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'कल्पना से परे कि पाकिस्तान को ओसामा का पता नहीं था'

६ मई २०११

जर्मन अखबारों में आजकल पाकिस्तानी शहर एबटाबाद में अमेरिकी सेना की कार्रवाई में अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन की मौत छाई है. इस समय जर्मनी में पाकिस्तान में प्रशिक्षित एक अल कायदा सदस्य के खिलाफ मुकदमा भी चल रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

उसकी गिरफ्तारी के बाद उससे मिली सूचनाओं के आधार पर पिछले साल क्रिसमस के समय जर्मनी में सुरक्षा चौकसी बढ़ा दी गई थी. एसेन से प्रकाशित दैनिक नौए रुअर-नौए राइन त्साइटुंग इस बात को संभव नहीं मानता कि पाकिस्तान की सरकार को पता नहीं था कि अमेरिका का दुश्मन नंबर एक उनके देश में छुपा है. दैनिक ने अपनी समीक्षा में लिखा है

पाकिस्तान के लिए शर्मनाक. कल्पना से परे कि इस्लामी देश की सरकार को अपने प्रमुख मेहमान की मौजूदगी का पता नहीं था. एबटाबाद में स्वयंभू शेख अपने पूरे खानदान के साथ आराम से रह रहा था और आतंक के जाल बुन रहा था. उसकी सुरक्षा की व्यवस्था पाकिस्तानी सरकार में शामिल समान सोच वाले लोग कर रहे थे, खासकर खुफिया सेवा के अधिकारी. अमेरिका के खिलाफ एक अविश्वसनीय कार्रवाई जो खस्ताहाल देश को अरबों की मदद देकर जिंदा रख रहा है. पाकिस्तान आतंकवाद विरोधी संघर्ष में अब सहयोगी नहीं रह गया है बल्कि हर दिशा में अपने विकल्प खुले रख रहा है. भ्रष्टाचार में डूबे राजनीतिक वर्ग ने देश को इस्लामी कट्टरपंथियों के हाथों सौंप दिया है. अब अल कायदा नेता की हिंसक मौत पाकिस्तान को अराजकता में धकेल सकती है.

तस्वीर: AP

हाइडेलबर्ग से प्रकाशित दैनिक राइन-नेकर त्साइटुंग लिखता है कि लंबे समय से पाकिस्तान के सुरक्षा बलों पर संदेह है कि वे आतंकवादियों के साथ सहयोग कर रहे हैं जबकि उन्हीं के खिलाफ वे कथित रूप से लड़ रहे हैं. अखबार लिखता है

यह तथ्य इस शक की पुष्टि करता है कि ओसामा बिन लादेन सालों से पाकिस्तान के गैरिसन शहर में रह रहा था. यह कल्पना से पूरी तरह परे है कि खुफिया सेवा की जानकारी के बिना कि उनके पड़ोस में कौन रह रहा है, भारी सुरक्षा वाला कोई मकान बनाया जा सकता. सचमुच में पाकिस्तान 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमलों तक विभिन्न प्रकार के आतंकी नेटवर्कों के निर्माण में सहयोग दे रहा था. उनके साथ सुरक्षा बलों के सबंध बने हुए हैं और उनके लक्ष्यों के साथ सहानुभूति भी. खासकर इसलिए भी कि पाकिस्तान अमेरिका के दबाव में आतंकवाद विरोधी संघर्ष में शामिल हुआ था, न कि विचार में बदलाव के कारण. स्थिति और भी भयावह है क्योंकि उसके पास परमाणु हथियार हैं. आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष का फैसला पाकिस्तान में होगा. बिन लादेन को मारे जाने ने इसकी फिर से पुष्टि की है.

दक्षिण जर्मनी के रेगेंसबुर्ग से प्रकाशित दैनिक मिटेलबायरिशे त्साइटुंग ने ओसामा बिन लादेन की मौत पर टिप्पणी करते हुए लिखा है

अब तक संदेह ही था कि मुल्क की ताकतवर शक्तियां आतंकवाद को प्रश्रय दे रही हैं, लेकिन बिन लादेन का मामला बहुत से विशेषज्ञों के इस बयान का सबूत है कि अफगानिस्तान में युद्ध कर अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कभी नहीं जीती जा सकती. जिसे और सबूतों की जरूरत है, उसे सोचना चाहिए कि अमेरिका महीनों से पाकिस्तानी क्षेत्र में ड्रोन से कार्रवाई क्यों कर रहा है.

