कश्मीर में जारी हिंसा में घायल ज्यादातर लोगों की आंखों में चोट लगी है. लेकिन क्यों? क्योंकि पुलिस ऐसी रबर की गोलियां चला रही है जो आंखें फोड़ देती हैं.
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भारत के कश्मीर में जारी हिंसा में अब तक 35 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. इन घायलों में 120 की हालत गंभीर है और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इन 120 घायलों में से 100 की आंखों में चोट लगी है. श्रीनगर के एसएमएचएस अस्पताल के डॉक्टरों ने इस बात की पुष्टि की है कि 100 लोगों की आंखों में चोट लगी है. श्रीनगर में जब भी सुरक्षाबलों और लोगों की हिंसक झड़पें होती हैं तो ज्यादातर लोगों की आंखों में चोट लगती है. इसकी वजह हैं वे रबर की गोलियां जो पुलिस भीड़ पर चलाती है.
एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हमारे पास 70 मामले ऐसे हैं जिनमें आंखों पर गंभीर चोट लगी है. उनकी आंखों की रोशनी भी जा सकती है." इस नेत्र रोग विशेषज्ञ ने बताया कि श्रीनगर में ऐसे विशेषज्ञों की बहुत कमी है जो इन लोगों की आंखों पर लगीं चोटों का इलाज कर सकें.
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि कश्मीर में डॉक्टर भेजें. उन्होंने प्रधानमंत्री के नाम एक ट्वीट किया, "कृपया कुछ नेत्र रोग विशेषज्ञों को कश्मीर भेजिए. अब लोगों के जख्मों को सहलाने का वक्त है."
घायल हुए ज्यादातर लोगों में या तो युवा हैं या फिर कमउम्र लड़के. हालांकि डॉ़क्टरों का कहना है कि ज्यादातर घायल खतरे से बाहर हैं. राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है. उन्होंने कहा है कि उन पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी जिन्होंने जनता के खिलाफ अतिश्य बल प्रयोग किया है.
एसएमएचएस अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में 72 बिस्तर हैं और सभी पर इस वक्त ऐसे मरीज हैं जिन्हें हाल की हिंसा में चोट लगी है. कई बिस्तरों पर तो दो-दो लोग हैं. इनमें बहुत सारे अवयस्क भी हैं. 12 साल की एक बच्ची भी है. इन सभी को समय पर सही इलाज मुहैया कराने के लिए अस्पाल प्रशासन को पहले से भर्ती मरीजों को जल्दी छुट्टी देनी पड़ी. कुछ मरीजों को दूसरे विभागों में भेजा गया.
एक डॉक्टर सज्जाद खांडे ने भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "लगातार ऐसे मरीज आ रहे हैं जिनकी आंखें रबर की गोलियों से घायल हुई हैं." डॉक्टर बताते हैं कि रबर की गोलियों से लगने वाली आंखों की इस चोट का नुकसान स्थायी होता है. पुलिस 2010 से प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ये गोलियां इस्तेमाल कर रही है. पुलिस जनता के खिलाफ घातक हथियारों का इस्तेमाल नहीं कर सकती. लेकिन इन हथियारों को घातक न मानकर ही प्रयोग किया जा रहा है. लेकिन इस हफ्ते हुई हिंसा में जिस स्तर पर रबर की गोलियां इस्तेमाल हुई हैं, ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया. डॉक्टर कहते हैं कि पहले कभी इतने मरीज एक साथ आंखों पर चोट खाकर नहीं आए थे.
दुनिया की सबसे कड़ी सीमाएं
धरती के सीने पर खींची गई सरहदें कई बार देशों के साथ साथ दिलों को भी बांट देती हैं. दुनिया के कुछ ऐसे ही कठोर बॉर्डर...
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Sultan
पाकिस्तान-भारत: 'लाइन ऑफ कंट्रोल'
1947 में ब्रिटिश शासकों से मिली आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध 1949 तक चला था. तभी से कश्मीर इलाके को दोनों देशों के बीच एक लाइन ऑफ कंट्रोल से बांटा गया. मुस्लिम-बहुल आबादी वाला पाकिस्तान अधिशासित हिस्सा और हिन्दू, बौद्ध आबादी वाला भारत का कश्मीर. इस लाइन के दोनों ओर पूरे कश्मीर को हासिल करने का संघर्ष आज भी जारी है. 1993 से अब तक यहां हुई हिंसा में 43,000 लोग मारे जा चुके हैं.
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सर्बिया-हंगरी: बाल्कन रूट के केंद्र में
2015 के शरणार्थी संकट के प्रतीक बन चुके हैं ऐसे दृश्य. सर्बिया और हंगरी के बीच बिछी रेल की पटरियों पर चलकर यूरोप में आगे का सफर करते लोग. सितंबर में इस क्रासिंग को बंद कर दिया गया लेकिन यूरोप के भीतर खुली सीमा होने के कारण ऐसे और रूटों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
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कोरिया का अंधा पुल
पिछले 62 सालों से दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच की सीमा बंद है और उस पर कड़ा सैनिक पहरा रहता है. दक्षिण कोरिया की तरफ से जाते हुए अगर आपको ऐसा साइन बोर्ड दिखे तो वहां से आगे बढ़ने के बाद आप वापस इस तरफ नहीं आ सकेंगे. 1990 के दशक के अंत से करीब 28,000 उत्तर कोरियाई अपनी सीमा पार कर दक्षिण कोरिया में आ चुके हैं.
