अरब दुनिया के 37.5 करोड़ लोग कट्टरपंथी बनने के लिए तैयार नहीं बैठे हैं. लेकिन अरब के मुसलमानों के प्रति उपजे ऐसे ही पूर्वाग्रहों से निपटने का बीड़ा अब एक युवा महिला उद्यमी से उठाया है.
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अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में एक स्टार्ट अप फैक्टरी. खदीजा हमूची यहां तीन महीने के लिए काम कर रही हैं. वह एक ऐसा ऐप डेवलप करना चाहती हैं, जो युवा अरबों को उनकी भाषा में यह जानकारी देगा कि वे अपनी कंपनी कैसे बना सकते हैं. यूजरों की जरूरतों के हिसाब से कारोबार शुरू करने की जानकारी.
अपने प्रोजेक्ट के जरिये खदीजा अरब जगत के प्रति पूर्वाग्रह को तोड़ने की कोशिश भी कर रही हैं, "जब आप युवा लोगों की शिक्षा की बात करते हैं तो लोग कहते हैं, ओह क्या ये युवाओं को डिरैडिकलाइज करने का प्रोग्राम है? लोगों में कुछ इस तरह के तगड़े पूर्वाग्रह हैं कि वे सोचते हैं कि हर अरब, हर मुस्लिम के आतकंवादी बनने का खतरा है. जैसे कि साढ़े 37 करोड़ लोग इसलिए रैडिकल बनने के लिए तैयार हैं कि वे अरब हैं."
स्टार्ट अप फैक्टरी से मदद कैसे ली जा सकती है यह खदीजा हमूची ने खुद टेस्ट किया है. उन्होंने स्टार्ट अप वर्कशॉप में हिस्सा लिया, लोगों के साथ नेटवर्किंग की. अरब देशों के युवा लोगों को अक्सर यह मौका नहीं मिलता. बहुत से लोग पढ़ाई करते हैं लेकिन उसके बाद वे सरकारी दफ्तरों या बड़ी कंपनियों में नौकरी करना चाहते हैं, ताकि जिंदगी आराम से कट जाये.
वर्क शॉप में हिस्सा लेने का खर्चा कुछ खदीजा हमूची का अपना है और कुछ उन्होंने क्राउडफंडिंग से जुटाया है. वह जानती है कि स्टार्ट अप को खड़ा करना आसान काम नहीं, "उद्यमिता बहुत अकेलेपन वाली राह होती है. एकाकीपन लेकिन कभी कभी स्थिरता भी. यह तथ्य कि इस प्रोजेक्ट के लिए मुझे जगह जगह जाना पड़ता है, यह अच्छी बात है क्योंकि लोग मेरी प्रतिबद्धता देखते हैं. लेकिन कभी कभी सोचती हूं कि काश मैं लोगों को एक ही पता दे सकती, चिट्ठी लिखने के लिए."
हिजाब वाली एक अमेरिकी लड़की की डायरी
अमेरिका के मैरीलैंड की रहने वाली एक 17 साल की लड़की हाना श्राइम उन युवाओं में से एक है, जो मुसलमान है, लड़की है और हिजाब पहनती हैं. देखिए कैसा है अमेरिका में उसका जीवन.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/J. Martin
किसका फैसला
हाना ने 10वीं क्लास से हिजाब पहनना शुरु किया. 17 साल की हाना के माता-पिता का कहना है कि ये उसका अपना फैसला था.
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पांच वक्त की नमाज
इस्लाम के बताए रास्ते पर चलते हुए हाना पांच वक्त की नमाज पढ़ती है. स्कूल में गर्ल क्लाउट दल की सदस्य और क्लास की कैप्टन हाना हिजाब पहने सभी भूमिकाएं निभाती है.
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थोड़ी सी मदद
अपनी छोटी बहन पांच साल की लाना को हिजाब पहनने में मदद करती हाना. राजधानी वॉशिंगटन डीसी से करीब 45 किलोमीटर दूर मैरीलैंड में मुसलमानों की बड़ी आबादी रहती है.
