कश्मीरी पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की सभी पक्षों ने निंदा की है. कुलदीप कुमार का कहना है कि सरकार द्वारा घोषित संघर्ष विराम के बावजूद हुई हत्या ने दिखाया है कि हिंसा का एक और चक्र शुरू हो गया है.
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"राइज़िंग कश्मीर" के संपादक शुजात बुखारी के नाम में ही बहादुरी नहीं थी, उनके काम में भी बहादुरी थी. शुजात का अर्थ है वीरता, और उन्होंने एक महान योद्धा की तरह अपना कर्तव्य निभाते हुए पत्रकारिता की रणभूमि में अपना बलिदान दिया. बृहस्पतिवार को उनकी और उनके साथ के सुरक्षाकर्मियों की आतंकवादियों द्वारा हत्या इस बात का संकेत दे रही है कि आने वाले दिन कश्मीर के लिए बहुत कठिनाइयों वाले होंगे. इसी दिन पुलवामा में ईद का त्योहार मनाने अपने घर जा रहे एक सैनिक का अपहरण करके उसकी हत्या कर दी गई और बांदीपोरा में एक सैनिक और दो आतंकवादी एक मुठभेड़ में मारे गए. यानी रमजान के दिनों के लिए सरकार द्वारा घोषित संघर्ष विराम को आतंकवादियों ने अंगूठा दिखा दिया है और हिंसा का एक और चक्र शुरू हो गया है.
शुजात बुखारी की हत्या का एक अर्थ यह भी है कि जम्मू-कश्मीर में सक्रिय पाकिस्तान-समर्थित आतंकवादी किसी स्वतंत्रचेता, ईमानदार और बेलाग पत्रकार को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं. कश्मीर के पत्रकारों पर सरकार की सेना, पुलिस और खुफिया एजेंसियों के साथा-साथ आतंकवादी संगठनों का भी बेहद दबाव रहता है और वे दो पाटों के बीच पिसते रहते हैं. शुजात बुखारी पर 2006 में भी निशाना साधा गया था और उनका अपहरण कर लिया गया था. इसके पहले भी कई पत्रकार कश्मीर में मारे जा चुके हैं. उनकी हत्या की निंदा सरकार, राजनीतिक दलों, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन यानी सभी पक्षों ने की है. सवाल उठता है कि फिर हत्या की किसने है.
वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या
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इसी के साथ यह सवाल भी उठता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछले चार सालों में कश्मीर को सामान्य बनाने के लिए किया क्या है. भारतीय जनता पार्टी ने जब जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ हाथ मिलाया, तो यह उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के मिल जाने जैसी घटना थी क्योंकि भाजपा संविधान से धारा 370 को निकालकर और जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करके उसे भारतीय संघ में पूरी तरह से मिलाने की पक्षधर रही है, वहीं महबूबा मुफ्ती का रवैया उग्रवाद के प्रति काफी नरम रहा है. लेकिन सरकार बनने के बाद भाजपा नेताओं ने जम्मू को भावनात्मक रूप से कश्मीर घाटी से अलग करने का हर संभव प्रयास किया और मुफ्ती चुपचाप सब कुछ देखती रहीं. उनकी सरकार के कामकाज और उनकी पूर्ववर्ती उमर अब्दुल्लाह की सरकार के कामकाज में कोई विशेष अंतर नजर नहीं आता और वे भी अकसर किंकर्तव्यविमूढ़ दिखाई देती हैं. आतंकवादी घटनाओं में बढ़ोतरी उनकी सरकार के कामकाज पर एक टिप्पणी भी है. आश्चर्यजनक यह है कि मुफ्ती सरकार और मोदी सरकार दोनों ने ही अभी तक इस समस्या को कानून-व्यवस्था की समस्या समझ कर सुलझाने की कोशिश की है, राजनीतिक समस्या मान कर नहीं.
आतंकवाद की तीन चारित्रिक विशेषताएं हैं और इनमें से किसी एक पर बहुत अधिक जोर देना और अन्य को नजरअंदाज कर देना घातक सिद्ध होता है. ये विशेषताएं हैं: राजनीतिक चरित्र, नागरिकों पर नाटकीय ढंग से किए जाने वाली हिंसा और अतिशय भय और आतंक के माहौल का सृजन. इसके अलावा आतंकवाद की समाप्ति की राह में एक और बहुत बड़ी बाधा है और वह यह कि उसके साथ बहुत बड़े आर्थिक हित जुड़ जाते हैं. पंद्रह वर्ष पहले प्रकाशित अपनी पुस्तक "मॉडर्न जिहाद" में इतालवी अध्येता लोरेट्टा नेपोलियोनी ने बताया था कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का अर्थतंत्र डेढ़ ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर था. अनुमान लगाया जा सकता है कि आज यह संख्या कहां तक पहुंच गई होगी. उनका यह भी कहना था कि विचारधारा को ताक पर रख कर सभी आतंकवादी संगठन एक-दूसरे के साथ आर्थिक स्तर पर सहयोग करते हैं. जम्मू-कश्मीर में दशकों से चल रहे आतंकवाद के इस पक्ष की भी अनदेखी नहीं की जा सकती, खासकर उसे पाकिस्तान की ओर से मिल रहे समर्थन को देखते हुए.
