जम्मू और कश्मीर पुलिस ने एक पत्रकार के खिलाफ झूठी खबर करने के तो एक फोटोजर्नलिस्ट के खिलाफ यूएपीए के तहत आरोप लगाए हैं. यूएपीए का इस्तेमाल आतंकवादियों के खिलाफ किया जाता है.
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एक तरफ सेना के जवानों और दूसरी तरफ आतंकवादियों की बंदूकों के साये में कश्मीर में पत्रकारिता करना अपने आप में एक चुनौती है. लेकिन आजकल कश्मीरी पत्रकारों की चुनौतियां और ज्यादा बढ़ गई हैं. पांच अगस्त से कश्मीर में लागू तालाबंदी की वजह से पत्रकारों के लिए अपना काम करना वैसे ही मुश्किल था. अब जब वो कुछ काम कर पा रहे हैं तो उनके काम को लेकर ही प्रशासन उन्हें घेर रहा है.
जम्मू और कश्मीर पुलिस ने फोटोजर्नलिस्ट मसरत जेहरा पर सोशल मीडिया पर 'देश विरोधी' गतिविधियों का गुणगान करने वाले तस्वीरें लगाने का आरोप लगा कर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. इतना ही नहीं, एफआईआर में जेहरा के खिलाफ यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं. इस कानून का इस्तेमाल आतंकवादियों और ऐसे लोगों के खिलाफ किया जाता है जिनसे देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरा हो.
अगस्त 2019 में इस कानून में संशोधन किया गया था जिसके बाद अब इसके तहत संगठनों की जगह व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है और उनकी संपत्ति जब्त की जा सकती है. बताया जा रहा है कि पुलिस ने जेहरा पर सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें लगाने का आरोप लगाया है जिनसे जनता को कानून व्यवस्था तोड़ने के लिए भड़काया जा सकता है.
जेहरा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो विशेष रूप से कश्मीर मसले के महिलाओं और बच्चों पर असर पर रौशनी डालती हैं. ट्विटर पर उन्होंने कुछ ही दिनों पहले अपनी ही खींची एक ऐसी महिला की तस्वीर डाली थी जिसके पति को सेना के जवानों ने आज से बीस साल पहले आतंकवादी समझ कर 18 गोलियां मार दी थीं. महिला को आज भी घबराहट के दौरे पड़ते हैं.
जेहरा को अभी हिरासत में नहीं लिया गया है, लेकिन श्रीनगर के साइबर पुलिस स्टेशन में उनसे पूछताछ चल रही है.
इसी बीच पुलिस ने एक और कश्मीरी पत्रकार पीरजादा आशिक के खिलाफ भी एक केस दर्ज कर लिया है. आशिक अंग्रेजी अखबार 'द हिन्दू' की कश्मीर संवाददाता हैं और पुलिस का आरोप है कि उन्होंने हाल ही में शोपियां में हुए एक एनकाउंटर और उससे संबंधित घटनाओं के बारे में झूठी खबर लिखी जो अखबार में प्रकाशित हुई. आशिक को भी पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया है.
कश्मीर प्रेस क्लब ने दोनों मामलों में पुलिस की कार्रवाई की आलोचना की है. क्लब ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, एलजी जीसी मुर्मू और डीजीपी दिलबाग सिंह से अपील की है कि वे हस्तक्षेप करें और वादी में पत्रकारों के उत्पीड़न को बंद करवाएं. क्लब ने यह भी कहा कि वो प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भी लिखेगा कि इन सब हथकंडों के जरिये वादी में पत्रकारों को दबाने का काम हो रहा है.
सिर्फ पत्रकार ही नहीं कश्मीर में राजनीतिक पार्टियां भी पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की निंदा कर रही हैं. पूर्व मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती के ट्विटर हैंडल से उनकी बेटी इल्तिजा ने ट्वीट कर के कहा कि कश्मीर में पत्रकारों को डराया और धमकाया जा रहा है कि ताकि उन्हें खबरें निकालने और जनता तक पहुंचाने से रोका जा सके.
नेशनल कांफ्रेंस पार्टी ने भी पत्रकारों के खिलाफ मामलों को रद्द करने की मांग करते हुए कहा है कि पत्रकारिता कोई जुर्म नहीं है और सरकारों को यह बात समझनी चाहिए.