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आम लड़कियों जैसे शौक
स्कूल पूरा करने का मौका मौज मस्ती का होता है. किसी भी आम लड़की की तरह हाना भी उस खास दिन की तैयारी करती है. प्रॉम पार्टी की तैयारियों में लगी हाना और उसकी सहेली.
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कपड़े और फैशन
हाई स्कूल खत्म होने पर आयोजित होने वाली प्रॉम पार्टी के लिए नई ड्रेस चाहिए जिसके लिए हाना एक तुर्की वेबसाइट को खंगालती है. जाहिर है नई ड्रेस के साथ मैचिंग हिजाब भी चाहिए.
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फोटो शूट की तैयारी
पार्टी से पहले तैयार हुई हाना के साथ परिवार वाले फोटे शूट कराते हुए. हाना के स्कूल पूरा करने का उत्साह पूरे परिवार में है.
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डांस फ्लोर पर मस्ती
प्रॉम पार्टियों का सबसे बड़ा आकर्षण वहां होने वाला डांस होता है. यहां हाना अपने हिजाब समेत खूबसूरत ड्रेस पहने साथियों के साथ मजे करती हुई.
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यह नहीं करना
हाना को पार्टी में भेजने को तो परिवार तैयार हो गया लेकिन यह उनके लिए एक बड़ा फैसला था. लेकिन हाना को केवल लड़कियों के साथ ही रहना है, लड़कों के साथ डांस करने की अनुमति नहीं.
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जीवन के आनंद
हाना जैसी युवा लड़कियां अमेरिकी जीवनशैली से जुड़ी तो हैं लेकिन कहीं इस्लामी विचारधारा के कारण तो कहीं खुद अपनी सहूलियत को देखते हुए उसमें कुछ बदलाव भी करती हैं. (जेएच/आरपी)
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अपने आयडिया के लिए 26 साल की टीचर ने लंदन की अपनी नौकरी छोड़ दी. लेकिन वह सैन फ्रांसिस्को का मजा नहीं ले सकतीं, वह दिन में 12 से 16 घंटे काम करती हैं. रात में दस बजे दुबई में सॉफ्टवेयर डेवलपर के साथ इंटरनेट पर मीटिंग करती हैं. दुबई के साथ 12 घंटे का टाइम गैप है.
प्रोग्राम डेवलपर दयाना अबूद उनके लिए सिर्फ सॉफ्टवेयर ही नहीं बना रहीं, वह खदीजा को सलाह भी दे रही हैं, "युवाओं को पता नहीं होता कि वे कंटेट कहां खोजें. इंटरनेट पर बहुत सारा कंटेंट नहीं है. उन्हें कुछ हद तक गाइडेंस की भी जरूरत है. और जब उन्हें पता चलता है कि दूसरे लोग या प्लेटफॉर्म भी समुदायों को सीखने के लिए साथ ला रहे हैं, तो वे एक दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं और एक दूसरे को मजबूत बनाते हैं."
अरब वसंत ने दिखाया कि युवा लोग किस तरह ऑनलाइन जमा हो सकते हैं. खदीजा कहती हैं, "उन्हें पता है कि वे क्या चाहते हैं. उन्हें पता है कि वे कुछ नया चाहते हैं. उन्हें पता है कि वे बेहतर क्वालिटी चाहते हैं, बेहतर शिक्षा व्यवस्था, बेहतर हेल्थ सिस्टम. उन्हें पता है कि उन्हें क्या मिलना चाहिए और वे इसे मांगेगे."
खदीजा हमूची अब अरब देशों में अपनी अगली यात्रा का प्लान बना रही है. वहां उन्हें पता चलेगा कि उनके ऐप की कितनी मांग है.
(अफगानिस्तान ने फोटोग्राफर बना दिया)
अफगानिस्तान ने फोटोग्राफर बना दिया
जापान के युवा फोटोग्राफर युजुके सुजुकी की तस्वीरें झकझोर देती हैं. बर्लिन फोटो फेस्टिवल में इस युवा फोटोग्राफर को सम्मानित किया गया है. एक नजर सुजुकी की तस्वीरों पर.
