कश्मीर को लेकर भंवर में फंसे भारत और चीन के रिश्ते?
चारु कार्तिकेय
७ अक्टूबर २०१९
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की संभावित भारत यात्रा में सिर्फ चार दिन बचे हैं और अभी तक यात्रा और उससे जुड़े सभी कार्यक्रमों की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है.
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भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के ममल्लपुरम में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच होने वाली दो दिवसीय अनौपचारिक बातचीत को लेकर तैयारियां चल रही हैं. लेकिन इन तैयारियों के बीच ही अटकलों का बाजार भी गर्म है. आधिकारिक घोषणा न होने की वजह से कुछ समीक्षक यह शंका जता रहे हैं कि शी की भारत यात्रा कहीं टल तो नहीं गई.
हाल में दोनों देशों के बीच कुछ मुद्दों को लेकर ताजा टकराव देखा गया. भारत ने जब जम्मू और कश्मीर राज्य से धारा 370 को हटा दिया और पूरे राज्य को दो हिस्सों में पुनर्गठित कर दिया तो इस मुद्दे पर चीन की तरफ से आलोचनात्मक बयान आए. पाकिस्तान तो लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस कदम की वजह से भारत की आलोचना कर ही रहा है. इस मामले में चीन का झुकाव पाकिस्तान की तरफ दिखता है. चीन का कहना है कि कश्मीर "इतिहास द्वारा छोड़ा गया विवाद" है, जिसका समाधान द्विपक्षीय वार्ता और संयुक्त राष्ट्र के प्रावधानों के जरिए शांति पूर्वक तरीके से होना चाहिए.
भारत कहता आया है कि कश्मीर में जो भी कदम उठाए गए हैं, वे भारत का अंदरूनी मामला है और उसमें किसी दूसरे देश को दखल नहीं देना चाहिए. भारत के राजनयिकों ने चीन की आशंकाओं को शांत करने की भी कोशिश की और कहा कि जम्मू और कश्मीर के पुनर्गठन का कोई भी असर भारत और चीन की सीमा पर नहीं पड़ेगा. लेकिन चीन ने अभी तक भारत के जवाबों से संतुष्ट होने का कोई भी संकेत नहीं दिया है. बल्कि, पाकिस्तान में चीन के राजदूत याओ शिंग ने कहा कि कश्मीर के मसले पर चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा है.
मोदी और शी की मुलाकात के ठीक पहले एक और मसले को लेकर दोनों देशों के बीच एक पुराना विवाद फिर छिड़ गया है. भारत पूर्वोत्तर के राज्य अरुणाचल प्रदेश में हिम-विजय नामक सैन्य अभ्यास कर रहा है और चीन ने इसको लेकर आपत्ति जताई है. चीन अरुणाचल प्रदेश को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है और अकसर इस तरह के विरोध उठाता रहता है. लेकिन एक ऐसे माहौल में दोनों देशों के शीर्ष नेता द्विपक्षीय स्तर पर मिलने वाले हैं. अरुणाचल के मुद्दे को फिर से छेड़ने का असर उस मुलाकात पर होगा या नहीं, यह देखना होगा.
ये अटकलें इसलिए भी जोर पकड़ रही हैं क्योंकि 9 सितंबर को सीमा विवाद पर दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच होने वाली मुलाकात भी टल गई थी क्योंकि चीन के विदेश मंत्री की भारत यात्रा स्थगित हो गई थी. दोनों देशों के नेताओं को और मिलना चाहिए, इस बात पर रजामंदी चीन के वूहान में पिछले साल अप्रैल में हुई बैठक में हुई थी. देखना होगा कि द्विपक्षीय रिश्तों में तल्खी के बावजूद दोनों देश "वूहान स्पिरिट" का मान रखते हैं या नहीं.
तमिलनाडु का प्राचीन बंदरगाह वाला शहर ममल्लपुरम राष्ट्रपति शी की राह देख रहा है.
पाकिस्तान और चीन अपने रिश्तों को समंदर से गहरे, हिमालय से ऊंचे, शहद से मीठे और स्टील से भी अधिक मजबूत बताते हैं. जानते हैं दोनों देशों के रिश्तों की कहानी.
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राजनयिक संबंध
साल 1951 में चीन और पाकिस्तान ने एक दूसरे के साथ राजनयिक संबंध कायम किए. तब से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच घनिष्ठ दोस्ती और रणनीतिक संबंध बने हुए हैं. पाकिस्तान, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता देने वाले पहले कुछ देशों में से एक रहा. 1960 और 1970 के दशक में जब बीजिंग का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलगाव चल रहा था, उस वक्त भी पाकिस्तान चीन का स्थिर सहयोगी बना रहा.
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ऐतिहासिक घटनाएं
ऐतिहासिक रूप से कुछ घटनाओं ने चीन और पाकिस्तान के संबंधों को मजबूत बनाया है. साल 1959 के नक्शों में पाकिस्तान का कुछ हिस्सा चीन अपनी सीमाओं में दिखाता था. इसके बाद दोनों देशों के बीच मार्च 1963 में सीमा समझौता हुआ.
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पाकिस्तान बना मध्यस्थ
1965 में भारत-पाकिस्तान विवाद में भी चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया. 1960 के दशक में जब दुनिया में अमेरिका और चीन के संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश चल रही थी तब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के सलाहकार हेनरी किसिंजर ने 1971 में पाकिस्तान होते हुए चीन की यात्रा की.
