जम्मू और कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने दावा किया है कि स्थानीय चुनावों से ठीक पहले उन्हें नजरबंद कर दिया गया है. उन्हें सितंबर में एक साल से भी ज्यादा नजरबंद रखने के बाद रिहा किया गया था.
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मुफ्ती ने दावा किया है कि उन्हें "फिर से अवैध रूप से नजरबंद" कर दिया गया है. उनका आरोप है कि बीजेपी के मंत्रियों और कार्यकर्ताओं को कश्मीर के हर इलाके में घूमने की इजाजत है लेकिन सिर्फ उन्हें ही प्रशासन सुरक्षा की दलील दे कर कहीं जाने नहीं देता.
पूर्व मुख्यमंत्री उनकी पार्टी पीडीपी के युवा नेता वहीद उर-रहमान के अचानक गिरफ्तार कर लिए जाने के बाद उनके परिवार से मिलना चाह रही थीं लेकिन उनके अनुसार प्रशासन उन्हें इसकी अनुमति नहीं दे रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी बेटी इल्तिजा को भी नजरबंद कर दिया गया है.
पिछले साल जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत महबूबा मुफ्ती को नजरबंद किया गया था. उनके अलावा नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और श्रीनगर से लोकसभा सांसद फारूक अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला समेत वादी के कई अन्य कई नेताओं को भी नजरबंद कर दिया गया था. पिछले कुछ महीनों में सभी बड़े नेताओं को एक एक करके रिहा किया गया. हाल ही में छह पार्टियों ने मिलकर "गुपकार गठबंधन" नाम का गठबंधन बनाया है.
जम्मू और कश्मीर में स्थानीय जिला विकास परिषद के (डीडीसी) पदाधिकारियों के लिए चुनाव होने वाले हैं. पिछले साल विशेष राज्य का दर्जा हटाए जाने के बाद वहां पहले चुनाव होंगे. चुनावी सरगर्मियां जोरों पर हैं, प्रत्याशी नामांकन भर रहे हैं और इसी बीच पीडीपी, एनसी जैसी गुपकार गठबंधन की सदस्य स्थानीय पार्टियां उन पर प्रशासन द्वारा कई तरह के दबाव डाले जाने का आरोप लगा रही हैं.
वहीद उर-रहमान पीडीपी की युवा इकाई के अध्यक्ष हैं और वो भी इन चुनावों में अपनी किस्मत आजमाने वाले थे. लेकिन नामांकन भरने के अगले दिन ही उन्हें एनआईए ने गिरफ्तार कर लिया. बताया जा रहा है कि एनआईए ने कई दिनों से उन पर नजर रखी हुई थी. एजेंसी को संदेह है कि आतंकवादियों का साथ देने के आरोप में निलंबित एसपी देविंदर सिंह से जुड़े जिस मामले में जांच की जा रही है, वहीद का भी उस मामले से संबंध है.
लेकिन पीडीपी ने इन आरोपों का खंडन किया है और उन्हें आधारहीन बताया है. इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी महबूबा मुफ्ती को दोबारा नजरबंद कर दिए जाने की आलोचना की है और कहा है कि "सरकार निजी स्वतंत्रता को एहसान समझती है जिसे वो अपनी मर्जी से देती है और वापस ले लेती है और न्यायपालिका भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करती."
कहानी पुलित्जर जीतने वाले भारतीय फोटो पत्रकारों की
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के तीन भारतीय फोटोग्राफरों ने प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार जीता है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पाबंदियों के बीच उन्होंने आखिर कैसे खींची और भेजीं तस्वीरें?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Khan
"चूहा-बिल्ली" का खेल
"ये हमेशा चूहा-बिल्ली का खेल था" - एसोसिएटेड प्रेस के फोटोग्राफर डार यासीन ने अगस्त 2019 में कश्मीर में लागू हुई तालाबंदी की कहानियों को तस्वीरों में कैद करने के तजुर्बे को कुछ यूं बयान किया है. यासीन और उनके दो और सहयोगियों मुख्तार खान और चन्नी आनंद को इस दौरान जम्मू और कश्मीर में खींची गई तस्वीरों के लिए 2020 के फीचर फोटोग्राफी के पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया है. देखिये इनमें से कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
घोषणा
अगस्त में जम्मू में एक इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की दुकान पर टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनते लोग. 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
विरोध
अगस्त में श्रीनगर में कर्फ्यू के बीच अर्धसैनिक बल के जवानों पर दूर से पत्थर फेंकता एक प्रदर्शनकारी. श्रीनगर में एपी के फोटोग्राफर मुख्तार खान और यासीन डार को प्रदर्शनकारियों और सेना के जवानों दोनों का ही अविश्वास झेलना पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
पहरा
अगस्त में श्रीनगर में कंटीली तारों से बंद एक सुनसान सड़क पर पहरा देता एक सुरक्षाकर्मी. श्रीनगर में खान और यासीन कई बार कई दिनों तक घर नहीं लौट पाते थे और अपने परिवारों तक अपनी खबर भी नहीं पहुंचा पाते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
बंदूकें और बूट
पिछले साल अगस्त में श्रीनगर में तालाबंदी के दौरान ड्यूटी पर तैनात दो सुरक्षाकर्मी. खान और यासीन अपनी खींची हुई तस्वीरें दिल्ली ऑफिस तक पहुंचाने के लिए एयरपोर्ट पर अनजान यात्रियों से अपील करते थे. कुछ यात्री डर कर अपील ठुकरा देते थे तो कुछ मान लेते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
नमाज
अगस्त 2019 में जम्मू में मस्जिद में ईद पर नमाज अदा करते हुए लोग. आनंद जम्मू में काम करते हैं और कहते हैं कि पुरस्कार से वो अवाक रह गए. वे बीस साल से एपी के लिए काम कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
ये कैसी ईद
अगस्त 2019 में ईद पर जम्मू में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बीच अपने रास्ते पर जाता एक मुस्लिम व्यक्ति. एपी के अध्यक्ष गैरी प्रुइट ने कहा कि इस टीम की बदौलत ही दुनिया कश्मीर में आजादी की लंबी लड़ाई में हुई एक नाटकीय तेजी देख पाई.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
वापसी
अगस्त में प्रवासी श्रमिक जम्मू और कश्मीर को छोड़ अपने अपने घर जाने के लिए जम्मू रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में बैठे हुए. कर्फ्यू और फोन और इंटरनेट के बंद होने के बावजूद ये तस्वीरें एपी के इन फोटोग्राफरों ने खींचीं और किसी तरह भेजीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
पुलिस
सितंबर 2019 में श्रीनगर में शिया प्रदर्शनकारियों पर डंडे चलाता एक पुलिसकर्मी. एपी के फोटोग्राफरों ने कभी अंजान लोगों के घर में छिप कर तो कभी कैमरों को सब्जियों के थैलों में छिपा कर तस्वीरें खींची.
तस्वीर: picture-alliance/AP/M. Khan
बंदूकों के साए में
नवंबर में श्रीनगर में एक बाजार में हुए एक विस्फोट के स्थल की जांच करता हुआ एक सुरक्षाकर्मी. यासीन कहते हैं कि उनके काम का उनके लिए पेशे-संबंधी और व्यक्तिगत दोनों मतलब है. वे कहते हैं इन तस्वीरों में सिर्फ दूसरों की नहीं बल्कि उनकी खुद की भी कहानी है.