तस्वीर: USK Photography
सर्वनाश
युजुके सीरिया के शहर अलेप्पो पहुंचे. वहां उन्होंने "सिटी ऑफ कियोस" नाम की फोटो सीरीज बनाई. यह तस्वीर उन्हीं में से एक है. युजुके के मुताबिक, "जब मैं अलेप्पो पहुंचा तो मैंने महसूस किया कि वहां पानी, गैस, बिजली, दवाएं, स्कूल, नौकरियां और बेबी मिल्क कुछ भी नहीं था."
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हड्डियां जमाने वाली सर्दी
जनवरी में कड़ाके की सर्दी के दौरान जब अलेप्पो में लोगों को कंबल बांटे गए तो वहां छीना झपटी जैसी स्थिति हो गई. युजुके के मुताबिक, "एक कंबल पाने के लिए लोग चीख रहे थे. बहुत ही ज्यादा ठंडी सर्दियां काटने के लिए लोगों के पास गैस भी नहीं थी."
तस्वीर: USK Photography
दोस्त
फ्री सीरियन आर्मी के इस युवक के जरिये जापानी फोटोग्राफर सीरिया पहुंचे. दोनों जल्द दोस्त बन गए. इस संपर्क के कारण ही युजुके बियाबान पड़े चुके शहरों तक पहुंचे.
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लड़ाई के मैदान पर
फोटोग्राफर फ्री सीरियन आर्मी के साथ लड़ाई के मैदान तक पहुंचे. युजुके कहते हैं, "हमने अक्सर चाय पी और चुटकुले भी चलते रहे. कभी कभी तो वे फायर भी करते थे और साथ में चुटकुला भी सुनाते थे." लेकिन जैसे ही लड़ाई तेज हुई, सबका मूड बदल गया. युजुके समेत सबको मौत का डर सताने लगा.
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जैसे तैसे पहुंच गए
शरणार्थी संकट को सामने लाने के लिए युजुके ग्रीस के लेसबोस द्वीप भी पहुंचे. युजुके के मुताबिक, "वहां हर दिन शरणार्थियों से ठसाठस भरी 20 से 25 नावें आती थीं."
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गमगीन करने वाले दृश्य
लेसबोस में युजुके सुजुकी का सामना कई झकझोर देने वाले लम्हों से हुआ. लोगों का दर्द देख वह विचलित भी हो उठे. कभी कभी उन्हें लगा कि तस्वीर नहीं लेनी चाहिए. लेकिन फिर यह अहसास भी हुआ कि इन लोगों की कहानी किसी को तो कहनी चाहिए.
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अफगानिस्तान का प्रोजेक्ट
2006 में मात्र 21 साल की उम्र में युजुके सुजुकी पहली बार अफगानिस्तान गए. उस यात्रा ने उन्हें बदल दिया. गिटारवादक बनने की चाह रखने वाले युजुके ने अफगानिस्तान ट्रिप के बाद फोटोग्राफर बनने का फैसला किया.
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हिंसा के बीच आम जिंदगी
अफगानिस्तान पहुंचने से पहले युजुके को शांति और युद्ध के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थीं. अफगानिस्तान यात्रा के दौरान उनके मन में कई सवाल उठे. तभी उन्होंने महसूस किया कि लड़ाई और खूनखराबे के बीच भी आम जिंदगी की सुंदरता बची रहती है. यह तस्वीर उसी का जिक्र करती है.
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अवॉर्ड जीतने वाली फोटोग्राफी
युजुके सुजुकी कहते हैं, "मैं युद्ध का मतलब समझना चाहता था. मैं देखना चाहता था, सुनना चाहता था और युद्ध में रह रहे लोगों की जिंदगी महसूस करना चाहता था." बर्लिन फोटो फेस्टिवल बीनियाले में उन्हें यंग एमर्जिंग टैलेंट का अवॉर्ड दिया गया.