कश्मीर पर फैसला गृह मंत्रालय करेगा
२७ अक्टूबर २०११![](https://static.dw.com/image/5859482_800.webp)
ऐसी रिपोर्टें हैं कि भारतीय सेना जम्मू कश्मीर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून हटाए जाने के खिलाफ है. रिपोर्टों की शक्ल में सामने आ रही इन बातों पर सफाई देने गुरुवार को खुद सेनाध्यक्ष को सामने आना पड़ा. जनरल वीके सिंह ने कहा, "यह मामला गृह मंत्रालय की निगरानी में है. वे इस पर चर्चा कर रहे हैं. हमने अपनी बात रख दी है. मैं इस बारे में इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूंगा."
जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में 25 अक्टूबर को दो ग्रेनेड धमाके हुए. धमाके में सीआरपीएफ के दो जवान जख्मी हो गए. राज्य की सत्ताधारी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के नेता मुस्तफा कमाल का आरोप है कि एक धमाका भारतीय सेना ने करवाया. कमाल के बयान से विवाद पैदा हो गया है. आरोपों पर गहरी नाराजगी जताते हुए जनरल वीके सिंह कहते हैं, "जिसने भी यह बयान दिया है वह इस पर मेरी प्रतिक्रिया पाने के योग्य नहीं है."
आतंकवाद और घुसपैठ का हवाला देते हुए भारतीय सेना राज्य में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून बहाल रखने की वकालत कर रही है. वहीं राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह कुछ इलाकों से विवादित कानून को हटाए जाने की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार चला रहे अब्दुल्लाह का कहना है कि कुछ इलाकों से कानून हटाने से सेना की भूमिका कम नहीं होगी.
मुख्यमंत्री का रुख
मुख्यमंत्री अब्दुल्लाह ने कहा, "सेना आवश्यक रूप से जम्मू कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान चला रही है. राज्य के कुछ हिस्सों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून हटाए जाने का फैसला सेना और अन्य अर्धसैनिक बलों के साथ विचार विमर्श करने के बाद ही लिया जाएगा. सुरक्षा की स्थिति को लेकर उनके जायजे और उनकी जानकारियों को आधार बना कर ही कुछ जगहों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाने का खाका तैयार किया जाएगा." उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सेना और राज्य सरकार के बीच मतभेद नहीं हैं.
अब्दुल्लाह ने अपनी ही पार्टी के नेता मुस्तफा कमाल के बयान पर भी तंज कसा. मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय सेना को बदनाम करने का हक किसी को नहीं है, सेना अनुशासित है और उसकी कार्यवाही का एक मानक स्तर है.
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून
1958 में बनाए गए इस कानून के तहत अगर किसी इलाके को अशांत घोषित कर दिया जाए तो भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों को उस इलाके में कई तरह के विशेषाधिकार मिल जाते हैं. इसके तहत इलाके में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए नॉन कमीशंड अधिकारी भी शक के आधार पर गोली चला सकता है. सेना गोली चला सकती है, किसी को गिरफ्तार कर सकती है और सर्च ऑपरेशन भी चला सकती है. भारत में सबसे पहले यह कानून 1972 में पूर्वोत्तर राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम और मणिपुर में लगाया गया.
लेकिन मानवाधिकार संगठन और स्थानीय लोग कई बार सशस्त्र बलों पर हत्या, लूटपाट और बलात्कार के आरोप लगाते रहे हैं. विकीलीक्स के जरिए भी यह बातें सामने आईं कि भारतीय सशस्त्र सेनाएं पूर्वोत्तर भारत में मानवाधिकारों का हनन कर रही हैं. मणिपुर में असम रायफल्स के जवानों पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं. जम्मू कश्मीर में सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून जुलाई 1990 में लगाया गया. तब से ही वहां सुरक्षा बलों पर फर्जी मुठभेड़, हत्या, बलात्कार और अन्य बर्बर यातनाएं देने के आरोप लगते रहे हैं.
हालांकि बीते कुछ सालों में रक्षा मंत्रालय ने ऐसे आरोपों पर सख्त रुख अपनाया है. जांच में दोषी पाए गए अधिकारियों और जवानों को सजा भी हुई है. लेकिन संजीदा हल नहीं निकल पा रहा है.
रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह
संपादन: ए कुमार