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अमेरिका-मैक्सिको का लंबा बॉर्डर
मैक्सिको से लगी इस सीमा को अमेरिकी "टॉर्टिया वॉल" कहते हैं. यहां दीवार और बाड़ खड़ी कर करीब 1126 किलोमीटर लंबा बॉर्डर खड़ा किया गया है. पूरी पृथ्वी में इतनी कड़ी निगरानी वाली कोई दूसरी सीमा नहीं है. यहां करीब 18,500 अधिकारी बॉर्डर सुरक्षा में तैनात हैं.
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हर दिन 700 को देश निकाला
कड़ी सुक्षा व्यवस्था के बावजूद गैरकानूनी तरीके से मैक्सिको से अमेरिका जाने वाले प्रवासियों की संख्या काफी बड़ी है. केवल 2012 में ही लगभग 67 लाख लोगों ने सीमा पार की. हर दिन ऐसी कोशिश करने वाले करीब 700 लोग मैक्सिको वापस लौटाए जाते हैं.
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मोरक्को-स्पेन: गरीबी और गोल्फ कोर्स
मोरक्को से लगे स्पेन के दो एन्क्लेव मेलिया और सिउटा को लोग यूरोप पहुंचने का रास्ता मानते हैं. अफ्रीका के कई देशों से लोग अच्छे जीवन की तलाश में इसी तरफ से यूरोप पहुंच कर शरण मांगने की योजना बनाते हैं. कई लोग सीमा पर बड़ी बाड़ों को चढ़ कर पार करने की कोशिश करते हैं.
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ब्राजील-बोलीविया: हरियाली किधर?
उपग्रह से मिले चित्र दिखाते हैं कि वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण ब्राजील के अमेजन के जंगल काफी कम हो गए हैं. पिछले पचास सालों में जंगलों के क्षेत्रफल में करीब 20 फीसदी कमी आई है. हालांकि अब बोलीविया में भी वनों की कटाई एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है.
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हैती-डोमिनिक गणराज्य: एक द्वीप, दो विश्व
देखिए एक ही द्वीप पर स्थित दो देश इतने अलग भी हो सकते हैं. डोमिनिक गणराज्य पर्यटकों की पसंद रहा है जबकि हैती दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल है. बेहतर जीवन की तलाश में हैती से कई लोग डोमिनिक गणराज्य जाना चाहते हैं. बढ़ती मांग को देखते हुए 2015 में डोमिनिक गणराज्य ने आप्रवास के नियम सख्त किए हैं. तबसे करीब 40,000 हैतीवासी अपने देश वापस लौटे हैं.
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मिस्र-इस्राएल: एक तनावपूर्ण शांति
एक ओर रेगिस्तान तो दूसरी ओर घनी आबादी - यह सीमा मिस्र की मुस्लिम-बहुल और इस्राएल की यहूदी-बहुल आबादी के बीच खिंची है. करीब 30 सालों से चली आ रही शांति के बाद हाल के समय में सीमा पर कुछ हिंसक वारदातों और कड़ी सैनिक निगरानी की खबर आई है. 2013 के अंत तक इस्राएल ने इस सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा कर लिया था.
तस्वीर: NASA/Chris Hadfield
तीन देश, एक सीमा
दुनिया के कुछ हिस्सों में सीमाओं पर कोई दीवार, बाड़ या सैनिक निगरानी नहीं होती. जर्मनी, ऑस्ट्रिया और चेक गणराज्य की इस सीमा पर एक तीन-तरफा पत्थर इसका सूचक है. शेंगेन क्षेत्र के इन तीनों देशों के बीच खुली सीमाएं हैं. फिलहाल शरणार्थी संकट के चलते यहां अस्थाई बॉर्डर कंट्रोल लगाना पड़ा है.
तस्वीर: Wualex
इस्राएल-वेस्ट बैंक: पत्थर की दीवार
साल 2002 से इस 759 किलोमीटर लंबी सीमा पर विवादित दीवारें और बाड़ें बनाई गई हैं. येरुशलम के इस घनी आबादी वाले क्षेत्र (तस्वीर) में दोनों के बीच कंक्रीट की नौ मीटर ऊंची दीवार बनाई गई है. 2004 में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने फलिस्तीनी क्षेत्र में दीवार खड़ी करने को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Sultan
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रबर की गोलियां 5 से 12 तक की रेंज में आती हैं. 5 की रेंज वाली गोली सबसे ज्यादा खतरनाक होती है और उसका नुकसान सबसे ज्यादा होता है. आमतौर पर भीड़ को काबू करने के लिए 9 नंबर को प्राथमिकता दी जाती है. लेकिन कई बार पुलिस ज्यादा मुश्किल स्थिति में 6 या 7 नंबर भी प्रयोग करती है.
खांडे ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "रबर की ये गोलियां जान नहीं लेतीं. यानी मरेगा कोई नहीं. इसलिए पुलिस को कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन एक बार किसी नौजवान की एक या दोनों आंखों की रोशनी चली गई तो उसकी जिंदगी मौत से बदतर हो जाएगी."