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कश्मीरी पंडितों की घाटी में होमलैंड की मांग

७ फ़रवरी २०११

कश्मीर में पृथकतावादी आंदोलन के कारण दो दशकों से निर्वासन में रह रहे कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर घाटी में झेलम नदी के पूर्वोत्तर में अपने लिए होमलैंड बनाने की मांग की है.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

जम्मू कश्मीर विवाद पर भारत सरकार के नियुक्त किए तीन वार्ताकारों में से एक दिलीप पटगांवकर के साथ एक टेलिकॉन्फ्रेंस में कश्मीरी पंडितों के ग्लोबल संगठन ने कहा कि उनके समुदाय को समाप्त होने से बचाने का यह एकमात्र विकल्प है.

पटगांवकर के साथ एक घंटे तक चले टेलिकॉन्फ्रेंस में अमेरिका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और भारत से आए लगभग साढ़े चार सौ कश्मीरी पंडितों ने भाग लिया. दिलीप पटगांवकर ने कहा कि कश्मीरी पंडितों की आदर और सम्मान के साथ घर वापसी वार्ताकारों की उच्च प्राथमिकता है.

कश्मीरी पंडितों के सम्मेलन का संचालन कैलिफोर्निया के जीवन जुत्शी ने किया जो अंतरराष्ट्रीय कश्मीर संघ के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने कहा कि 1990 में और उसके बाद अपने घरों से भागने को मजबूर किए गए कश्मीरी पंडित बेघर हो गए हैं और उनके विलुप्त हो जाने का खतरा है.

जुत्शी ने कहा, "यह भारत सरकार के लिए कश्मीरी पंडितों के लिए होमलैंड बनाने का मौका है जो धार्मिक आधार पर नहीं बनेगा, यह ऐसी जगह होगा जहां फिर से सभी धर्मनिरपेक्ष कश्मीरी रह पाएंगे, कश्मीरियत को पुनर्जीवित कर पाएंगे तथा सूफी और शैव परंपरा के अलावा सहिष्णुता को बढ़ावा दे पाएंगे."

टेक्सास के सुरिंदर कौल ने कहा, "ग्लोबल कश्मीरी पंडित समुदाय को झेलम नदी के पूर्वोत्तर में केंद्र शासित प्रदेश की हैसियत वाला होमलैंड बनाने की मांग पर बाध्य होना पड़ा है." उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में भरोसा रखने वाले मुस्लिम सहित सभी धर्मों के लोग यहां रह पाएंगे.

ब्रिटेन के कृष्ण भान ने कहा कि 1990 में कश्मीर घाटी में चरमपंथ की शुरुआत के बाद 4 लाख कश्मीरी पंडितों को अपना घरबार छोड़कर भागना पड़ा. उन्होंने कहा कि विशिष्ट संस्कृति वाले विस्थापित समुदाय को नष्ट होने से बचाने की जरूरत है.

रिपोर्ट: पीटीआई/महेश झा

संपादन: एन रंजन

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