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समाज

कब तक समंदर में समाते रहेंगे लोग

अशोक कुमार
७ नवम्बर २०१८

कभी आपने सोचा है कि कौन सा सागर दुनिया के सबसे ज्यादा लोगों को निगल रहा है? जवाब है भूमध्य सागर. इस साल भी दो हजार लोग इसकी लहरों में दफन हो चुके हैं. लेकिन सवाल यह है कि सिलसिला रुकेगा कब?

Queen Sofia Schiff Fregatte Spanien Seenot
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Spanish army

शरणार्थियों पर नजर रखने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएचसीआर का कहना है कि इस साल भूमध्य सागर में डूब कर मरने वालों का आंकड़ा अब तक 2000 को पार कर चुका है.

वैसे इस पर हैरानी भी नहीं होनी चाहिए. आए दिन खबरें आती हैं कि भूमध्य सागर में प्रवासियों से भरी नौका पलट गई. और यह सिलसिला कई साल से चल रहा है. इसीलिए भूमध्यसागर को 'प्रवासियों का कब्रिस्तान' कहा जाता है, जिसमें पिछले पांच साल के दौरान 18 हजार से ज्यादा लोग दफन हो चुके हैं.

यूएनएचसीआर के आंकड़े बताते हैं कि इस साल अब तक एक लाख पांच हजार से ज्यादा लोग शरण की आस में यूरोप पहुंचे हैं. इनमें से 99.5 हजार लोगों ने बेहतर जिंदगी की उम्मीद में अपनी जान को जोखिम में डालकर भूमध्य सागर के रास्ते को चुना.

भूमध्य सागर के एक छोर पर यूरोप है तो दूसरे छोर पर उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व का इलाका है. एक छोर सुख, समृद्धि, शांति और बेहतर जिंदगी का प्रतीक है तो दूसरे छोर पर लोग गरीबी, कुपोषण, लड़ाई, संघर्ष और खतरनाक हालात झेलने को मजबूर हैं.

हर महीने हजारों लोग तुर्की, ट्यूनीशिया, लीबिया और मोरक्को जैसे देशों से नौकाओं पर सवार होते हैं और यूरोप की तरफ निकल पड़ते हैं. सबसे ज्यादा विकट हालात 2015 में थे जब 10 लाख से ज्यादा लोगों ने यूरोप की राह पकड़ी जबकि 2017 में यह आंकड़ा 362,753 और 2017 में 172,301 था. इस दौरान समंदर में डूब कर मरने और लापता होने वाले लोगों का आंकड़ा हमेशा हर साल तीन हजार से पांच हजार के बीच ही रहा है.

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गरीबी और मुफलिसी से निकलने की छटपटाहट इस कदर होती है कि लोग इंसानों की तस्करी करने वाले गिरोहों के फंदे में फंसने से पहले एक बार भी नहीं सोचते. ऐसे गिरोह अकसर नौकाओं पर क्षमता से ज्यादा लोग लादकर यूरोप की तरफ रवाना कर देते हैं. फिर इन लोगों की जिंदगी समंदर की लहरों के हवाले होती है. या तो वे हिचकोले खाती नौकाओं को पार लगा दें या फिर बीच भंवर में ही डुबो दें.

आंकड़े बताते हैं कि भूमध्य सागर के जरिए यूरोप में दाखिल होने वाले लोगों की संख्या में कमी आ रही है. तो क्या इसका यह मतलब है कि उत्तरी अफ्रीका या फिर मध्य पूर्व के देशों में हालात अच्छे हो रहे हैं? शायद नहीं. वहां लगभग वैसी ही परिस्थितियां बनी हुई हैं जिनसे बचकर लोग यूरोप की तरफ आना चाहते हैं. हां, इस दौरान यूरोप में आना और शरण पाना जरूर मुश्किल होता जा रहा है.

एक के बाद एक कई यूरोपीय देशों में धुर दक्षिणपंथी सत्ता में आए हैं, जिन्हें शरणार्थी बिल्कुल मंजूर नहीं हैं. बाहें फैला कर शरणार्थियों का स्वागत करने वाले जर्मनी जैसे देश में भी सरकार को लगातार सवालों का सामना करना पड़ रहा है और धुर दक्षिणपंथियों के लिए बढ़ते समर्थन के बीच सत्ताधारी पार्टियों का जनाधार घट रहा है.

भूमध्य सागर के जरिए यूरोप में दाखिल होने वाले सबसे ज्यादा लोगों की मंजिल पहले इटली हुआ करती थी. लेकिन इस साल सबसे ज्यादा 49,000 लोग स्पेन के तटों पर पहुंचे, जबकि इटली 22,160 के आंकड़े के साथ तीसरे नंबर पर रहा. 27,700  लोगों के साथ ग्रीस इस मामले में दूसरे पायदान पर रहा.

इटली को लेकर हुए उलटफेर की बड़ी वजह वहां सत्ता में आए धुर दक्षिणपंथियों के गठबंधन को माना जा सकता है. नई सरकार ने जून में सत्ता संभाली, जब साल के पांच महीने बीत चुके थे. अगर इटली में दक्षिणपंथियों को इससे पहले सत्ता मिल गई होती तो यह आंकड़ा शायद 22,160 से भी बहुत कम होता. वहीं जून के महीने में ही स्पेन में सत्ता संभालने वाले प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज एक वामपंथी और समाजवादी विचारधारा से जुड़े नेता हैं और शरणार्थियों के प्रति नरम रवैया रखते हैं.

शरणार्थी इटली में आएं या स्पेन में, या फिर किसी और देश में, उनके लिए जिंदगी हमेशा एक जंग होती है. आज यूरोप से लेकर अफ्रीका और एशिया तक शरणार्थियों के मुद्दे पर खूब राजनीति हो रही है. लेकिन क्या इसके मूल कारणों पर तरफ ध्यान दिया जा रहा है.

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यूरोपीय संघ के देशों को लगता है कि अगर अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों की आर्थिक मदद की जाए तो वहां से लोग यूरोप की तरफ नहीं आएंगे. सैद्धांतिक रूप से बात बिल्कुल सही है. लेकिन यह कौन सुनिश्चित करेगा उस मदद को सही जगह इस्तेमाल किया भी जा रहा है. इन देशों के शासक और व्यवस्थाएं तो वैसे ही विदेशों से मिलने वाले मदद को डकारने के लिए बदनाम रहे हैं.

एक सवाल हथियारों के अर्थशास्त्र से भी जुड़ा है. मध्य पूर्व के कई देश बरसों से लड़ाई की आग में चल रहे हैं, जिसकी कीमत लाखों करोड़ों लोगों को चुकानी पड़ रही है. लेकिन लड़ाई की यही तपिश हथियार कंपनियों की जेबें भर रही है.

आलीशान होटलों और महलों में होने वाले शांति सम्मेलनों में यह सवाल भी पूछना होगा कि लड़ाई में इस्तेमाल होने वाले हथियारों की सप्लाई को कैसे रोकें. शांति कायम करने का काम इसी के बाद शुरू हो सकता है. फिर रोजगार और आर्थिक अवसरों की बात होगी. यह समाधान कहने को तीन वाक्यों में सिमट गया, लेकिन इसके लिए लंबा सफर तय करना होगा.

अगर दुनिया भर के राजनेता इस सफर को तय नहीं करेंगे तो फिर हजारों लोग हिचकोले खाती हुई नौकाओं पर भूमध्य सागर में निकलते रहेंगे. और हम यूं ही साल दर साल आंकड़ों में तब्दील होते लोगों को देखते रहेंगे.

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