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करतारपुर गुरुद्वारे के प्रबंधन को लेकर विवाद

चारु कार्तिकेय
६ नवम्बर २०२०

भारत-पाकिस्तान के बीच करतारपुर गलियारे के खुलने के एक साल बाद पाकिस्तान में करतारपुर गुरुद्वारे को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. पाकिस्तान सरकार ने गुरुद्वारे के प्रबंधन को एक गैर-सिख संस्था को सौंप दिया है.

Pakistan und Indien Eröffnung Sikh Pilgerweg in Kartarpur
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Qureshi

पाकिस्तान सरकार ने करतारपुर गुरुद्वारे के प्रबंधक को बदलने का फैसला किया है. अभी तक इसका प्रबंधन पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (पीएसजीपीसी) के पास था जो पाकिस्तान के अल्पसंख्यक सिख समुदाय की अपनी एक संस्था है. सरकार अब गुरूद्वारे का प्रबंधन इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के हवाले कर रही है, जो एक गैर-सिख संस्था है.

ये पाकिस्तान सरकार की एक वैधानिक संस्था है जो उन संपत्तियों की देखरेख करती है जो बंटवारे में पाकिस्तान छोड़ कर चले जाने वाले हिन्दू और सिख पीछे छोड़ गए थे. ये हिन्दुओं और सिखों के धार्मिक स्थलों की भी देखरेख करती है. इस बोर्ड की स्थापना 1950 की नेहरू-लियाकत संधि और 1955 की पंत-मिर्जा संधि की शर्तों के तहत पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए की गई थी.

लेकिन पाकिस्तान सरकार पर लंबे अरसे से आरोप लगते रहे हैं कि खुद इस संस्था में ही अल्पसंख्यकों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित नहीं किया जाता है. इस समय भी बोर्ड के छह के छह आधिकारिक सदस्य मुस्लिम हैं और 18 गैर-आधिकारिक सदस्यों में से सिर्फ आठ सदस्य हिन्दू और सिख समुदायों से हैं.

पाकिस्तान के पंजाब में स्थित करतारपुर गुरुद्वारा सिखों के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक है. इसकी स्थापना खुद सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक ने की थी और उनकी जिंदगी के आखिरी साल इसी जगह पर गुजरे.तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Qureshi

भारत ने करतारपुर गुरुद्वारे के प्रबंधन को पीएसजीपीसी से लेकर इस बोर्ड को सौंपने के निर्णय का विरोध किया है. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह एकतरफा कदम निंदा के योग्य है और करतारपुर गलियारे की आत्मा और सिख समुदाय की भावनाओं के खिलाफ है.

मंत्रालय ने यह भी कहा है कि इस तरह के कदम पाकिस्तान सरकार के उन दावों की असलियत दिखाते हैं जिनमें वो धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों और उनके कल्याण को सुरक्षित रखने की बात करती है. भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार से तुरंत इस कदम को वापस लेने को कहा है.

पाकिस्तान के पंजाब में स्थित करतारपुर गुरुद्वारा सिखों के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक है. इसकी स्थापना खुद सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक ने की थी और उनकी जिंदगी के आखिरी साल इसी जगह पर गुजरे. गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ चार किलोमीटर दूर है, लेकिन जब 1947 में बंटवारा हुआ तो करतारपुर पाकिस्तान में चला गया.

2019 में दोनों देशों ने कई मोर्चों पर आपसी झगड़ों के बीच सहयोग की एक मिसाल कायम करते हुए एक गलियारे की स्थापना की, जिसकी वजह से भारत से सिख श्रद्धालु अब बिना वीजा के करतारपुर गुरुद्वारे जा सकते हैं और दर्शन करके वापस आ सकते हैं.

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