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मीडिया

कश्मीर में पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई पर विवाद

२१ अप्रैल २०२०

जम्मू और कश्मीर पुलिस ने एक पत्रकार के खिलाफ झूठी खबर करने के तो एक फोटोजर्नलिस्ट के खिलाफ यूएपीए के तहत आरोप लगाए हैं. यूएपीए का इस्तेमाल आतंकवादियों के खिलाफ किया जाता है.

Indien Kaschmir | Fotojournalismus | Masart Zahara
तस्वीर: M. Zahara

एक तरफ सेना के जवानों और दूसरी तरफ आतंकवादियों की बंदूकों के साये में कश्मीर में पत्रकारिता करना अपने आप में एक चुनौती है. लेकिन आजकल कश्मीरी पत्रकारों की चुनौतियां और ज्यादा बढ़ गई हैं. पांच अगस्त से कश्मीर में लागू तालाबंदी की वजह से पत्रकारों के लिए अपना काम करना वैसे ही मुश्किल था. अब जब वो कुछ काम कर पा रहे हैं तो उनके काम को लेकर ही प्रशासन उन्हें घेर रहा है.

जम्मू और कश्मीर पुलिस ने फोटोजर्नलिस्ट मसरत जेहरा पर सोशल मीडिया पर 'देश विरोधी' गतिविधियों का गुणगान करने वाले तस्वीरें लगाने का आरोप लगा कर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. इतना ही नहीं, एफआईआर में जेहरा के खिलाफ यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं. इस कानून का इस्तेमाल आतंकवादियों और ऐसे लोगों के खिलाफ किया जाता है जिनसे देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरा हो.

अगस्त 2019 में इस कानून में संशोधन किया गया था जिसके बाद अब इसके तहत संगठनों की जगह व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है और उनकी संपत्ति जब्त की जा सकती है. बताया जा रहा है कि पुलिस ने जेहरा पर सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें लगाने का आरोप लगाया है जिनसे जनता को कानून व्यवस्था तोड़ने के लिए भड़काया जा सकता है.

जेहरा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो विशेष रूप से कश्मीर मसले के महिलाओं और बच्चों पर असर पर रौशनी डालती हैं. ट्विटर पर उन्होंने कुछ ही दिनों पहले अपनी ही खींची एक ऐसी महिला की तस्वीर डाली थी जिसके पति को सेना के जवानों ने आज से बीस साल पहले आतंकवादी समझ कर 18 गोलियां मार दी थीं. महिला को आज भी घबराहट के दौरे पड़ते हैं.

जेहरा को अभी हिरासत में नहीं लिया गया है, लेकिन श्रीनगर के साइबर पुलिस स्टेशन में उनसे पूछताछ चल रही है.

इसी बीच पुलिस ने एक और कश्मीरी पत्रकार पीरजादा आशिक के खिलाफ भी एक केस दर्ज कर लिया है. आशिक अंग्रेजी अखबार 'द हिन्दू' की कश्मीर संवाददाता हैं और पुलिस का आरोप है कि उन्होंने हाल ही में शोपियां में हुए एक एनकाउंटर और उससे संबंधित घटनाओं के बारे में झूठी खबर लिखी जो अखबार में प्रकाशित हुई. आशिक को भी पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया है. 

कश्मीर प्रेस क्लब ने दोनों मामलों में पुलिस की कार्रवाई की आलोचना की है. क्लब ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, एलजी जीसी मुर्मू और डीजीपी दिलबाग सिंह से अपील की है कि वे हस्तक्षेप करें और वादी में पत्रकारों के उत्पीड़न को बंद करवाएं. क्लब ने यह भी कहा कि वो प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भी लिखेगा कि इन सब हथकंडों के जरिये वादी में पत्रकारों को दबाने का काम हो रहा है.

सिर्फ पत्रकार ही नहीं कश्मीर में राजनीतिक पार्टियां भी पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की निंदा कर रही हैं. पूर्व मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती के ट्विटर हैंडल से उनकी बेटी इल्तिजा ने ट्वीट कर के कहा कि कश्मीर में पत्रकारों को डराया और धमकाया जा रहा है कि ताकि उन्हें खबरें निकालने और जनता तक पहुंचाने से रोका जा सके.

नेशनल कांफ्रेंस पार्टी ने भी पत्रकारों के खिलाफ मामलों को रद्द करने की मांग करते हुए कहा है कि पत्रकारिता कोई जुर्म नहीं है और सरकारों को यह बात समझनी चाहिए.

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