फैसले इनकी जिंदगियों को प्रभावित करते हैं. यहां सब नेता रिफ्यूजी बन कर भाग रहे हैं.