क्या आप मानेंगे कि दिन के 24 घंटों में से 21 घंटे तक सोने वाला जानवर स्लॉथ कभी इंसानों से टक्कर लेता था. वैज्ञानिकों के मुताबिक सदियों पहले स्लॉथ आकार में बेहद ही विशाल हुआ करते थे.
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दुनिया के सबसे आलसी जानवरों में शुमार स्लॉथ कभी आकार में विशाल हुआ करते थे. एक स्टडी के मुताबिक 11,000 साल पहले भी धरती पर स्लॉथ रहा करते होंगे. जिनकी लंबाई 2 मीटर तक होगी और जिनके पंजे आकार में काफी बढ़े होते होंगे. लेकिन प्राचीन काल में इंसानों के साथ इनका काफी संघर्ष हुआ, जिसके चलते ये विशाल स्लॉथ धरती से विलुप्त हो गए.
अमेरिका के न्यू मेक्सिको राज्य के व्हाइट सैंड वाले इलाके में विशाल पैरों के निशान वाले जीवाश्म मिले हैं. रिसर्चर्स के मुताबिक इन निशानों से पता चलता है कि इंसान, विशाल स्लॉथ के पंजे के निशानों का पीछा करते हुए इनसे गुजरा होगा. जिसके बाद दोनों के बीच टक्कर हुई होगी. इस टक्कर में संभवत: भाले का इस्तेमाल किया गया होगा.
सूरीनाम में स्लॉथ का अस्पताल
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बोर्नमर्थ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और वैज्ञानिक मैथ्यू बेनेट ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि, "इस ट्रैक को देखकर हमें यही कहानी समझ आ रही है कि इंसान इन स्लॉथों पर निगाह रखता था, इनका पीछा करता था. लेकिन हम यह समझने की भी कोशिश कर रहे हैं कि क्या इस टकराव के बीच कोई और भी आया होगा. और, उसने मारने वाले को झटका देने की कोशिश की होगी. कुल मिलाकर यह खासी दिलचस्प कहानी है जो पूरी तरह से इन पैरों के निशानों पर लिखी है."
इस स्टडी में रिसर्चर्स ने यह भी समझा कि कैसे स्लॉथ अपने पैरों का इस्तेमाल खुद की रक्षा के लिए करते रहे होंगे. वैज्ञानिकों के मुताबिक स्लॉथ के खिलाफ इंसान समूह मे काम करता होगा. उसकी एक टीम स्लॉथ का ध्यान भटकाती होगी. वहीं दूसरी टीम निशाना साधती होगी. स्टडी मुताबिक जिन जगहों पर इंसानों के पैरों के निशान नहीं मिलते हैं वहां स्लॉथों के पैरों के निशान एकदम क्रम में हैं. लेकिन जहां इंसानों की मौजूदगी का अंदाजा लगता है वहां यह टेढ़े-मेढ़े और क्रम में नहीं है. इन जीवाश्मों को और समझने के लिए 3डी मॉडलिगं तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस सिस्टम में इन जीवाश्मों को सुरक्षित रखा गया है. यह खास सिस्टम को बेनेट ने विकसित किया है. साथ ही एक स्टैंडर्ड डिजिटल कैमरे की मदद से 22 अलग-अलग एंगलों से इसकी तस्वीरें ली गईं हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक किसी भी जीवाश्म के आपस में जुड़े दो सेट मिलना एक अचंभे से कम नहीं है.
ये हैं कुछ नशाप्रेमी पशु
ड्रग्स और नशे से सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि बिल्ली, हाथी, घोड़े जैसे तमाम जानवर भी आकर्षित होते हैं. पशुओं की तमाम प्रजातियां इन ड्रग्स का आनंद लेने से नहीं चूकती. एक नजर ऐसे पशुओं और इनके नशे पर..
ड्रग्स का इस्तेमाल करने वाले पशुओं में सबसे ज्यादा नाम बिल्लियों का लिया जाता है. ये बिल्लियां कैटनिप नामक जड़ीबूटी को लेने के बाद अपने व्यवहार में जबरदस्त बदलाव लाती हैं. बिल्लियां कैटनिप का फूल खाती है और इसकी पत्तियों और छाल को शरीर पर रगड़ लेती हैं और कुछ ही मिनटों में बिल्ली का नया रूप सामने आता है.
तस्वीर: TERMITE FILMS
हाथी
भारत में हाथियों की पूजा की जाती है और इनकी सूझ-बूझ की तारीफ भी की जाती है. विज्ञान बताता है कि हाथियों के कुछ भाव इंसानों जैसे ही हैं. इंसानों की ही तर्ज पर ये शराब पीने के शौकीन होते हैं. हाथियों में शराब पीने की प्रवृत्ति भारत और अफ्रीका के कई इलाकों में बड़ी समस्या बन गई है.
जिस तरह इंसान निकोटीन पसंद करते हैं उसी तरह घोड़ों को लोकोवीड भाता है. लोकोवीड का पौधा ठंडक वाली जगहों में आसानी से मिल जाता है और इसे देखकर घोड़ों समेत गाय और भेड़ों का भी मन डोल जाता है. दो हफ्ते तक लगातार लोकोवीड का सेवन जानवरों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. इसके अधिक सेवन से मौत भी हो जाती है. जानवरों को इनसे बचाने के लिये लगातार कोशिशें की जा रहीं है.
तस्वीर: Reuters/D. W. Cerny
डॉल्फिन
पफर मछली एक खास तरह की मछली होती है जिनमें न्यूरोटॉक्सिन नाम का ड्रग पाया जाता है. यूं तो ये मछली जहरीली मानी जाती है लेकिन डॉल्फिन पर इसका जहर नुकसान की बजाय नशा चढ़ा देता है. प्राणी विज्ञानी रॉबर्ट पिल्लै की स्टडी बनी एक डॉक्युमेंटरी फिल्म बताती है कि युवा डॉल्फिन पफर फिश को इसके नशीले व्यवहार के चलते ही पसंद करती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/OKAPIA KG/J. Rotman
वालाबी
ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया के क्षेत्र में पायी जाने वाली कंगारू परिवार की एक प्रजाति वालाबी अफीम खाने का शौक रखती है. तस्मानिया के एक अखबार "द मरकरी" ने साल 2014 में वालाबी में अफीम की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते देश के दवा कारोबार को हो रहे नुकसान पर एक रिपोर्ट छापी थी.
तस्वीर: AP
मधुमक्खियां
शराब सिर्फ इंसानों और उनके पूर्वजों को ही पसंद नहीं थी बल्कि यह पशु-पक्षियों की कई प्रजातियों को भी लुभाती है. रिसर्च के मुताबिक अगर मधुमक्खियों को मौका मिलता है तो वे 100 फीसदी शुद्ध ईथानॉल का सेवन करती हैं. 100 फीसदी ईथानॉल को पीना एक आम इंसान के लिये भी आसान नहीं है.