तस्वीर: dapd

कोलोन के दैनिक कोएल्नर श्टाट अनत्साइगर ने अमेरिका की विशेष टुकड़ी नेवी सील के कमांडो द्वारा अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मारे जाने पर टिप्पणी करते हुए कहा है

आतंकी सरगना बिन लादेन को मारने में अमेरिकी नेवी सील का पाकिस्तान की संप्रभुता को नजरअंदाज करना आग में घी डालने जैसा है. अमेरिकी सेना के नजरिए से पाकिस्तानी सहयोगियों को अभियान के बारे में न बताना समझ में आने वाली बात लगती है, लेकिन यह फैसला भारी राजनीतिक गलती साबित हो सकती है. ताजा घटना दस साल के आतंकवाद विरोधी संघर्ष में, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है, नागरिक सरकार के लिए जीत साबित हो सकती थी. यह नागरिक समाज के लिए महत्वपूर्ण संकेत होता कि निर्वाचित सरकार जिहादियों और उनके वर्दी वाले समर्थकों के सामने झुकने को तैयार नहीं है.

लेकिन फ्रायबुर्ग के दैनिक बाडिशे त्साइटुंग का कहना है कि इस्लामाबाद की सरकार अभूतपूर्व रूप से शर्मशार हुई है.

यदि यह सच है कि अल कायदा का नंबर एक बिना पता चले सालों तक महत्वपूर्ण सैनिक अकादमी के साए में छुप सकता है तो इस नाकामी के लिए जनरलों के सामने एकमात्र विकल्प इस्तीफा है. यदि उन्होंने बिन लादेन को छुपाया है तो इस परमाणु सत्ता के सैनिक अधिकारियों ने सालों तक पूरी दुनिया को बेवकूफ बनाया है, जो और भी बुरा है. इसके अलावा इन जनरलों ने अपनी जनता और अपने सैनिकों को भी धोखा दिया है जिन्होंने अल कायदा के खिलाफ संघर्ष में भारी कुर्बानी दी है.

तस्वीर: The White House, Pete Souza/AP

बर्लिन के दैनिक टागेस्श्पीगेल ने ओसामा बिन लादेन को मारे जाने के समय पर टिप्पणी की है.

अमेरिका और नाटो जुलाई में हर हालत में सैनिकों की वापसी शुरू करना चाहते थे और 2014 तक प्रांतों की जिम्मेदारी बारी बारी से अफगानों को सौंपना चाहते थे.बिन लादेन की हत्या ने इसे आसान कर दिया है. ओबामा कह सकते हैं, "मिशन पूरा हुआ." सुरक्षा के मोर्चे पर कुछ नहीं बदला है. पाकिस्तान का दुहरा खेल अब उससे भी अधिक घिनौना दिखता है जितना पश्चिम में यूं भी सोचा जा रहा था. कौन विश्वास करेगा कि सरकार और खुफिया सेवा को बिन लादेन के छुपे होने की खबर नहीं थी. इलाका विस्फोटक बना हुआ है, खाली वापसी आसान हो गई है.

म्यूनिख के दैनिक म्युंचनर मैरकुअर का कहना है कि पाकिस्तान में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है.

इराक और अफगानिस्तान के युद्धों ने सिखाया है कि जीत बमों और रॉकेटों से हासिल नहीं की जा सकती. पाकिस्तान में तो कतई नहीं. गहन संरचनात्मक सुधारों की जरूरत है और उससे भी गहन भरोसा दिलाने की. यह काम एक ऐसे देश में मुश्किल होगा जहां अल कायदा के समर्थक सत्ता में हैं और सत्ता संरचना तालिबान की मदद करती है. यदि आतंकवाद को जड़ से मिटाना है तो इस चुनौती का सामना करना होगा, लेकिन नागरिक साधनों से.

रिपोर्ट: अना लेमन/मझा

संपादन: ए कुमार

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