कश्मीर के जिन नेताओं को केंद्र ने हाल तक जेल में बंद रखा हुआ था उन्हें बातचीत का मंच देकर घाटी को कुछ संकेत तो दिए गए हैं. लेकिन क्या इस बातचीत से कश्मीर के हालात में कोई बुनियादी फर्क आने की संभावना है?
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दिल्ली में प्रधानमंत्री के निवास पर केंद्र और कश्मीर के नेताओं के बीच हुई बातचीत करीब साढ़े तीन घंटे चली, लेकिन दोनों पक्षों के बीच कश्मीर के भविष्य के लिए आवश्यक कार्य योजना पर सहमति नहीं बन पाई. कश्मीरी नेताओं ने बैठक में पांच अगस्त 2019 के बाद से कश्मीर में उठाए कदमों को लेकर अपनी निराशा और कश्मीर और उसके लोगों के भविष्य को लेकर अपनी चिंताएं केंद्र के साथ साझा कीं.
सभी पार्टियों ने अपनी अपनी मांगें भी रखी, हालांकि एक सुर में नहीं. कांग्रेस ने पांच मांगें रखीं - राज्य के दर्जे की जल्द बहाली, जल्द विधान सभा चुनाव, स्थानीय लोगों को नौकरी, संपत्ति और अधिवास को लेकर आश्वासन, कश्मीरी पंडितों का पुनर्वासन और सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई. पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने परिसीमन का विरोध किया लेकिन यह भी कहा उनकी पार्टी अगर परिसीमन आयोग के निमंत्रण पर विचार करेगी.
पहले चुनाव या राज्य के दर्जे की बहाली?
पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने अनुच्छेद 370 की बहाली, नियंत्रण रेखा के रास्ते व्यापार फिर से शुरू करने और कश्मीर में हो रही केंद्र की सख्ती को खत्म करने की मांग की. बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो ट्वीट किए उनसे जाहिर होता है कि केंद्र ने कश्मीर के राज्य के दर्जे की बहाली का आश्वासन तो दिया लेकिन जोर परिसीमन पर ही रहा.
और यही दोनों पक्षों के बीच असहमति की जड़ है. केंद्र चाह रहा है कि पहले चुनाव हों और उसके बाद राज्य के दर्जे की बहाली, जबकि कश्मीरी पार्टियों की मांग है कि पहले राज्य का दर्जा बहाल हो और फिर चुनाव हों. कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस पर टिप्पणी करते हुए ट्वीट किया कि घोड़ा गाड़ी को खींचता है, ना कि गाड़ी घोड़े को.
लेकिन घोड़ा और गाड़ी के बीच इस बहस में कश्मीर की राजनीति का सबसे विवादास्पद पहलु कहीं खो गया. विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को बहाल करने के सवाल पर ना तो कश्मीरी पार्टियों ने एक सीमा के आगे जोर लगाया और ना केंद्र ने कोई तत्परता दिखाई. बल्कि बैठक के बाद गुलाम नबी आजाद ने मीडिया को बताया कि वहां मौजूद 14 पार्टियों में से अधिकांश का मानना था कि उचित यही होगा कि मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के नतीजे के आने का इंतजार किया जाए.
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अनुच्छेद 370 का सवाल
सिर्फ मुफ्ती ने मीडिया को बताया कि उन्होंने 370 पर जोर दिया और कहा कि उस पर कोई समझौता नहीं होगा. जानकारों का मानना है कि इस बैठक और उसमें हुई बातचीत की अहमियत बस इतनी है कि कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत हुई. श्रीनगर के वरिष्ठ पत्रकार रियाज वानी मानते हैं कि मूलभूत रूप से कुछ बदला नहीं है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि बैठक से संकेत यही मिले हैं कि केंद्र परिसीमन के अपने एजेंडा पर ही आगे बढ़ेगा और अगर राज्य का दर्जा बहाल किया भी जाता है तो भी असली ताकत केंद्र अपने पास ही रखेगा.
अब देखना होगा कि बातचीत की शुरुआत करने के बाद केंद्र का अगल कदम क्या होता है. कश्मीरी पार्टियों में एनसी के अगले कदम का भी इंतजार करना होगा क्योंकि सिर्फ उसी के तीन सांसद परिसीमन आयोग का हिस्सा हैं. अभी तक तीनों सांसद आयोग की बैठक में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन देखना होगा कि दिल्ली में हुई बैठक के बाद उनके रुख में बदलाव आता है या नहीं.