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सांस्कृतिक समझौता
साल 1965 में पाकिस्तान और चीन के बीच सांस्कृतिक समझौता हुआ. इस समझौते ने दोनों देशों के बीच गहरी साझेदारी की नींव रखी. इसी दौर में पाकिस्तानी टीवी चैनलों में चीन के, तो वहीं चीन में पाकिस्तान के नाटक और फिल्में प्रसारित होने लगीं. पाकिस्तान की एयरलाइन दुनिया की पहली ऐसी एयरलाइन थी जिसकी फ्लाइट सीधे बीजिंग तक जाती थी.
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बांग्लादेश को मान्यता
पाकिस्तान से अलग होने के बाद बांग्लादेश ने जब संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए आवेदन दिया तो चीन ने उस प्रस्ताव को वीटो कर दिया. स्वतंत्र देश के रूप में बांग्लादेश को मान्यता देने वाले आखिरी कुछ देशों में चीन भी था. 31 अगस्त 1975 तक चीन ऐसा करने से इनकार करता रहा.
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रणनीतिक साथ
चीन ने हमेशा पाकिस्तान के विकास और परिस्थितियों के आधार पर आतंकवाद विरोधी सुरक्षा रणनीति के कार्यान्वयन का दृढ़ता से समर्थन किया है. वहीं पाकिस्तान, ताइवान, तिब्बत, शिजियांग और अन्य मुद्दों पर चीन का मजबूती से समर्थन करता है.
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मजबूत आर्थिक रिश्ते
चीन, पाकिस्तान के लिए दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. वहीं पाकिस्तान, चीन के लिए दक्षिण एशिया में निवेश का सबसे बड़ा ठिकाना है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार तकरीबन 18 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. साल 2000 से 2015 की अवधि के दौरान दोनों देशों के बीच ट्रेड वॉल्यूम 5.7 अरब डॉलर से बढ़कर 100 अरब डॉलर तक पहुंच गया.
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रक्षा सौदे
1960 के दशक से चीन पाकिस्तान के लिए एक प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता की भूमिका निभा रहा है. चीन ने पाकिस्तान को हथियारों के लिए फैक्ट्रियों के निर्माण करने में काफी मदद की. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच अधिकारियों का प्रशिक्षण, संयु्क्त सैन्य अभ्यास, खुफिया सेवाओं का आदान-प्रदान और आंतकवाद के खिलाफ लड़ने को लेकर भी आपसी साझदेारी है.
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पाकिस्तानी बेड़े में चीन
पाकिस्तान के बेड़े में छोटी और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें हैं मसलन शाहीन मिसाइल श्रृंखला जिसे जानकार चीन से आयातित बताते हैं. साथ ही पाकिस्तानी वायुसेना के पास चीनी इंटरसेप्टर और उन्नत ट्रेनर विमान के साथ-साथ विमान का पता लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले एक चीनी कंट्रोल रडार सिस्टम है. पाकिस्तान, चीन के साथ मिलकर जेएफ-17 जैसे कई लड़ाकू विमान को तैयार कर रहा है.
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परमाणु सहयोग
चीन शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का एक मुखर और मजबूत समर्थक रहा है. चश्मा न्यूक्लियर पावर कॉम्पलेक्स पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में में बना एक कमर्शियल ऊर्जा संयंत्र है. इस संयंत्र की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के नियमों के तहत चाइना नेशनल न्यूक्लियर कॉरपोरेशन के सहयोग से की गई थी.
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बुनियादी ढांचा
चीन पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर,सीपीईसी के तहत 60 अरब डॉलर का निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध है. इस प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान में सड़क, पाइपलाइन, पावर प्लांट, इंडस्ट्रियल पार्क और बंदरगाह बनाए जाएंगे. सीपीईसी बीजिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा है. बीआरआई का मकसद एशिया, अफ्रीका और यूरोप के 70 देशों के साथ जमीन और समुद्री व्यापार मार्ग बनाना है.
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चीनी भाषा का क्रेज
चीन के सीपीईसी प्रोजेक्ट से पाकिस्तानी नई नौकरियों की उम्मीद कर रहे हैं. साल 2017 में डीडब्ल्यू ने इस्लामाबाद की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ मॉडर्न लैंगुएजेज (एनयूएमएल) में भाषा सिखाने वाले मिसबाख रशीद के हवाले से बताया था कि कि सीपीईसी से पहले यूनिवर्सिटी में करीब 200 छात्र चीनी भाषा सीख रहे थे लेकिन इसके बाद से यह संख्या 2,000 को भी पार कर गयी.
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भारत के लिए सिरदर्द
चीन-पाकिस्तान की नजदीकियां भारत को अकसर परेशान करती रही हैं. साल 1947 के बाद से ही भारत-पाकिस्तान जहां कश्मीर को लेकर विवाद है. वहीं चीन के साथ भी अरुणाचल प्रदेश, अक्साई चिन, तिब्बत को लेकर भारत हमेशा जूझता रहा है. भारत-चीन के बीच करीब 3000 किमी की सीमा पर कोई स्पष्टता नहीं है. ऐसे में चीन और पाकिस्तान की नजदीकी इसके लिए एक बड़ा सिरदर्द है.