कैसे बार बार बचता गया कश्मीर में हिंसा फैलाने वाला
मसूद अजहर - भारत की नजर में एक ऐसा आतंकवादी है जो कभी भारतीय जेल में बंद था. लेकिन करीब दो दशक पहले एक ऐसी घटना हुई कि वह अपने मंसूबे फैलाने के लिए आजाद हो गया.
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कंधार हाईजैक की फिरौती
सन 1999 में इंडियन एयरलाइंस का काठमांडू से दिल्ली जा रहा विमान हाईजैक कर अपहरणकर्ता अफगानिस्तार के कंधार शहर ले गए. विमान में सवार यात्रियों की जिंदगी के बदले हाईजैकरों ने भारत सरकार से तीन कश्मीरी आतंकियों को आजाद करने की शर्त रखी. उन्हीं आतंकियों में मसूद अजहर भी शामिल था.
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जेईएम का गठन
मसूद अजहर ने आगे चलकर जैश ए मुहम्मद (जेईएम) नाम का आतंकी गुट बनाया. यह वही गुट है जिसने कश्मीर के पुलवामा में बीते तीन दशकों में हुए सबसे बड़े हमले की जिम्मेदारी ली है. इस आत्मघाती हमले में 40 से अधिक भारतीय सैनिक मारे गए. भारत का आरोप है कि अजहर पाकिस्तान में है.
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छद्म प्रयास
पाकिस्तान से चलने वाला जेईएम वहां सक्रिय ऐसे कई संगठनों में से एक है, जो कश्मीर में लड़ रहे हैं. खुद पाकिस्तान में आधिकारिक तौर पर जेईएम समेत ऐसे गुटों पर बैन है लेकिन नई दिल्ली का आरोप है कि पाकिस्तान छद्म तौर पर इनका इस्तेमाल भारत को अस्थिर करने के लिए करता है.
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कश्मीर में कैसे घुसा
रक्षा विश्लेषक अमित राणा बताते हैं कि अजहर का जन्म 1968 में पाकिस्तानी पंजाब प्रांत के एक स्कूल टीचर के घर हुआ था. पाकिस्तान के आतंकी गुटों पर विस्तृत रिसर्चर करने वाले राणा बताते हैं कि अजहर ने एक पुर्तगाली पासपोर्ट लेकर भारतीय कश्मीर में प्रवेश किया था.
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भारत में गिरफ्तारी
उसे अंगारे बरसाने वाले अपने भाषणों के लिए जाना जाता है और एक समय वह कश्मीर में रहकर तमाम अलगाववादियों का एक नेटवर्क स्थापित कर हिंसा को बढ़ावा देने का काम कर रहा था. आतंकवाद के आरोप में उसे 1994 में गिरफ्तार कर लिया गया.
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जेल से भागना
उसने दूसरे आतंकी कैदियों के साथ मिलकर जेल से भागने के लिए सुरंग खोदी थी. जब भागने का समय आया जो तथाकथित रूप से अजहर ने सबसे पहले निकलने की जिद की. लेकिन अपने भारी शरीर के कारण वह सुरंग में फंस गया और इसके बाद वह 1999 तक जेल में ही रहा.
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संसद पर हमला
2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले का आरोप भी मसूद अजहर के संगठन पर ही है. इस हमले में आतंकियों ने 10 लोगों की जान ली थी. अजहर को नजरबंदी में रखा गया लेकिन सबूतों के अभाव में लाहौर ने उसे 2002 में आजाद कर दिया. भारत और यूएन इसके संगठन जेईएम को आतंकी गुट मानते हैं लेकिन अजहर को अब तक यूएन सुरक्षा परिषद ने आतंकवादी करार नहीं दिया है.
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पाकिस्तान और प्रतिबंधित गुट
पाकिस्तान ने हाल ही में जमात उद दावा और फलहे इंसानियत फाउंडेशन को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डाल दिया है. जमात उद दावा को संयुक्त राष्ट्र लश्कर ए तैयबा से जुड़ा मानता है और इस पर 2008 के मुंबई आतंकी हमलों का आरोप है.
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अजहर जैसे और भी कई
लश्कर ए तैयबा पर पाकिस्तान ने 2002 में ही बैन लगा दिया था लेकिन माना जाता है कि इसी संगठन ने जमात उद दावा और फाउंडेशन के रूप में खुद को बदल लिया था. अमेरिका ने जमात के नेता हाफिज सईद के सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा है. फिर भी वह पाकिस्तान में आजादी से जीता है. आरपी/ओएसजे (एएफपी)