आतंकवादी अपनी कार्रवाइयों को इस्लाम के नाम पर अंजाम देते हैं लेकिन वे कभी ईद या मुहर्रम का कोई ख्याल नहीं करते. इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं कि बुखारी की सरे-आम हत्या करने के लिए उन्होंने रमजान के अंतिम दिनों को चुना. उनकी हत्या ने एक बार फिर इस सवाल को पुरजोर ढंग से उठा दिया है: कश्मीर समस्या का हल कैसे हो सकता है?
कश्मीर मुद्दे की पूरी रामकहानी
आजादी के बाद से ही कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक फांस बना हुआ है. कश्मीर के मोर्चे पर कब क्या क्या हुआ, जानिए.
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1947
बंटवारे के बाद पाकिस्तानी कबायली सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया तो कश्मीर के महाराजा ने भारत के साथ विलय की संधि की. इस पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया.
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1948
भारत ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया. संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 47 पास किया जिसमें पूरे इलाके में जनमत संग्रह कराने की बात कही गई.
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1948
लेकिन प्रस्ताव के मुताबिक पाकिस्तान ने कश्मीर से सैनिक हटाने से इनकार कर दिया. और फिर कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया गया.
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1951
भारतीय कश्मीर में चुनाव हुए और भारत में विलय का समर्थन किया गया. भारत ने कहा, अब जनमत संग्रह का जरूरत नहीं बची. पर संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तान ने कहा, जनमत संग्रह तो होना चाहिए.
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1953
जनमत संग्रह समर्थक और भारत में विलय को लटका रहे कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्लाह को गिरफ्तार कर लिया गया. जम्मू कश्मीर की नई सरकार ने भारत में कश्मीर के विलय पर मुहर लगाई.
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1957
भारत के संविधान में जम्मू कश्मीर को भारत के हिस्से के तौर पर परिभाषित किया गया.
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1962-63
चीन ने 1962 की लड़ाई भारत को हराया और अक्साई चिन पर नियंत्रण कर लिया. इसके अगले साल पाकिस्तान ने कश्मीर का ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट वाला हिस्सा चीन को दे दिया.
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1965
कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ. लेकिन आखिर में दोनों देश अपने पुरानी पोजिशन पर लौट गए.
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1971-72
दोनों देशों का फिर युद्ध हुआ. पाकिस्तान हारा और 1972 में शिमला समझौता हुआ. युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा बनाया गया और बातचीत से विवाद सुलझाने पर सहमति हुई.
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1984
भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण कर लिया, जिसे हासिल करने के लिए पाकिस्तान कई बार कोशिश की. लेकिन कामयाब न हुआ.
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1987
जम्मू कश्मीर में विवादित चुनावों के बाद राज्य में आजादी समर्थक अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ. भारत ने पाकिस्तान पर उग्रवाद भड़काने का आरोप लगाया, जिसे पाकिस्तान ने खारिज किया.
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1990
गवकदल पुल पर भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 100 प्रदर्शनकारियों की मौत. घाटी से लगभग सारे हिंदू चले गए. जम्मू कश्मीर में सेना को विशेष शक्तियां देने वाले अफ्सपा कानून लगा.
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1999
घाटी में 1990 के दशक में हिंसा जारी रही. लेकिन 1999 आते आते भारत और पाकिस्तान फिर लड़ाई को मोर्चे पर डटे थे. कारगिल की लड़ाई.
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2001-2008
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की कोशिशें पहले संसद पर हमले और और फिर मुबई हमले समेत ऐसी कई हिंसक घटनाओं से नाकाम होती रहीं.
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2010
भारतीय सेना की गोली लगने से एक प्रदर्शनकारी की मौत पर घाटी उबल पड़ी. हफ्तों तक तनाव रहा और कम से कम 100 लोग मारे गए.
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2013
संसद पर हमले के दोषी करार दिए गए अफजल गुरु को फांसी दी गई. इसके बाद भड़के प्रदर्शनों में दो लोग मारे गए. इसी साल भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मिले और तनाव को घटाने की बात हुई.
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2014
प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ गए. लेकिन उसके बाद नई दिल्ली में अलगाववादियों से पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाकात पर भारत ने बातचीत टाल दी.
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2016
बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में आजादी के समर्थक फिर सड़कों पर आ गए. अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और गतिरोध जारी है.
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2019
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में 46 जवान मारे गए. इस हमले को एक कश्मीरी युवक ने अंजाम दिया. इसके बाद परिस्थितियां बदलीं. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है.
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2019
22 जुलाई 2019 को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दावा किया की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मुद्दे को लेकर मध्यस्थता करने की मांग की. लेकिन भारत सरकार ने ट्रंप के इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बातचीत से ही सुलझेगा.
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2019
5 अगस्त 2019 को भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक संशोधन विधेयक पेश किया. इस संशोधन के मुताबिक अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाएंगे. जम्मू कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. लद्दाख को भी एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. धारा 35 ए भी खत्म हो गई है.