कम हो रही हैं जर्मनी में महिला राजनीतिज्ञ
१८ सितम्बर २०१७"जेंटलमैन और लेडीज," इस साधारण संबोधन के साथ 19 फरवरी 1919 को जर्मन संसद में एक भाषण शुरू हुआ जिसे इतिहास का हिस्सा बनना था. भाषण में कही गयी बातों के अलावा इस बात के लिए भी, कि ये शब्द एक महिला के मुंह से निकले थे. मारी यूखाच लोकतांत्रिक जर्मन संसद की पहली महिला सांसद थी. तीन महीने पहले ही जर्मनी में महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला था. एसपीडी की यूखाच उन 37 महिलाओं में शामिल थीं जो 1919 में जर्मन संसद के लिए चुनी गयी थीं. उस समय कुल सांसदों का 9 प्रतिशत.
अब करीब 100 साल बाद जर्मन सांसद में 37.1 प्रतिशत महिला सांसद हैं. कुल 630 सांसदों में 234. यह संख्या अपने आप में बहुत ज्यादा लग सकती है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में जर्मनी का स्थान 190 देशों में 22वें नंबर पर है. ताजा जनमत सर्वेक्षणों पर भरोसा करें तो इस साल होने वाले संसदीय चुनावों में महिला सांसदों की संख्या नीचे जा सकती है. अनुमान उनकी संख्या गिरकर 32 प्रतिशत होने का है.
तीन बच्चे और 80 घंटे
सवाल ये है कि वे चाहती नहीं या उनके लिए राजनीति को अपना मुख्य पेशा बनाना मुश्किल है. सीएसयू पार्टी की सांसद डोरोथी बेयर मानती हैं कि महिलाओं को कुछ ज्यादा ही दमखम लगाना होता है, अपने को साबित करना होता है. खासकर बिना बच्चों वाली युवा सांसदों को आलोचना की नजरों से देखा जाता है और अक्सर गंभीरता से नहीं लिया जाता. लेकिन किसी महिला सांसद के बच्चे हों तो उसका नुकसान होता है. डोरोथी बेयर कहती हैं, "बहुत मोटी चमड़ी की जरूरत होती है. और मैं मानूंगी कि मेरी खाल भी हर बच्चे के साथ मोटी होती गयी." बेयर के तीन बच्चे हैं और वह हफ्ते में 70 से 80 घंटे काम करती हैं.
बवेरिया में सक्रिय क्रिश्चियन सोशल यूनियन पार्टी ने जिला और कार्यकारिणी के स्तर पर महिलाओं के लिए आरक्षण लागू करने के अलावा युवा महिला राजनीतिज्ञों के लिए मेंटरिंग कार्यक्रम भी चलाया है. डोरोथी बेयर कहती हैं कि महिलाओं को ज्यादा मिलना चाहिए, यह कहने भर से काम नहीं चलेगा, उन्हें खुद भी यह चाहना होगा. वह कहती हैं कि उनकी बहुत सारी साथियों के उन्हीं की तरह छोटे बच्चे हैं और वे सिर्फ आधा दिन काम करती हैं. "लेकिन राजनीति का काम कम से कम पूरे दिन का काम होता है. और मैं साफ साफ कहती हूं कि बहुत सी महिलाएं ये चाहती भी नहीं. "
अधिक महिला अधिक सफलता
चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू और सीएसयू पार्टियों के संसद में 230 सदस्य हैं. उनमें 79 महिलाएं हैं. सीएसयू की उपाध्यक्ष बारबरा श्टाम भी पार्टी में महिलाओं को बढ़ावा देने के मामले में बहुत संभावनाएं देखती हैं. 72 वर्षीया श्टाम कहती हैं, "पूरी पार्टी को समझना होगा कि हमें सफल भविष्य के लिए सीएसयू के चेहरे को महिलाओं से जोड़ना होगा." दूसरी पार्टियों ने ये काम पहले ही शुरू कर दिया है. ग्रीन पार्टी और लेफ्ट पार्टी के सांसदों में पुरुष से ज्यादा महिला सदस्य हैं. उन्होंने मौकों का इस्तेमाल तेजी से किया.
जैसे कि सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी की हन्नेलोरे क्राफ्ट ने 2005 में किया. मुंस्टर यूनिवर्सिटी के राजनीतिशास्त्री विचर्ड वोइक बताते हैं कि एसपीडी ने उस समय जर्मन प्रांत नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में तेजी से समर्थन खोया था. "हनेलोरे क्राफ्ट ने मौके का फायदा उठाया." वे पहले विधायक दल की नेता बनीं, उसके बाद पार्टी की प्रांतीय प्रमुख बनीं और फिर 2010 में पार्टी ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा और वे मुख्यमंत्री बनीं.
अधिक काम, मुश्किल माहौल
विचर्ड वोइक कहते हैं कि परिवार और सांसद बनने तक राजनीतिक करियर बनाना लंबे समय तक के लिए आसान नहीं है. "अलग बात है यदि पति घर पर रहता हो और काम न करता हो, जो होममेकर और बच्चों की परवरिश सहित सबकुछ निबटाये." कुछेक मामलों में ऐसा होता है, लेकिन ऐसे मामले बहुत ही विरले हैं. महिला राजनीतिज्ञों को बहुत ज्यादा काम और मुश्किल माहौल के लिए तैयार रहना चाहिए. राजनीतिशास्त्री वोइक कहते हैं, "भले ही महिलाओं के प्रति आम बर्ताव में बेहतरी आयी है, लेकिन राजनीतिक ढांचा अब भी मर्दों के वर्चस्व वाला है."
इसका अहसास डोरोथी बेयर को भी बार बार होता है. उनसे अक्सर पूछा जाता है कि वह अपने बच्चों को कैसे संभालती हैं, लेकिन उनके पति से यह सवाल कोई नहीं पूछता, हालांकि वह भी राजनीतिज्ञ हैं. वह कहती हैं, "वहां यह मान लिया जाता है कि यह काम किसी न किसी तरह चल जाता है."
सत्ता का सवाल
और उसके बाद राजनीति से जुड़ा सत्ता का मुद्दा भी है. डोरोथी बेयर कहती हैं कि एक महिला राजनीतिज्ञ को पसंद की बात खुलकर नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसमें कुछ धुंधला और स्याह सा है. फिर भी डोरोथी बेयर का मानना है कि महिलाओं को राजनीति में जाना चाहिए क्योंकि यह फायदेमंद है. वह कहती हैं कि उनके मुद्दे अलग हैं, उन्हें निबटाने के तरीके अलग हैं. खासकर कुछ विशेष मामलों में.
वह एक उदाहरण देती हैं. उनसे नागरिकों के साथ नियमित बातचीत के मौके पर कृत्रिम गर्भाधान और बांझपन के बारे में पूछा गया. उनके मर्द सहयोगियों से यह सवाल कभी नहीं पूछा जाता. बेयर बताती हैं, "इस पर मुझे आश्चर्य भी नहीं है क्योंकि मर्द इसके बारे में मर्द से भी बात नहीं करते."