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कल भारी न पड़े आज की यात्रा

१७ अगस्त २०१३

वैश्वीकरण के साथ दुनिया में कोई भी दूरी इतनी कम हो गई कि जब चाहे, जहां चाहे बस्ता उठा कर जाना मामूली बात है. सफर करने वालों को जरा भी अंदाजा नहीं कि उनकी यात्रा पर्यावरण को कैसे जख्मी कर रही है.

तस्वीर: Fotolia/Vitas

परिवहन के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान में 90 फीसदी हिस्सेदारी सड़क परिवहन और हवाई जहाजों की है. नॉर्वे में हुई एक रिसर्च में पता चला कि सैर सपाटे में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों में जर्मनी के उच्च और मध्य वर्गीय पर्यटकों का हाथ सबसे आगे हैं.

ओस्लो के सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्लाइमेट एंड एनवायरमेंटल रिसर्च (सिसेरो) की रिसर्च के मुताबिक यात्रा करने के मामले में जर्मन दुनिया में सबसे आगे हैं. औसतन दुनिया भर के लोग जितनी हवाई यात्रा करते हैं, जर्मन उनसे पांच गुना ज्यादा उड़ते हैं. जर्मनी के सबसे समृद्ध 10 फीसदी लोग पर्यटन के कारण हो रहे पर्यावरण परिवर्तन के 20 फीसदी जिम्मेदार हैं. सिसेरो के अनुसार एक लंबी हवाई यात्रा में एक यात्री के कारण होने वाला प्रदूषण उतना ही है जितना कि एक मोटरबाइक चलाने वाला दो महीने में करता है.

तस्वीर: Reuters

दूरगामी प्रभाव

जर्मनी की एबेर्सवाल्डे यूनिवर्सिटी की लेक्चरर डोर्थे बायर कहती हैं कि जर्मन लोगों के बीच कारें यातायात का पसंदीदा साधन हैं. बसों और ट्रेनों की बारी तो बहुत बाद में आती है. कार्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन पर आधारित शोध भी ऐसे ही आंकड़े देते हैं. हवाई जहाज प्रदूषण के सबसे बड़े कारक हैं. बायर कहती हैं कि ट्रेनों और बसों का नंबर तो इसलिए भी बाद में आता है क्योंकि इनकी संख्या कारों के मुकाबले कम है और नई गाड़ियों को पर्यावरण का ख्याल रखते हुए भी बनाया जा रहा है.(पर्यावरण सुरक्षा पर सब्सिडी)

समुद्री यात्राओं का असर

हाल ही में जर्मन संरक्षण संस्था एनएबीयू ने पानी के जहाजों के कारण पारिस्थितिकीय तंत्र पर पड़ने वाले असर की जांच की. जर्मन ट्रैवेल असोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ 2011 से 2012 के बीच ही क्रूज पर समुद्री यात्रा करने वाले जर्मन 11 फीसदी बढ़े हैं. एनएबीयू ने डॉयचे वेले को बताया कि उन्होंने मौजूदा जहाजों के साथ उन जहाजों की भी जांच की जो 2016 तक पानी पर उतारे जाने हैं. जांच में पता चला कि बहुत कम ही कंपनियां हैं जो जहाज में सही उत्सर्जन व्यवस्था जैसी बातों पर ध्यान देती हैं. ऑटोमोबाइल उद्योग में जहां वाहनों में फिल्टर लगाया जाता है वहीं पानी के जहाज अभी भी इसमें काफी पीछे हैं. पानी के जहाज भारी मात्रा में कार्बन डाइ आक्साइड का उत्सर्जन भी करते हैं. हालांकि अब इनका इस्तेमाल सिर्फ छोटी मोटी यात्राओं के लिए ही किया जाता है. लेकिन इनके कारण होने वाला प्रदूषण चिंता का विषय तो है ही.

तस्वीर: Michael Schütze/Fotolia

टिकाऊ विकल्प

टिकाऊ संसाधनों पर आधारित पर्यटन से मतलब ऐसे टूरिज्म से है जिससे पर्यावरण को कम नुकसान हो. इन दिनों कुछ पर्यटन कंपनियां इस तरह के कार्यक्रमों को बढ़ावा भी दे रही हैं. जर्मनी की रेल कंपनी डॉयचे बान भी इन दिनों इस बात का खूब विज्ञापन कर रही है. बायर के अनुसार पिछले 15-20 सालों में लोगों की सोच में भी परिवर्तन आया है. पर्यावरण के प्रति जागरुकता बढ़ी है. लोग पर्यावरण संरक्षण में मदद करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. लेकिन समाज का एक बड़ा हिस्सा अभी भी इससे जुड़ा नहीं है. एनएबीयू के ओएलिगर का सुझाव है कि लोग अगर साइकिल चलाने में दिलचस्पी दिखाएं तो यह अच्छी बात होगी. यह भी तो हो सकता है कि अगर यात्रा के लिए हवाई जहाज बेहद जरूरी है तो आम दिनों में साइकिल चलाकर या कार की जगह बस या ट्रेन लेकर किसी दूसरे रूप में उसकी भरपाई की जा सके.

रिपोर्ट: मिशआएल लॉटन/एसएफ

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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