संजय लीला भंसाली की नयी फिल्म पद्मावती का विरोध हो रहा है. ऐसे विरोध दूसरे मामलों में भी होते रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वसंत्रता पर हस्तक्षेप की सीमाएं बांधता है.
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यूं तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हर समय खतरा मंडराता रहता है लेकिन पिछले वर्षों में स्थिति कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गई है. हर प्रकार के कट्टरपंथी साहित्य, चित्रकला, सिनेमा और वैचारिक विमर्श पर अंकुश लगाना चाहते हैं और इसके लिए वे धमकी, हिंसा और अन्य किसी भी किस्म के गैरकानूनी तरीके अपनाने में भी गुरेज नहीं करते. वे सरकारें भी अक्सर इनके दबाव के आगे झुक जाती हैं जो इनसे सहमत नहीं होतीं. और, जो सहमत होती हैं, वे तो इनकी बात मानती ही हैं.
दो ताजातरीन उदाहरणों से स्थिति की नजाकत समझ में आ सकती है. गोवा में 20 नवंबर से अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव शुरू होने वाला है लेकिन उसके शुरू होने से पहले ही अंतरराष्ट्रीय निर्णायक मंडल के तीन सदस्य इस्तीफा दे चुके हैं क्योंकि निर्णायक मंडल द्वारा चुनी गई तीन फिल्मों के प्रदर्शन पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने रोक लगा दी है क्योंकि हिंदुत्ववादी तत्व उन्हें अश्लील बता कर उनका विरोध कर रहे थे. उधर जाने-माने फिल्म निदेशक संजय लीला भंसाली की 1 दिसंबर को रिलीज होने जा रही फिल्म ‘पद्मावती' को लेकर देश भर में बवाल मचा हुआ है.
किन किन विवादों में घिरीं दीपिका पादुकोण
फिल्म पद्मावती की रिलीज से ठीक पहले दीपिका पादुकोण का सर कलम करने पर इनाम रखा गया. यह पहला मौका नहीं है जब दीपिका विवादों में घिरी हों. जानिए कब कब कौन कौन से विवाद में फंसी दीपिका.
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राम लीला
पहले भी संजय लीला भंसाली की फिल्म के कारण दीपिका विवादों में रह चुकी हैं. फिल्म राम लीला की रिलीज से पहले उनके नाम का अरेस्ट वॉरंट भी निकाला गया था क्योंकि कुछ हिंदू दर्शक फिल्म के नाम से आहत थे.
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माय चॉइस
वोग मैगजीन के लिए दीपिका ने 'माय चॉइस' नाम को जो वीडियो शूट किया, वह भी काफी विवादों के घेरे में रहा. वीडियो में शादी के बाहर संबंध बनाने को दीपिका ने अपनी मर्जी बताया, जिस पर कई लोग खफा हुए.
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इंस्टाग्राम ट्रोलिंग
एक पार्टी में रणबीर कपूर के रिश्ते के भाई अरमान और आदार जैन के साथ खिचवाई तस्वीरों को ले कर दीपिका को इंस्टाग्राम पर खूब ट्रोल किया गया. लोगों ने उनके लिए कई अपशब्दों का इस्तेमाल किया.
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क्लीवेज
अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी अपनी एक फोटो पर दीपिका खूब भड़कीं. अखबार ने गलत तरह से फोटो ली और दीपिका की क्लीवेज की ओर लोगों का ध्यान खींचा. इसके जवाब में दीपिका ने कहा, हां मैं लड़की हूं और मेरे पास ब्रेस्ट है.
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कॉफी विद करण
करण जोहर के चैट शो पर दीपिका से उनके और रणबीर कपूर के ब्रेक अप पर चर्चा शुरू हुई, तो रणबीर की बेवफाई के बारे में दीपिका ने कहा कि रणबीर को कंडोम का विज्ञापन करना चाहिये. बेटे के बारे में ऐसी बात सुन ऋषि कपूर काफी नाराज हुए.
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प्लास्टिक सर्जरी
कॉफी विद करण पर ही दीपिका ने सोनम कपूर के साथ प्लास्टिक सर्जरी कराने वाली अभिनेत्रियों पर चुटकी ली. इंडस्ट्री में कइयों को यह पसंद नहीं आया.
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दम मारो दम
फिल्म हरे कृष्णा हरे राम के गाने के रीमिक्स में दीपिका को नाचते देख जनता तो काफी उत्साहित हुई लेकिन जीनत अमान इससे नाखुश दिखीं. जीनत अमान को रीमिक्स के लिरिक्स से आपत्ति थी.
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सिद्धार्थ माल्या
अपने करियर की शुरुआत में दीपिका के विजय माल्या के बेटे सिद्धार्थ माल्या से करीबी संबंध रहे. हालांकि दीपिका ने कभी सार्वजनिक रूप से इस पर कुछ नहीं कहा लेकिन एक टी20 मैच के दौरान जब सिद्धार्थ ने उन्हें चूम लिया, तब बात साफ हो ही गयी.
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फिल्म की नायिका दीपिका पादुकोण की सुरक्षा बढ़ाई जा रही है क्योंकि उनकी नाक काटने से लेकर उनके खिलाफ अन्य किस्म की हिंसा करने की खुलेआम धमकियां दी जा रही हैं. अनेक राजपूत संगठन और हिन्दू जागरण मंच के साथ-साथ स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ फिल्म के खिलाफ प्रचार में लगे हैं क्योंकि उनका आरोप है कि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के स्वप्न में उसके और पद्मावती के बीच प्रेमदृश्य दिखा कर भंसाली ने राजपूती आन-बान का अपमान किया है. यह बात दीगर है कि फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्यों के अलावा अभी तक यह फिल्म किसी ने भी नहीं देखी है और बोर्ड ने इसे प्रदर्शन के लिए प्रमाणपत्र दे दिया है.
