पुलवामा वारदात के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में पढ़ाई के लिए गए कश्मीरी छात्र-छात्राओं को डराने धमकाने और उन पर हमले की खबरें मिली हैं.
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पुलवामा वारदात के बाद कश्मीरी छात्र-छात्राओं को डराने धमकाने और उनके खिलाफ प्रदर्शन की खबरें मिली हैं. विभिन्न राज्यों की पुलिस का दावा है कि उन्हें पूरी सुरक्षा दी जा रही है, वहीं सीआरपीएफ ने भी मदद के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं.
मीडिया में आई कुछ खबरों के मुताबिक उत्तराखंड की राजधानी देहरादून, हरियाणा और राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों के उच्च, तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा से जुड़े निजी शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थानों और निजी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे कश्मीरी छात्र पुलवामा कांड के बाद से दहशत में हैं. उनके खिलाफ प्रदर्शन और संस्थानों के घेराव की खबरें मिली हैं. सैकड़ो छात्र देहरादून में जम्मू कश्मीर के विभिन्न इलाकों से शिक्षा ग्रहण करने आते हैं. इन डिग्रियों के लिए महंगी फीस चुकाकर घर से दूर, अलग हालात में वे रहते आए हैं.
देहरादून के शिक्षण संस्थानों में प्रदर्शन और छात्रों के डर को लेकर परस्पर विरोधी खबरें भी आई हैं. पुलिस का दावा है कि जिले में कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है और छात्रों को उचित सुरक्षा दी गई है, लेकिन कथित प्रदर्शनों और हंगामे से उनमें डर तो बैठा ही है. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि पुलवामा घटना पर एक छात्र के विवादास्पद सोशल मीडिया संदेश से ये मामला भड़का. हालांकि इस बारे में स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पाई है. पुलिस ने कहा है कि किसी को भी कानून हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
मीडिया खबरों के मुताबिक इक्का दुक्का संस्थानों से ये लिखवा लिया गया कि वे आइंदा अपने यहां कश्मीरी छात्रों को दाखिला नहीं देंगे. ये तात्कालिक दबाव में हुआ या इसका कोई दूरगामी परिणाम होगा, कहना मुश्किल है लेकिन इससे कश्मीरी छात्रों और छोटे व्यवसाइयों के लिए उधर कुआं इधर खाई जैसे हालात बने हैं. राजस्थान और हरियाणा में भी कुछ शिक्षण संस्थानों से छात्रों की शिकायतें मीडिया में आई हैं. कुछ कश्मीरी छात्राओं पर कथित भड़काऊ वॉट्सऐप या फेसबुक पोस्ट डालने के आरोप भी लगे हैं और मुकदमे भी दर्ज कर दिए गए हैं.
पुलवामा जैसी जघन्य वारदात की आड़ में अनर्गल बयानबाजी, अफवाहों और भड़काऊ टिप्पणियों का सिलसिला चल पड़ता है और पुलिस और प्रशासन को और अधिक सतर्क हो जाना पड़ता है. इसीलिए सरकार ने मीडिया एडवाइजरी भी जारी की थी. सोशल मीडिया में तो मानो अघोषित युद्ध का सा आभास दिया जा रहा है. लगता है कि शोक, उदासी, अफसोस और नाराजगी में डूबे माहौल के बीच कुछ प्रकट-प्रछन्न ताकतें राजनीतिक लाभ उठा लेना चाहती हैं. वरना सवाल सिर्फ कश्मीरी छात्रों को कथित रूप से खदेड़ने का नहीं आता- सुरक्षा चूक, जवानों के हालात, उन्हें मुहैया साजोसामान और इंटेलिजेंस और सुरक्षा बलों की कार्य, वेतन और पेंशन विसंगतियों के सवाल भी मजबूती से उठाए जाते.
दूसरी ओर, कश्मीरी छात्र-छात्राओं के दिलोदिमाग से डर निकालना, और उन्हें भरोसा जगाना सिर्फ पुलिस और सीआरपीएफ जैसे बलों का ही दायित्व नहीं है, बल्कि राजनीतिक दलों और नेताओं को भी आगे आना चाहिए, स्वयंसेवी संस्थाओं और शहरों के विशिष्ट जन को भी अपील करनी चाहिए. सोशल मीडिया पर शांति और सौहार्द को बढ़ाने वाला माहौल बनाना चाहिए और दलीय कार्यकर्ताओं और नेताओं को समझना चाहिए कि वे अपनी लड़ाई राजनीतिक तौर पर ही लड़ सकते हैं, उकसावे, उन्माद और अतिरेक से नहीं. अगर कश्मीरी छात्रों को धैर्य रखने और खुद पर काबू रखने की सलाह दी जाती है तो ये सलाह किसी न किसी ढंग से उन पर गुस्सा उतारने वालों पर भी लागू होती है.
मोहल्ला कमेटियों, हाउसिंग सोसायटी और किराए पर कमरा देने वाले मकान मालिकों को भी निर्भयता से अपनी बात रखनी चाहिए. प्रिंट, प्रसारण और नया मीडिया भी अतिरेक से परहेज करे तो ये उनकी विश्वसनीयता के लिए लाभप्रद होगा. सोशल मीडिया के अलावा अधिकांश टीवी चैनलों और अखबारों की कवरेज के तरीकों पर भी बहस के बीच प्रेस काउंसिल के दिशानिर्देशों, सीआरपीएफ की अपील और सूचना प्रसारण मंत्रालय की मीडिया एडवाइजरी की अनदेखी को लेकर भी चिंताएं और सवाल उठे हैं. किसी भी घटना की प्रामाणिकता जांचे बिना उस पर प्रतिक्रिया न करने का सब्र रखना भी आज के समय में एक कठिन इम्तहान है.
