यह आम धारणा है कि युवाओं का शुक्राणु ज्यादा स्वस्थ होता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक 19 साल से कम उम्र में पिता बनने पर बच्चे में जेनेटिक बीमारियों के पहुंचने का ज्यादा खतरा रहता है.
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रिसर्चरों के मुताबिक स्कीजोफ्रीनिया और ऑटिज्म जैसी बीमारियां कम उम्र के पिता के शुक्राणुओं से पैदा होने वाले बच्चों में आसानी से पहुंच सकती हैं. ऐसे बच्चे जीवन भर इन बीमारियों से जूझते हैं. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के जेनेसिसिस्ट डॉक्टर पीटर फॉस्टर कहते हैं, "यह जानने में थोड़ा अजीब सा लगता है कि 20 साल से कम उम्र के लड़कों में जेनेटिक म्यूटेशन की दर ज्यादा होती है." वे कहते हैं कि उन्होंने और उनकी टीम ने इसका स्पष्ट जवाब ढूंढ निकाला है कि कम उम्र के पिता से बच्चे का पैदा होना ज्यादा रिस्की क्यों है.
2007 तक करीब 50 लाख शिशुओं और उनके माता पिता के बारे में जांच करके पता चल चुका था कि 19 साल से कम और 35 साल से ज्यादा के पुरुषों से बच्चों में जेनेटिक म्यूटेशन का स्थानांतरण ज्यादा संभव है. 20 से 35 साल के पिताओं का शुक्राणु सबसे उच्चई गुणवत्ता का होता है.
म्यूटेशन की अधिक दर
फॉस्टर ने 24 हजार बच्चों और उनके पिताओं के नमूने लेकर एक जेनेटिक सीक्वेंस के स्थानांतरण का विश्लेषण किया. उनके मुताबिक, "हमने पाया कि कम उम्र के पिताओं से बच्चों में जेनेटिक म्यूटेशन के पहुंचने की दर ज्यादा उम्र के पिताओं के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा थी". यह उन पुरानी जांचों से मिलता है जिनमें जेनेटिक म्यूटेशन के कारण होने वाली बीमारियों की बात कही गई थी.
प्रजनन के दौरान जब डीएनए बनता है तो कुछ खास बिंदुओं पर त्रुटि हो सकती है. खासकर एक बिंदु बहुत नाजुक होता है, कोशिकीय विघटन से ठीक पहले, यहां डीएनए की कॉपी बनती है. अगर डीएनए के दो सूत्रों में एक में भी सही पोजीशन में गड़बड़ी होती है तो जेनेटिक सीक्वेंस छोटा या बड़ा हो सकता है.
फॉस्टर के मुताबिक यह जेनेटिक म्यूटेशन के स्थानांतरण का सटीक कारण तो नहीं कहा जा सकता कि इसकी वजह पिता की उम्र कम होना ही है. उन्होंने कहा, "बीमारियों के होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जिन्हें हम किसी वैज्ञानिक तरीके से नहीं तय कर सकते हैं. हालांकि हमें पिता की कम उम्र होने और बच्चे में जेनेटिक म्यूटेशन के पहुंचने के बीच बड़ा संबंध जरूर मिला है."
कैसे रखें गर्भावस्था में ख्याल
होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है कि गर्भावस्था के दौरान कुछ जरूरी बातों का ख्याल रखा जाए. इनसे मां और बच्चे दोनों को फायदा होता है.
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गर्भावस्था के दौरान मां कैसा महसूस कर रही है यह बहुत जरूरी है, इससे होने वाले बच्चे की सेहत पर भी असर पड़ता है. मां के लिए उसका बच्चा दुनिया की सबसे बड़ी खुशियों में से एक होता है. जरूरी है कि वह इस खुशी के एहसास को मरने न दे.
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मां औप बच्चे के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी घर के दूसरे सदस्यों पर भी होती है. शरीर में हार्मोन परिवर्तन के कारण मां का मूड पल भर में बदल सकता है. ऐसे में बाकियों को सहयोग बनाकर चलना जरूरी है, खासकर पति को.
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सुबह नहाते समय हल्के गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें. इसके बाद जैतून के तेल से मालिश मां के लिए फायदेमंद है, यह सलाह है जर्मन दाई हाएके सोयार्त्सा की.
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मां के शरीर में हो रहे हार्मोन परिवर्तन के कारण त्वचा संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं. हफ्ते में एक दिन चेहरे पर मास्क का इस्तेमाल अच्छा है. एक चम्मच दही में कच्चा एवोकाडो मिलाकर लगाएं और दस मिनट बाद धो दें.
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गर्भावस्था के दौरान कसरत जरूरी है. आसन लगाकर पेट के निचले हिस्से से सांस खींचकर छोड़ना तनाव दूर करता है. इस दौरान दिमाग में एक ही ख्याल हो, "यह सांस मेरे बच्चे को छू कर गुजर रही है."
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सुबह बहुत कुछ खा सकना आसान नहीं, अक्सर सुबह के वक्त मां को उल्टी की शिकायत रहती है. हर्बल चाय या फिर हल्का फुल्का बिस्कुट या टोस्ट खाना बेहतर है. नाश्ते में इस बात पर ध्यान दें कि वह फाइबर वाला खाना हो. फल खाना और भी अच्छा है.
अक्सर गर्भावस्था के दौरान बाल रूखे और बेजान हो जाते हैं. बालों के लिए इस दौरान हल्के केमिकल वाले शैंपू का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. हफ्ते में एक दिन एक चम्मच जैतून के तेल में दही और अंडे का पीला भाग मिलाकर लगाने से बालों की नमी लौट आती है. गर्भावस्था में हेयर कलर का इस्तेमाल ना करें.
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शरीर और दिमाग के स्वस्थ होने के साथ दोनों के बीच संतुलन बहुत जरूरी है. गर्भावस्था के दौरान पैदल चलना भी फायदेमंद है. स्वीमिंग के दौरान पानी से कमर को काफी राहत मिलती है.
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मां के लिए दांतों को साफ रखना भी जरूरी है, दिन में दो बार ब्रश करें लेकिन नर्म ब्रश से. शुरुआती छह महीनों में दांतों का खास ख्याल रखें और डेंटिस्ट से भी नियमित रूप से मिलते रहें.
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विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चे के लिए हरी सब्जियां और आयोडीन युक्त भोजन फायदेमंद है. बच्चे को खूब आयरन और कैल्शियम की भी जरूरत होती है. ध्यान रहे कि खानपान में इन चीजों की कमी नहीं होनी चाहिए. नियमित रूप से डॉक्टर के पास जाना भी जरूरी है.
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दिन में करीब दो लीटर पानी पीना स्वस्थ जीवनशैली का हिस्सा है. ज्यादा पानी पीने से मां का शरीर चुस्त महसूस करता है.