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समाज

कर्नाटक में ईसा मसीह की मूर्ति बनाने पर विवाद

१४ जनवरी २०२०

कर्नाटक में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ता 114 फीट ऊंची ईसा मसीह की मूर्ति बनाने विरोध कर रहे हैं. यह मूर्ति बनी तो रियो डे जेनेरो की मशहूर 'क्रिस्ट द रेडमीमर' मूर्ति को चुनौती देगी.

Bildergalerie Osterbräuche aus aller Welt (Symbolbild)
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक के कनकपुरा में प्रस्तावित 114 फीट ऊंची ईसा मसीह की प्रतिमा को लेकर विवाद बढ़ गया है. भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसका विरोध कर रहे हैं. हाल में करीब एक हजार लोगों ने हाथों में भगवा झंडा लेकर कनकपुरा में विरोध प्रदर्शन किया.

बीजेपी पर अकसर दूसरे धर्मों के प्रति असहिष्णुता के आरोप लगते आए हैं. साथ ही यह भी आरोप लग रहे हैं कि वह आधिकारिक रूप से धर्मनिरपेक्ष भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित करना चाहती है, हालांकि इसका पार्टी खंडन करती आई है.

आरएसएस के एक शीर्ष अधिकारी प्रभाकर भट ने पत्रकारों से कहा, "हम इसके निर्माण को रोकना चाहते हैं, चूंकि यह सांप्रदायिक सद्भाव की भावना के खिलाफ है और इससे धर्म परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है, जो बड़े पैमाने पर ईसाई मिशनरी करते हैं. "

ईसा मसीह की प्रतिमा का विरोध क्यों?

पिछले महीने इस प्रतिम का निर्माण शुरू हुआ था. लेकिन विवादों में घिरने के कारण कुछ दिन बाद ही उसे रोक दिया गया. सफेद ग्रेनाइट से 114 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई जानी है जो रियो की मूर्ति से ऊंचाई में थोड़ी कम है, हालांकि इसका आधार 'क्रिस्ट द रेडमीमर' से बड़ा रखने की योजना है.

कई हिंदुओं का मानना है कि हैरोबेले नाम के ईसाई बहुल गांव में जिस पहाड़ी पर मूर्ति बनाने की योजना है वहां हिंदू देवता का निवास है. हालांकि वहां कोई मंदिर मौजूद है. राज्य की बीजेपी सरकार विपक्षी दल कांग्रेस पर सरकार में रहते हुए अवैध तरीके से जमीन आवंटित करने का आरोप लगा रही है.

कर्नाटक की साढ़े छह करोड़ की आबादी में ईसाई एक फीसदी से भी कम है. साल 2008 में ईसाइयों और गिरजाघरों पर हिंदू कट्टरपंथियों ने एक के बाद एक कई हमले किए थे. उस वक्त मिशनरियों पर पैसे के बदले धर्म परिवर्तन के आरोप लगाए गए थे. पिछले साल ही एक हिंदू संगठन के छह सदस्यों को ईसाई तीर्थयात्रियों के समूह पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

कर्नाटक सरकार पर भेदभाव के आरोप लगते आए हैं. राज्य सरकार टीपू सुल्तान की जयंती पर भी बैन लगा चुकी है. मैसूर के राजा टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी थीं. केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि दर्ज की गई और धार्मिक आजादी भी सिकुड़ने के दावे किए जा रहे हैं. पिछले साल ही अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग ने कहा था कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता में गिरावट देखी जा रही है. हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय ने उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

एए/एके (एएफपी)

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