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का एक दूसरे मामले की सुनवाई के दौरान यह फैसला आना कि कलात्मक अभिव्यक्ति को संरक्षण देना उसका कर्तव्य है और इस क्षेत्र में साधारणतः अदालतों को दखल नहीं देना चाहिए, बेहद राहत देने वाला है. सुप्रीम कोर्ट का काम संविधान का संरक्षण और उसकी व्याख्या है और आम नागरिक अपने अधिकारों की हिफाजत के लिए उसी की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखता है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि किसी फिल्म को सेंसर बोर्ड ने प्रदर्शन के लिए प्रमाणपत्र दे दिया है तो फिर अदालतों को उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. संस्थाओं की स्वायत्तता और उनकी गरिमा की रक्षा करने की दिशा में यह टिप्पणी अत्यंत महत्वपूर्ण है.
पिछले कई दशकों के दौरान इतिहास, साहित्य और कलाओं पर लगातार इस आधार पर हमले होते रहे हैं कि उनसे इस या उस जाति अथवा धार्मिक समुदाय की भावनाएं आहत होती हैं. जिस तरह आज राजपूत संगठन संजय लीला भंसाली की फिल्म के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं, जबकि यह सिद्ध हो चुका है कि पद्मिनी/पद्मावती सोलहवीं सदी के सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पूर्णतः काल्पनिक पात्र है. उसी तरह कुछ वर्ष पहले प्रसिद्ध इतिहासकार सतीश चन्द्र की मध्यकालीन इतिहास पर पुस्तक के खिलाफ जाट समुदाय के लोग आंदोलन करने लगे थे. पिछले दिनों राजस्थान की सरकार ने पाठ्यपुस्तकों में बदलाव करके हल्दीघाटी की लड़ाई में अकबर के बजाय राणा प्रताप को विजयी दिखाये जाने का आदेश जारी किया. कुछ वर्षों पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी के पाठ्यक्रम से एके रामानुजन का रामायण की विविधतापूर्ण परंपरा पर लिखा प्रसिद्ध निबंध निकाल दिया गया था क्योंकि हिंदुत्ववादी तत्व उसे हिन्दू भावनाओं को आहत करने वाला बता रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह रुझान समाप्त हो जाएगा, ऐसी आशा किसी को भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय और शक्तिशाली तत्व एकाएक निष्क्रिय नहीं हो सकते. लेकिन इस आदेश से उनके उत्साह और उन्माद पर कुछ अंकुश अवश्य लगेगा और वे जरा-जरा सी बात पर अदालत का दरवाजा खटखटाने और अपने विरोधियों को परेशान करने से पहले कुछ क्षण रुक कर जरूर सोचेंगे.
ऐसे बनती हैं दुर्गा की प्रतिमाएं
दुर्गापूजा की आहट शुरू हो गयी है. कलकत्ता से लेकर पश्चिम बंगाल तक कलाकार दुर्गा की मूर्तियां बनाने में जुट गये हैं. लेकिन ये सुंदर प्रतिमाएं बनती कैसे हैं. देखिए इन तस्वीरों में.
तस्वीर: DW/ P. Tiwari
शुरू हुआ प्रतिमा का बनना
दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए सबसे पहले बांस से एक ढांचा बनाया जाता है. जितनी बड़ी मूर्ति बनानी होती है, उसके अनुसार बांस से आकार ढाला जाता है. ढांचा तैयार होने के बाद सूखी घास और पुआल की मदद से मूर्ति को आकार दिया जाता है.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
अब आई मिट्टी की बारी
मूर्ति को आकार देने के बाद बांस और घास के बनाए ढांचे पर गीली मिट्टी की परत चढ़ायी जाती है. मिट्टी की यह परत मूर्ति को ठोस बनाने में मदद करता है. इस तस्वीर में कलाकार सरस्वती के वाहक हंस को गीली मिट्टी से तैयार कर रहा है.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
फिर चढ़े रंग
एक बार मिट्टी की परत सूख जाने के बाद मूर्तियों को रंगने का काम शुरू किया जाता है. सबसे पहले मूर्ति के बड़े हिस्से रंगे जाते हैं. बाद में फूल-पत्तियां और दुर्गा के वस्त्र रंगे जाते हैं. रंगों के अलावा मूर्तियों को और सुंदर बनाने के लिए चमकीले रंग या लेप भी लगाए जाते हैं.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
महिषासुर भी बना
दुर्गा की प्रतिमा के साथ हमेशा महिषासुर की मूर्ति भी बनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस को मारा था. महिषासुर को मारते हुए दुर्गा की मूर्ति शक्ति का प्रतीक मानी जाती है.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
अब सजेगी मूर्ति
मूर्ति के बनने और रंगाई के काम के बाद मूर्ति को कपड़े, गहनों, झालरों और अस्त्रों के साथ सजाया जाता है. हर मूर्ति अलग तरह से बनाई और सजाई जाती है. कई बार खास मांगों पर मूर्तियां अलग अलग तरह और अलग अलग आकारों की भी बनाई जाती हैं.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
थोड़ा आराम भी जरूरी
जाहिर सी बात है लगातार और इतनी मेहनत के काम में थकान तो होगी ही. कई बार कलाकारों के पास इतना वक्त भी नहीं होता कि वे घर जाकर पूरी नींद ले सकें. वे अपनी थकान मिटाने के लिए कुछ देर सोकर फिर काम में जुट जाते हैं. हर साल दुर्गा पूजा आने के साथ काम का दबाव काफी बढ़ जाता है और थोड़ी सी भी देरी नुकसान दे सकती है.