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समाज

कश्मीर में पाबंदियों से कारोबार चौपट

आमिर अंसारी
७ जनवरी २०२०

5 अगस्त 2019 से कश्मीर में इंटरनेट सेवा ठप्प है. कुछ जगहों पर इंटरनेट के लिए खास केंद्र बनाए गए हैं लेकिन वह नाकाफी हैं. छात्रों और कारोबारियों को इस दौर में सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.

BG Jahresrückblick 2019
तस्वीर: Reuters/D. Ismail

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के एक खंड को छोड़ कर बाकी सभी खंडों को निष्प्रभावी करके जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटा दिया था,  इसी के साथ जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों - जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया. इसके साथ ही सरकार ने अनुच्छेद 35ए को भी हटा दिया और स्थायी निवासियों को मिले खास अधिकार खत्म कर दिए थे.अनुच्छेद 370 हटाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 अगस्त को देश के नाम संबोधन में कहा था, "धीरे-धीरे हालात सामान्य हो जाएंगे और उनकी परेशानी भी कम होती चली जाएगी."

लेकिन कश्मीर के लोग पाबंदियों की वजह से भारी आर्थिक नुकसान की बात कर रहे हैं. कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष शेख आशिक का कहना है कि घाटी की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चौपट हो गई है. शेख आशिक ने डीडब्ल्यू को बताया, "आर्थिक विकास दर 2017-18 के आधार पर हमने आकलन किया तो पाया कि करीब 18,000 करोड़ का आर्थिक नुकसान घाटी को अब तक हुआ है. ट्रांसपोर्ट, शिकारा, हस्तशिल्प और पर्यटन जैसे हर सेक्टर से जुड़े लोग बिना काम के बैठे हुए हैं."

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Khan

शेख आशिक इस नुकसान की बड़ी वजह इंटरनेट का बंद होना मानते हैं. उन्होंने कहा, "आज के जमाने में जो भी काम होता है वह इंटरनेट और मोबाइल के माध्यम से होता है जब इंटरनेट नहीं चलेगा तो कारोबार कहां से आएगा. हम 2020 में आ गए हैं लेकिन अब भी इंटरनेट बंद है. इंटरनेट बंद होने की वजह से हर क्षेत्र का शख्स प्रभावित हुआ है."

आशिक ने दुनिया भर में प्रसिद्ध कश्मीरी कालीनों का जिक्र करते हुए बताया कि "कालीन के जो भी ऑर्डर आते हैं वह इंटरनेट से आते हैं. कालीन कारोबारियों को ईमेल और व्हाट्सऐप के जरिए ऑर्डर मिलते थे लेकिन इंटरनेट ठप होने की वजह से ऑर्डर आने बंद हो गए." आशिक बताते हैं कि कश्मीर के युवा व्हाट्सऐप पर अपना व्यवसाय चलाते थे और उन्हें घाटी के लोग सोशल उद्यमी कहते हैं, वह सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप पर ग्रुप बनाकर अपना बिजनेस चलाते थे और घर बैठकर ही काम करते थे लेकिन पाबंदियों की वजह से उनका भी काम बंद है.

कश्मीरियों की टूटती उम्मीदें

हाल ही में कश्मीर के कारोबारियों ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल गिरीश चंद्र मुर्मु से मुलाकात कर इन परेशानियों के बारे में बताया था और सरकार से कारोबार के लिए सकारात्मक माहौल बनाने का अनुरोध किया था. आशिक के मुताबिक उपराज्यपाल ने उन्हें इस मुद्दे पर कार्रवाई का भरोसा दिया है. सरकारी पाबंदियों को लेकर स्थानीय लोग खुलकर बात करने से कतराते हैं और कहते हैं कि सुरक्षा एजेंसियों की उन पर कड़ी नजर रहती है. नाम ना छापने की शर्त पर एक महिला ने कहा कि लोग पोस्टपेड मोबाइल पर बात तो करते हैं लेकिन उन्हें फोन रिकॉर्ड होने का खौफ रहता है इसलिए वह किसी भी मुद्दे पर बात नहीं करना चाहते हैं.

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के वकील सैयद रियाज खावर कहते हैं, "कश्मीर के लोग बहुत मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. व्यापारी समुदाय, छात्र और जनता को लगता है कि पाबंदियां एक तरह की सजा हैं. लोगों को लगता है कि पाबंदियां गैर-जरूरी हैं और इसका असर उनकी मानसिक स्थिति पर पड़ा है. लोगों को दिल्ली से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन अब वह खत्म हो गईं. कश्मीर के लोग अब कुछ भी उम्मीद नहीं करते हैं. लोगों को एक तरह की मानसिक चोट लगी है." खावर कहते हैं कश्मीर के लोगों में एक तरह की खामोशी है और उनके अंदर ही अंदर गुस्सा पल रहा है. वह कहते हैं कि केंद्र सरकार को कश्मीर के लोगों की भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए और लोगों से बात करनी चाहिए और सरकार को जनता से संवाद बिठाना चाहिए.

"कश्मीर में पाबंदियां सामूहिक सजा"

नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता और अनंतनाग से सांसद रिटायर्ड जस्टिस हसनैन मसूदी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "इंटरनेट पर रोक का असर हर तबके पर पड़ रहा है. इंटरनेट असम में भी बंद था लेकिन वह दस दिन में बहाल हो गया. लेकिन कश्मीर में अब तक इंटरनेट क्यों बहाल नहीं हो रहा है. लगता है कि कश्मीर को सामूहिक सजा दी जा रही है."

मसूदी कश्मीरी नेताओं के हिरासत में लिए जाने और कार्यकर्ताओं के जेल में बंद होने से भी निराश हैं. उन्होंने कहा, "घाटी में सियासी गतिविधियां भी बंद हैं, कम से कम रोजमर्रा के कार्यक्रमों की इजाजत तो मिलनी चाहिए. ऐसे में हमारा मानना है कि कश्मीर में राजनीतिक आवाज दबाने की कोशिश हुई है." मसूदी का दावा है कि केंद्र सरकार को भी इस बात का एहसास है कि सरकार ने 5 अगस्त को जो फैसले लिए थे वह ठीक नहीं थे. उनके मुताबिक सरकार को सारे फैसले वापस लेने चाहिए.

तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा भी सरकार के कदम की आलोचना करते हुए कहते हैं, "सरकार के फैसले का वहां की जनता पर बहुत बुरा असर पड़ा है. जनता के मनोविज्ञान पर गहरी चोट लगी है. लोग नाराज हैं और गुस्से से भरे हुए हैं. उन्होंने इस बार यह तय किया है कि वह अमन-चैन बनाए रखेंगे और सरकार का मुकाबला करते रहेंगे." यशवंत सिन्हा बताते हैं कि उन्होंने दो बार कश्मीर दौरा करने की कोशिश भी की थी लेकिन एक बार उन्हें एयरपोर्ट से ही लौटा दिया गया था.

सिन्हा कहते हैं, "दूसरी बार मुझे श्रीनगर के होटल में ही रखा गया और वहां मुझसे बहुत सारे लोग मिलने आए थे. लोगों से मुलाकात के बाद मुझे इस बात का अंदाजा लगा था कि लोग कितने नाराज हैं." सिन्हा कहते हैं कि पाबंदियों के जरिए सरकार जो करना चाहती है वह निकट भविष्य में होता नहीं दिख रहा है. उनके मुताबिक बातचीत करने के लिए कश्मीर में कोई राजनीतिक नेता नहीं है और वहां बातचीत के सभी रास्ते बंद हैं.

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