अगर आप लंबा जीना चाहते हैं और मानसिक तनाव से दूर रहना चाहते हैं, तो अच्छा होगा अगर आप रात में जल्दी बिस्तर में घुस जाएं और सुबह खूब काम करें.
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एक रिसर्च के मुताबिक जो लोग देर रात तक जागते हैं उनमें सुबह जल्दी जागने वालों की तुलना में मरने की आंशका 10 फीसदी अधिक होती है. जो लोग देर रात तक स्वयं को बिस्तर से दूर रखते हैं और अमूमन जिनकी आदत देर रात सोकर, देर से उठने की होती है, वे जल्दी उठने वालों की तुलना में कम जीते हैं. ब्रिटेन में 4.30 लाख लोगों पर की गई एक रिसर्च यह पाया गया है. इंग्लैंड की सरे यूनिवर्सिटी के रिसर्चर और रिपोर्ट के सह-लेखक मैल्कम वैन शेंटज कहते हैं कि यह लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा मसला है और इसे अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
शिकागो की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के रिसर्चर और रिपोर्ट के सह-लेखक क्रिस्टन कुनटसन ने कहा, "रात में जागने वालों में शारीरिक समस्याएं भी अधिक होती हैं". इस शोध में रिसर्चरों ने 38 से 73 तक की उम्र के करीब साढ़े चार लाख लोगों को शामिल किया.
शोध में शामिल तकरीबन 27 फीसदी लोगों ने स्वयं को पूरी तरह से सुबह काम करने वाला व्यक्ति बताया, 35 फीसदी ने स्वयं को काफी काम सुबह तो कुछ काम शाम में करने वाला बताया. इसके अलावा 28 फीसदी स्वयं को शाम में ज्यादा और सुबह कम काम करने वाला मानते हैं, तो वहीं 9 फीसदी लोग पूरी तरह से स्वयं को शाम में काम करने वाला बताते हैं. शोध में इन लोगों के वजन, धूम्रपान की आदत, सामाजिक-आर्थिक स्थिति को भी सूचीबद्ध किया गया. साढ़े छह साल के दौरान इनमें हुई मौतों का विवरण तैयार किया गया. इस दौरान कुल 10,500 मौतें सामने आईं.
क्या है अच्छी और आदर्श नींद
बढ़िया नींद, सेहत की कुंजी है. उम्र बढ़ने के साथ धीरे धीरे यह कम होने लगती है. लंबे शोध के बाद वैज्ञानिक बता पा रहे हैं कि अच्छी नींद क्या होती है.
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30 मिनट फॉर्मूला
बिस्तर पर लेटने और आंखें बंद करने के बाद 30 मिनट के भीतर नींद आ जानी चाहिए. लेकिन बहुत ज्यादा तनाव हो या फिर शरीर पर्याप्त रूप से थका न हो तो नींद बहुत देर से आती है. ये अच्छा संकेत नहीं है.
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नींद टूटने के बाद नींद
रात में अगर किसी कारण से नींद टूटती है तो थोड़ी ही देर बाद फिर से नींद आ जाती है. लेकिन अगर नींद टूटने के बाद काफी देर तक (41 मिनट तक) नींद ना आए तो कुछ गड़बड़ है.
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तनाव से गहरा संबंध
नींद का इंसान की मनोदशा से गहरा संबंध है. डर, तनाव और चिंता के चलते दिमाग सक्रिय रहता है और नींद नहीं आती.
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नवजात की नींद
जन्म से लेकर एक साल की उम्र तक बच्चे बहुत सोते हैं. बच्चों का 14 से 17 घंटे सोना सामान्य बात है. लेकिन उनकी नींद 10 घंटे से कम और 18 घंटे से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
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1-2 साल के बच्चे
इस उम्र के बच्चे आम तौर पर 11 से 14 घंटे सोते हैं. लेकिन उनकी नींद 9 से 15 घंटे के बीच भी हो सकती है. ये सामान्य है.
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3-5 साल के बीच
इस उम्र में कम से कम नौ घंटा और अधिक से अधिक 14 घंटे की नींद मिलनी चाहिए. 10 से 13 घंटे की नींद तो परफेक्ट कही जाएगी.
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6-13 साल
इस उम्र में बच्चे स्कूल जाने लगते हैं. वे काफी खेलते कूदते भी हैं. उनके लिए 9 से 12 घंटे की नींद जरूरी है.
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14-17 साल
किशोरों को 8 से 11 घंटे की नींद लेनी चाहिए.
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18-25 साल
जवानी में कदम रखते ही शरीर का विकास काफी हद तक पूरा हो जाता है. इसीलिए नींद भी घटती है. इस उम्र में 7 से 10 घंटे की नींद पर्याप्त है.
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26-64 साल
इस उम्र के लोगों के लिए कम से कम 6 और अधिक से अधिक 10 घंटे की नींद आदर्श है. कभी कभार थकान होने पर नींद ज्यादा भी हो सकती है. लेकिन छह घंटे से कम नहीं होनी चाहिए.
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65 के ऊपर
बुढ़ापे का असर नींद पर भी पड़ता है. स्वस्थ लोग बुढ़ापे में भी अच्छी तरह 6 से 9 घंटे सो पाते हैं. वहीं बीमारियों से घिरे लोग पांच घंटे भी मुश्किल से सो पाते हैं.
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बीमारियों को न्योता
लंबे समय तक अगर अच्छी नींद न आए तो दिल की बीमारियों और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है. खराब नींद के चलते शुरू में थकान, वजन बढ़ना और अवसाद जैसे लक्षण सामने आते हैं. धीरे धीरे यही दूसरी बीमारियों को न्योता देते हैं.
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रिसर्चरों ने देखा कि जो समूह रात को जागता है, उसमें मृत्यु की आशंका, सुबह उठने वाले समूह से 10 फीसदी अधिक है. इसके साथ ही देर रात तक जागने वाले समूह के लोग डायबिटीज, पेट और सांस की तकलीफ, मनोवैज्ञानिक विकार, कम नींद की समस्या से ग्रस्त होते हैं. साथ ही ये लोग धूम्रपान, शराब, कॉफी और अवैध ड्रग्स का सेवन भी अधिक करते हैं.
शोध के मुताबिक इन लोगों में मौत का जोखिम इसलिए भी अधिक होता है क्योंकि देर से सोकर उठने की वजह से इनकी बॉयलाजिकल क्लॉक अपने आसपास के वातावरण से मेल नहीं खाती. रिसर्चरों की टीम का दावा है कि गलत समय पर खाना, शारीरिक गतिविधियां कम करना, अच्छे से नहीं सोना, पर्याप्त व्यायाम नहीं करना आदि के चलते लोगों को मानसिक तनाव हो सकता है. रिसर्चरों ने देर रात तक जागने वालों के लिए खास प्रकार के इलाज की बात भी कही है.
इंसान को मौत की नींद सुलाने वाली वजहें
दुनिया भर में हर मिनट करीब 106 और हर साल करीब 5.6 करोड़ लोग मारे जाते हैं. इनमें से ज्यादातर इंसान इन 10 कारणों से मारे जाते हैं.