शिक्षा और रोजगार के लिए इंटरस्टेट माइग्रेशन स्वाभाविक है लेकिन एक दूसरे के प्रति बेरुखी रही तो एक राज्य से दूसरे राज्य में आना जाना और एक ही जगह पर पड़ोसी बन कर रहना भी दूभर और खतरनाक हो जाएगा. संदेह, अविश्वास, नफरत और हिंसा ऐसे ही नाजुक मौकों पर पनपते हैं लेकिन ध्यान रहे कि प्रेम, भरोसा, एकजुटता और भाईचारा भी ऐसे ही नाजुक मौकों के लिए बने होते हैं.
कश्मीर मुद्दे की पूरी रामकहानी
आजादी के बाद से ही कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक फांस बना हुआ है. कश्मीर के मोर्चे पर कब क्या क्या हुआ, जानिए.
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1947
बंटवारे के बाद पाकिस्तानी कबायली सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया तो कश्मीर के महाराजा ने भारत के साथ विलय की संधि की. इस पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया.
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1948
भारत ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया. संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 47 पास किया जिसमें पूरे इलाके में जनमत संग्रह कराने की बात कही गई.
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1948
लेकिन प्रस्ताव के मुताबिक पाकिस्तान ने कश्मीर से सैनिक हटाने से इनकार कर दिया. और फिर कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया गया.
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1951
भारतीय कश्मीर में चुनाव हुए और भारत में विलय का समर्थन किया गया. भारत ने कहा, अब जनमत संग्रह का जरूरत नहीं बची. पर संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तान ने कहा, जनमत संग्रह तो होना चाहिए.
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1953
जनमत संग्रह समर्थक और भारत में विलय को लटका रहे कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्लाह को गिरफ्तार कर लिया गया. जम्मू कश्मीर की नई सरकार ने भारत में कश्मीर के विलय पर मुहर लगाई.
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1957
भारत के संविधान में जम्मू कश्मीर को भारत के हिस्से के तौर पर परिभाषित किया गया.
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1962-63
चीन ने 1962 की लड़ाई भारत को हराया और अक्साई चिन पर नियंत्रण कर लिया. इसके अगले साल पाकिस्तान ने कश्मीर का ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट वाला हिस्सा चीन को दे दिया.
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1965
कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ. लेकिन आखिर में दोनों देश अपने पुरानी पोजिशन पर लौट गए.
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1971-72
दोनों देशों का फिर युद्ध हुआ. पाकिस्तान हारा और 1972 में शिमला समझौता हुआ. युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा बनाया गया और बातचीत से विवाद सुलझाने पर सहमति हुई.
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1984
भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण कर लिया, जिसे हासिल करने के लिए पाकिस्तान कई बार कोशिश की. लेकिन कामयाब न हुआ.
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1987
जम्मू कश्मीर में विवादित चुनावों के बाद राज्य में आजादी समर्थक अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ. भारत ने पाकिस्तान पर उग्रवाद भड़काने का आरोप लगाया, जिसे पाकिस्तान ने खारिज किया.
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1990
गवकदल पुल पर भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 100 प्रदर्शनकारियों की मौत. घाटी से लगभग सारे हिंदू चले गए. जम्मू कश्मीर में सेना को विशेष शक्तियां देने वाले अफ्सपा कानून लगा.
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1999
घाटी में 1990 के दशक में हिंसा जारी रही. लेकिन 1999 आते आते भारत और पाकिस्तान फिर लड़ाई को मोर्चे पर डटे थे. कारगिल की लड़ाई.
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2001-2008
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की कोशिशें पहले संसद पर हमले और और फिर मुबई हमले समेत ऐसी कई हिंसक घटनाओं से नाकाम होती रहीं.
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2010
भारतीय सेना की गोली लगने से एक प्रदर्शनकारी की मौत पर घाटी उबल पड़ी. हफ्तों तक तनाव रहा और कम से कम 100 लोग मारे गए.
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2013
संसद पर हमले के दोषी करार दिए गए अफजल गुरु को फांसी दी गई. इसके बाद भड़के प्रदर्शनों में दो लोग मारे गए. इसी साल भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मिले और तनाव को घटाने की बात हुई.
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2014
प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ गए. लेकिन उसके बाद नई दिल्ली में अलगाववादियों से पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाकात पर भारत ने बातचीत टाल दी.
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2016
बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में आजादी के समर्थक फिर सड़कों पर आ गए. अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और गतिरोध जारी है.
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2019
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में 46 जवान मारे गए. इस हमले को एक कश्मीरी युवक ने अंजाम दिया. इसके बाद परिस्थितियां बदलीं. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है.
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2019
22 जुलाई 2019 को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दावा किया की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मुद्दे को लेकर मध्यस्थता करने की मांग की. लेकिन भारत सरकार ने ट्रंप के इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बातचीत से ही सुलझेगा.
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2019
5 अगस्त 2019 को भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक संशोधन विधेयक पेश किया. इस संशोधन के मुताबिक अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाएंगे. जम्मू कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. लद्दाख को भी एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. धारा 35 ए भी खत्म हो गई है.