कहानी पुलित्जर जीतने वाले भारतीय फोटो पत्रकारों की
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के तीन भारतीय फोटोग्राफरों ने प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार जीता है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पाबंदियों के बीच उन्होंने आखिर कैसे खींची और भेजीं तस्वीरें?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Khan
"चूहा-बिल्ली" का खेल
"ये हमेशा चूहा-बिल्ली का खेल था" - एसोसिएटेड प्रेस के फोटोग्राफर डार यासीन ने अगस्त 2019 में कश्मीर में लागू हुई तालाबंदी की कहानियों को तस्वीरों में कैद करने के तजुर्बे को कुछ यूं बयान किया है. यासीन और उनके दो और सहयोगियों मुख्तार खान और चन्नी आनंद को इस दौरान जम्मू और कश्मीर में खींची गई तस्वीरों के लिए 2020 के फीचर फोटोग्राफी के पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया है. देखिये इनमें से कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
घोषणा
अगस्त में जम्मू में एक इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की दुकान पर टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनते लोग. 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
विरोध
अगस्त में श्रीनगर में कर्फ्यू के बीच अर्धसैनिक बल के जवानों पर दूर से पत्थर फेंकता एक प्रदर्शनकारी. श्रीनगर में एपी के फोटोग्राफर मुख्तार खान और यासीन डार को प्रदर्शनकारियों और सेना के जवानों दोनों का ही अविश्वास झेलना पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
पहरा
अगस्त में श्रीनगर में कंटीली तारों से बंद एक सुनसान सड़क पर पहरा देता एक सुरक्षाकर्मी. श्रीनगर में खान और यासीन कई बार कई दिनों तक घर नहीं लौट पाते थे और अपने परिवारों तक अपनी खबर भी नहीं पहुंचा पाते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
बंदूकें और बूट
पिछले साल अगस्त में श्रीनगर में तालाबंदी के दौरान ड्यूटी पर तैनात दो सुरक्षाकर्मी. खान और यासीन अपनी खींची हुई तस्वीरें दिल्ली ऑफिस तक पहुंचाने के लिए एयरपोर्ट पर अनजान यात्रियों से अपील करते थे. कुछ यात्री डर कर अपील ठुकरा देते थे तो कुछ मान लेते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
नमाज
अगस्त 2019 में जम्मू में मस्जिद में ईद पर नमाज अदा करते हुए लोग. आनंद जम्मू में काम करते हैं और कहते हैं कि पुरस्कार से वो अवाक रह गए. वे बीस साल से एपी के लिए काम कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
ये कैसी ईद
अगस्त 2019 में ईद पर जम्मू में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बीच अपने रास्ते पर जाता एक मुस्लिम व्यक्ति. एपी के अध्यक्ष गैरी प्रुइट ने कहा कि इस टीम की बदौलत ही दुनिया कश्मीर में आजादी की लंबी लड़ाई में हुई एक नाटकीय तेजी देख पाई.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
वापसी
अगस्त में प्रवासी श्रमिक जम्मू और कश्मीर को छोड़ अपने अपने घर जाने के लिए जम्मू रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में बैठे हुए. कर्फ्यू और फोन और इंटरनेट के बंद होने के बावजूद ये तस्वीरें एपी के इन फोटोग्राफरों ने खींचीं और किसी तरह भेजीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
पुलिस
सितंबर 2019 में श्रीनगर में शिया प्रदर्शनकारियों पर डंडे चलाता एक पुलिसकर्मी. एपी के फोटोग्राफरों ने कभी अंजान लोगों के घर में छिप कर तो कभी कैमरों को सब्जियों के थैलों में छिपा कर तस्वीरें खींची.
तस्वीर: picture-alliance/AP/M. Khan
बंदूकों के साए में
नवंबर में श्रीनगर में एक बाजार में हुए एक विस्फोट के स्थल की जांच करता हुआ एक सुरक्षाकर्मी. यासीन कहते हैं कि उनके काम का उनके लिए पेशे-संबंधी और व्यक्तिगत दोनों मतलब है. वे कहते हैं इन तस्वीरों में सिर्फ दूसरों की नहीं बल्कि उनकी खुद की भी कहानी है.